राजस्थान के बाड़मेर ज़िले में चौहटन थाना क्षेत्र के आगौर गांव में दो चिंकारा हिरणों के शिकार की घटना अब एक गंभीर सामाजिक और राजनीतिक मुद्दा बन चुकी है।
मामले की प्रमुख बातें:
क्या हुआ था?
- शुक्रवार शाम (30 मई) को आगौर गांव के हाईवे पुल के नीचे प्लास्टिक की बोरियों में दो चिंकारा हिरणों के शव मिले।
- प्रारंभिक जांच के अनुसार शिकार तड़के सुबह हुआ और हलचल बढ़ने पर शव फेंक दिए गए।
बिश्नोई समाज का आक्रोश:
- आगौर गांव बिश्नोई बहुल क्षेत्र है, जहां वन्यजीवों की रक्षा एक धार्मिक आस्था का विषय है।
- तीन दिन से ग्रामीण धरने पर बैठे हैं और डीप-फ्रिजर में शवों को सुरक्षित रखा गया है ताकि फॉरेंसिक जांच संभव हो सके।
कार्रवाई की स्थिति:
पहलू | विवरण |
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पुलिस कार्रवाई | अब तक 10 संदिग्ध हिरासत में, पर कोई औपचारिक गिरफ्तारी नहीं |
शव सुरक्षित | डीप-फ्रिजर में संरक्षित — ताकि पोस्टमॉर्टम व फॉरेंसिक जांच में साक्ष्य सुरक्षित रहें |
अल्टीमेटम | बिश्नोई समाज ने 3 दिन का समय दिया — गिरफ्तारी नहीं हुई तो बड़ा आंदोलन और सड़क जाम की चेतावनी |
बिश्नोई समाज की मांगें:
- दोषियों की तत्काल गिरफ्तारी
- वन्यजीव संरक्षण अधिनियम के तहत कड़ी धाराओं में मामला दर्ज
- जांच में स्थानीय पुलिस के साथ विशेष वन्यजीव प्रकोष्ठ को जोड़ा जाए
- शिकारियों के नेटवर्क का भंडाफोड़ किया जाए
सांस्कृतिक-सामाजिक पृष्ठभूमि:
- बिश्नोई धर्म में हिरणों की रक्षा एक आध्यात्मिक कर्तव्य माना जाता है।
- चिंकारा जैसे जानवरों को “संत” जीव समझा जाता है, और उनके प्रति हिंसा को धार्मिक अपराध माना जाता है।
- 1998 में सलमान खान काला हिरण शिकार मामला भी बिश्नोई समाज के विरोध से ही राष्ट्रीय मुद्दा बना था।
अब आगे क्या?
समय सीमा | अपेक्षित कार्रवाई |
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3 दिन का अल्टीमेटम (2-5 जून) | गिरफ्तारी नहीं हुई तो आंदोलन और सड़क जाम |
वन विभाग की जिम्मेदारी | साक्ष्य सुरक्षित कर फॉरेंसिक रिपोर्ट तैयार करना |
राज्य सरकार की भूमिका | संवेदनशीलता दिखाकर कार्रवाई में तेजी लाना — नहीं तो राजनीतिक दबाव बढ़ सकता है |
निष्कर्ष:
यह मामला केवल वन्यजीव शिकार का नहीं है, बल्कि एक समुदाय की आस्था, संस्कृति और अधिकारों से जुड़ा है।
यदि समय पर और पारदर्शी कार्रवाई नहीं हुई, तो यह आंदोलन जल्द ही राज्यव्यापी जनआक्रोश में बदल सकता है।