केंद्र सरकार द्वारा सीएए के लिए नियम जारी करने के एक दिन बाद केरल स्थित राजनीतिक दल इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग (आईयूएमएल) ने नियमों के कार्यान्वयन पर रोक लगाने की मांग करते हुए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। केरल स्थित राजनीतिक दल ने मांग की कि इस कानून पर रोक लगान की जरूरत है और इसके जरिए मुस्लिम समुदाय के व्यक्तियों के खिलाफ कोई कठोर कदम नहीं उठाया जाए।
IUML ने की रोके लगाने की मांग
केंद्र सरकार द्वारा सीएए के लिए नियम जारी करने के एक दिन बाद केरल स्थित राजनीतिक दल इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग (आईयूएमएल) ने नियमों के कार्यान्वयन पर रोक लगाने की मांग करते हुए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। केरल स्थित राजनीतिक दल ने मांग की कि इस कानून पर रोक लगान की जरूरत है और इसके जरिए मुस्लिम समुदाय के व्यक्तियों के खिलाफ कोई कठोर कदम नहीं उठाया जाए।
IUML के अलावा, डेमोक्रेटिक यूथ फेडरेशन ऑफ इंडिया (DYFI), असम विधानसभा में विपक्ष के नेता देबब्रत सैका और असम से कांग्रेस सांसद अब्दुल खालिक और अन्य ने भी नियमों पर रोक लगाने के लिए आवेदन दायर किए।
याचिका में क्या कहा गया?
- याचिका में कहा गया है कि ये कानून स्पष्ट रूप से मनमाने हैं और केवल उनकी धार्मिक पहचान के आधार पर व्यक्तियों के एक वर्ग के पक्ष में अनुचित लाभ पैदा करते हैं, जो भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 और 15 के तहत अनुमति योग्य नहीं है।
- याचिका में ये भी कहा गया कि चूंकि सीएए धर्म के आधार पर भेदभाव करता है, यह धर्मनिरपेक्षता की जड़ पर हमला कर रहा है, जो संविधान की मूल संरचना है।
अमित शाह ने सीएए पर रखी थी अपनी बात
बता दें कि केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने कुछ दिन पहले ही सीएए को लेकर विपक्ष द्वारा फैलाए जा रहे नकारात्मक प्रचार पर अपना रुख साफ किया था. उन्होंने कहा था कि एनआरसी और सीएए का कोई लेना-देना नहीं है. उन्होंने साथ ही ये भी कहा था कि ये कानून कभी वापस नहीं होगा. ये शरणार्थियों को न्याय देने का मुद्दा है. ANI से इंटरव्यू में अमित शाह ने CAA को लेकर हर सवाल का जवाब दिया.
“ये हमारे ही लोग हैं”
अमित शाह ने सीएए को लेकर कहा था कि जब विभाजन हुआ तो पाकिस्तान में 23 प्रतिशत हिन्दू थे, आज 3.7 प्रतिशत हैं. कहां गए सारे. इतने तो यहां नहीं आए. उनका धर्म परिवर्तन किया गया, अपमानित किया गया. क्या देश को इसका विचार नहीं करना चाहिए. बांग्लादेश में 1951 में हिन्दुओं की संख्या 22 प्रतिशत थी. 2011 की जनगणना में वो 10 प्रतिशत रह गए. कहां गए? अफगानिस्तान में 1992 में 2 लाख सिख और हिन्दू थे, आज 500 बचे हैं. क्या इन लोगों को अपनी आस्था के साथ जीने का अधिकार नहीं है. जब भारत एक था तो ये साथ ही थे. ये हमारे ही लोग हैं. अगर उनकी थ्योरी को भी अपनाएं तो विभाजन के बाद इतने शरणार्थियों को क्यों आने दिया गया?
क्या है CAA कानून?
बता दें कि सीएए 11 दिसंबर 2019 को संसद द्वारा पारित किया गया और अगले दिन राष्ट्रपति की मंजूरी मिल गई। सीएए 10 जनवरी 2020 को लागू हुआ। यह कानून उन हिंदुओं, सिखों, बौद्धों, जैनियों, पारसियों और ईसाइयों को नागरिकता देने का काम करता है, जो अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान में धार्मिक उत्पीड़न के कारण भागे और उन्होंने 31 दिसंबर 2014 या उससे पहले भारत में शरण ली थी।