भारत कहता रहा है कि जब तक सीमावर्ती इलाकों में शांति नहीं होगी तब तक चीन के साथ उसके संबंध सामान्य नहीं हो सकते।
जून 2020 में गलवान घाटी में हुई भीषण झड़प के बाद द्विपक्षीय संबंध बहुत ही खराब हुए थे। गलवान का संघर्ष पिछले चार दशकों से अधिक समय में दोनों पक्षों के बीच सबसे गंभीर सैन्य संघर्ष था।
इस सप्ताह विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने टिप्पणी की थी कि वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर सैनिकों के जमावड़े से “हमारा कोई फायदा नहीं हुआ”।
इस टिप्पणी के बारे में पूछे जाने पर चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता वांग वेनबिन ने कहा कि सीमा मुद्दे को द्विपक्षीय संबंधों में उचित रूप से रखा जाना चाहिए।
जयशंकर ने सोमवार को ‘एक्सप्रेस अड्डा’ पर एक चीनी राजनयिक के सवाल का जवाब देते हुए कहा था, “मुझे लगता है कि यह हमारे साझा हित में है कि वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर इतनी अधिक सेना नहीं होनी चाहिए।”
जयशंकर ने कहा था, “यह हमारे साझा हित में है कि हम उन समझौतों का पालन करें, जिन पर हमने हस्ताक्षर किए हैं और मेरा मानना है कि यह न सिर्फ हमारे, बल्कि चीन के भी साझा हित में है।”
उन्होंने कहा था, “पिछले चार वर्षों से हमने जो तनाव देखा है, उससे हम दोनों को कोई फायदा नहीं हुआ है।”
वांग ने अपने जवाब में कहा कि भारत और चीन का मानना है कि दोनों देशों की सीमा पर स्थिति का शीघ्र समाधान दोनों के साझा हित में है।
उन्होंने कहा, “हमें उम्मीद है कि दोनों पक्ष नेताओं के बीच आम समझ और राजनयिक तथा सैन्य माध्यम से संचार बनाए रखते हुए प्रासंगिक समझौतों की भावना का पालन करेंगे और प्रासंगिक सीमा मुद्दों का समाधान ढूंढेंगे, जिसे दोनों पक्षों द्वारा शीघ्र स्वीकार किया जा सके।”
वांग ने कहा, “हमें उम्मीद है कि भारत हमारे साथ समान दिशा में काम करेगा और द्विपक्षीय संबंधों को रणनीतिक ऊंचाई तथा दीर्घकालिक दृष्टिकोण से देखेगा।”
जब यह बताया गया कि जयशंकर की टिप्पणियों में पूर्वी लद्दाख में वर्तमान गतिरोध के समाधान का जिक्र है, जहां दोनों देशों ने हजारों सैनिकों को तैनात किया है, जबकि चीन ने समग्र सीमा मुद्दे का जिक्र किया है, तो वांग ने कहा “दोनों चीजें स्वाभाविक तौर पर एक जैसी हैं।”
उन्होंने कहा, “हमें उम्मीद है कि भारत हमारे साथ काम करेगा और दोनों नेताओं के बीच बनी आम सहमति तथा समझौतों की भावना का पालन करेगा तथा सीमा मुद्दे का जल्द से जल्द समाधान खोजने के लिए संचार कायम रखेगा।”
पूर्वी लद्दाख में कुछ जगहों पर भारतीय और चीनी सैनिकों के बीच गतिरोध बना हुआ है, जबकि दोनों पक्षों ने व्यापक राजनयिक और सैन्य वार्ता के बाद कई क्षेत्रों से सैनिकों की वापसी पूरी कर ली है।
पैंगोंग त्सो (झील) क्षेत्र में हिंसक झड़प के बाद 5 मई, 2020 को पूर्वी लद्दाख सीमा पर गतिरोध पैदा हो गया। पूर्वी लद्दाख गतिरोध के परिणामस्वरूप व्यापार को छोड़कर सभी मोर्चों पर द्विपक्षीय संबंध रुक गए हैं। गतिरोध को सुलझाने के लिए दोनों पक्षों ने अब तक कोर कमांडर स्तर की 21 दौर की वार्ता की है। चीनी सेना के अनुसार, दोनों पक्ष अब तक चार बिंदुओं, गलवान घाटी, पैंगोंग झील, हॉट स्प्रिंग्स और जियानान दबन (गोगरा) से पीछे हटने पर सहमत हुए हैं। भारत पीएलए पर देपसांग और डेमचोक से सेना हटाने का दबाव बना रहा है और उसका कहना है कि जब तक सीमाओं की स्थिति असामान्य बनी रहेगी तब तक चीन के साथ उसके संबंधों में सामान्य स्थिति की बहाली नहीं हो सकती।