दक्षिण भारत में बीजेपी के सबसे मजबूत दुर्ग के तौर पर कर्नाटक को देखा जाता है. दक्षिण का इकलौता राज्य कर्नाटक है, जहां पर बीजेपी अपने दम पर सरकार बनाती रही है. मोदी लहर ही नहीं बल्कि यूपीए सरकार के दौरान भी कर्नाटक में भले ही किसी दल की सरकार रही हो, लेकिन लोकसभा के चुनाव में बीजेपी का ही पल्ला भारी रहा है. चुनाव दर चुनाव बीजेपी की पकड़ कर्नाटक में मजबूत हुई है. पिछले चार लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने अच्छा प्रदर्शन किया है, लेकिन इस बार सियासी समीकरण बदले हुए हैं. बीजेपी को पिछले प्रदर्शन को दोहराने की चुनौती है तो कांग्रेस के लिए अपने सियासी वजूद बचाए रखने की टेंशन है.
कर्नाटक विधानसभा चुनाव में सत्ता से बाहर होने के बाद भी बीजेपी ने 2019 में एकतरफा सफलता हासिल की थी. इस बार के चुनाव में बीजेपी सत्ता से बाहर है, लेकिन जेडीएस के साथ मिलकर चुनावी मैदान में उतरी है. प्रदेश की सत्ता पर काबिज कांग्रेस 2019 के लोकसभा चुनाव में अब तक के सबसे खराब प्रदर्शन का घाव नहीं भर पाई है. महज एक सांसद वाली कांग्रेस के लिए यह अस्तित्व की लड़ाई है. पिछली बार जेडीएस के साथ मिलकर चुनाव लड़ने वाली कांग्रेस इस बार अकेले मैदान में है. ऐसे में देखना है कि कांग्रेस और बीजेपी कौन लोकसभा चुनाव की सियासी बाजी मारता है?
कांग्रेस-बीजेपी किसका रहा पल्ला भारी
कर्नाटक में कुल 28 लोकसभा सीटें हैं. 2019 में बीजेपी ने प्रदेश की 28 में से 25 सीटें जीती थी तो कांग्रेस और जेडीएस को एक-एक सीट मिली थी. 2014 में बीजेपी 17 और कांग्रेस 9 सीटें जीती थी. 2009 में बीजेपी को 19 और कांग्रेस को 6 सीटें मिली थीं. 2004 में बीजेपी 18 और कांग्रेस 8 सीटें जीतने में कामयाब रही थी. इस तरह बीजेपी कर्नाटक में पिछले 20 सालों से बेहतर प्रदर्शन करती आ रही है. कर्नाटक में इस बार बीजेपी को रिकॉर्ड 25 सीटों पर जीत के पिछले प्रदर्शन को दोहराने की चुनौती है. लोकसभा की महज एक सीट पर काबिज कांग्रेस भले ही प्रदेश की सत्ता में है, लेकिन उसके लिए बीजेपी-जेडीएस गठबंधन की किलेबंदी से पार पाना आसान नहीं है.
कर्नाटक में कब कितनी सीटों पर चुनाव
कर्नाटक की कुल 28 लोकसभा सीटें हैं, जिन पर दो चरण में चुनाव है. प्रदेश की 14 सीटों पर दूसरे चरण में और 14 सीट पर तीसरे चरण में वोटिंग होनी है. दूसरे चरण में उडुपी-चिकमगलूर, हासन, दक्षिण कन्नड़, चित्रदुर्ग, तुमकुर, मांड्या, मैसूर, चामराजनगर, बेंगलुरु ग्रामीण, बेंगलुरु उत्तर, बेंगलुरु केंद्रीय, बेंगलुरु दक्षिण,चिकबल्लापुर और कोलार सीट पर 26 अप्रैल को मतदान है. तीसरे चरण में चिक्कोडी,बेलगाम, बीदर, बागलकोट, बीजापुर,गुलबर्गा, रायचुर, कोप्पल, बेल्लारी, हवेरी, धारवाड़, उत्तर कन्नड़, दावानगरी और शिमोगा सीट पर 7 मई को मतदान है. पहले चरण की जिन 14 सीटों पर चुनाव है, उसमें 12 सीटों पर बीजेपी का कब्जा है और दो सीटें विपक्ष को गई थीं.
2024 के चुनाव में मैदान में कांग्रेस अकेले
कांग्रेस कर्नाटक की सभी सीटों पर चुनावी मैदान में उतरी है. 2023 विधानसभा चुनाव के नतीजे के लिहाज से देखें तो कांग्रेस को 20 लोकसभा सीटों पर बढ़त मिली थी.कांग्रेस इन्हीं सीटों पर फोकस कर रही है. बीजेपी और जेडीएस जरूर एक साथ आए हैं, लेकिन उनके बीच वोट ट्रांसफर करना आसान नहीं माना जा रहा है. कांग्रेसी रणनीतिकार इसे अपने लिए सियासी फायदे का सौदा मान रहे हैं. उनका तर्क है कि दोनों दलों का एक साथ मंच पर आना उनके कार्यकर्ताओं को रास नहीं आएगा. कांग्रेस ने बीजेपी-जेडीएस के गठबंधन की वजह से हुई बगावतों को अपने पक्ष में पूरी तरह भुनाने की कोशिश की है.
2019 के लोकसभा चुनाव में ओबीसी वोटों के छिटकने से कांग्रेस को राज्य में करारी हार का सामना करना पड़ा था. बीजेपी के पक्ष में ओबीसी मतों की व्यापक गोलबंदी 2019 में हुई थी. इस बार कांग्रेस ओबीसी के साथ दलित और आदिवासी को एकजुट रखने का दांव चला है तो वोक्कालिगा समुदाय के एकमुश्त वोट मिलने का अनुमान है. वोक्कालिगा जेडीएस का वोटर माना जाता है, लेकिन बीजेपी के साथ हाथ मिलाने पर कांग्रेस को अपने पक्ष में आने की उम्मीद दिख रही है.
लिंगायत वोटर भी पिछली बार की तरह कांग्रेस से बहुत ज्यादा नाराज नहीं दिख रहे हैं, जिससे भी पार्टी के हौसले बुलंद है. सूबे में मुस्लिम वोटर्स कांग्रेस के पक्ष में एकजुट हो सकता है, क्योंकि जेडीएस इस बार बीजेपी के साथ है. कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया कुरुबा और कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे दलित समुदाय से हैं. कांग्रेस ने टिकट वितरण के जरिए वोक्कालिगा और लिंगायत में संतुलन साधने की कोशिश की है.