यह मामला भारत में अवैध घुसपैठ और फर्जी दस्तावेज बनाने के बड़े रैकेट का गंभीर उदाहरण है। इस घटनाक्रम ने सुरक्षा, प्रशासनिक विफलता और बांग्लादेशी व रोहिंग्या मुस्लिमों द्वारा भारतीय पासपोर्ट का दुरुपयोग करने के मुद्दे को उजागर किया है।
घटना के मुख्य बिंदु:
- गिरफ्तार आरोपी और गिरोह का सरगना:
- कोलकाता पुलिस ने समरेश बिश्वास और उसके बेटे रिपन बिश्वास को गिरफ्तार किया, जो इस रैकेट के सरगना बताए जा रहे हैं।
- गिरोह में डाक विभाग के संविदा कर्मचारियों सहित अन्य लोग शामिल थे।
- फर्जी दस्तावेज और पासपोर्ट निर्माण:
- अवैध रूप से आए बांग्लादेशियों को नकली आधार कार्ड, मतदाता पहचान पत्र, और राशन कार्ड उपलब्ध करवाए गए।
- इन दस्तावेजों के आधार पर पासपोर्ट के लिए आवेदन किया गया।
- गिरोह की गतिविधियाँ:
- प्रत्येक फर्जी पासपोर्ट बनाने के लिए 2 से 5 लाख रुपये वसूले गए।
- अनुमान है कि गिरोह ने 30,000 से अधिक जाली पासपोर्ट तैयार किए।
- मालदा जैसे सीमावर्ती इलाकों से बड़ी संख्या में बांग्लादेशियों को पासपोर्ट दिए गए।
- सुरक्षा चिंताएँ:
- पिछले एक साल में मालदा में ही 16,000 से अधिक पासपोर्ट जारी किए गए।
- कई पासपोर्ट वैष्णवनगर, कालियाचक, और हबीबपुर जैसे क्षेत्रों से बने, जो भारत-बांग्लादेश सीमा से सटे हैं।
- 121 पासपोर्ट में से 73 पहले ही जारी किए जा चुके थे, जबकि 48 को खारिज कर दिया गया है।
- फर्जीवाड़े का अंतरराष्ट्रीय प्रभाव:
- बांग्लादेशी फर्जी भारतीय पासपोर्ट के जरिए यूरोपीय देशों जैसे इटली और फ्रांस में पहुँचते थे।
- यह न केवल अवैध प्रवास को बढ़ावा देता है, बल्कि आतंकी गतिविधियों की संभावना को भी बढ़ाता है।
प्रशासन और खुफिया विभाग की प्रतिक्रिया:
- जाँच और कार्रवाई:
- खुफिया एजेंसियाँ अब पासपोर्ट सेवा केंद्रों और डाकघरों की भूमिका की जाँच कर रही हैं।
- पासपोर्ट आवेदकों से 1971 से पहले के दस्तावेज माँगने की प्रक्रिया शुरू की गई है।
- नए सुरक्षा उपाय:
- सीमावर्ती इलाकों में पासपोर्ट आवेदनों की सख्त जाँच की जा रही है।
- संविदा कर्मचारियों के साथ-साथ स्थायी कर्मचारियों की भूमिका की भी जाँच हो रही है।
चुनौतियाँ और सुरक्षा चिंताएँ:
- सीमा प्रबंधन की विफलता:
- भारत-बांग्लादेश सीमा पर घुसपैठ रोकने की रणनीतियों में खामियाँ उजागर हुईं।
- प्रशासनिक भ्रष्टाचार:
- डाकघर और पासपोर्ट सेवा केंद्र जैसे महत्वपूर्ण संस्थानों में भ्रष्टाचार का खुलासा।
- अंतरराष्ट्रीय प्रभाव:
- फर्जी भारतीय पासपोर्ट के जरिए बांग्लादेशी और रोहिंग्या मुस्लिम यूरोप में प्रवेश कर रहे हैं, जिससे भारत की अंतरराष्ट्रीय छवि को नुकसान पहुँच सकता है।
- आतंकी खतरा:
- फर्जी पासपोर्ट का उपयोग आतंकी गतिविधियों के लिए होने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता।
यूपी ATS ने भी पिछले साल किया था खुलासा
उत्तर प्रदेश ATS ने हिन्दू नाम से भारतीय लोगों के फर्जी दस्तावेज लगाकर बांग्लादेशी और रोहिंग्या मुसलमानों को विदेश भेजने वाले रैकेट का नवंबर 2021 को पर्दाफाश किया था। ATS ने इस रैकेट से जुड़े एक आरोपित को सहारनपुर से गिरफ्तार किया है। आरोपित का नाम अजय घिल्डियाल था, जो एयर इंडिया के कस्टमर केयर में काम करता था।
अजय पर अब तक लगभग 40 लोगों को फर्जी दस्तावेजों के सहारे स्पेन, ब्रिटेन सहित अन्य यूरोपीय देशों भेजे जाने का आरोप लगे थे। ATS ने बांग्लादेश और म्यांमार से मुस्लिमों को भारत में हिन्दू नाम से प्रवेश करवाने वाले रैकेट का खुलासा किया था। इस मामले में मानव तस्करी गिरोह का मददगार विक्रम को गाज़ियाबाद और समीर मंडल को भी पश्चिम बंगाल के 24 परगना से गिरफ्तार किया गया था।
समीर मंडल ट्रैवल एजेंसी चलाता था। ये आरोपित बांग्लादेशियों और रोहिंग्या मुसलमानों को भारत की नागरिकता दिलाने का भी काम करते थे। इसी भारतीय नागरिकता के सहारे बांग्लादेशियों और रोहिंग्याओं को विदेश भेजा जाता था। विक्रम से हुई पूछताछ के बाद उसके सहयोगी अजय घिल्डियाल को पकड़ा गया था।
अजय फर्जी दस्तावेजों के सहारे विदेश भेजे जाने वाले हर व्यक्ति पर 15 हजार रुपए लेता था। इस पैसे में कई अन्य कर्मचारी भी हिस्सा बँटवाते थे, जो एयरलाइंस ड्यूटी में तैनात थे। इस मामले में एक अन्य आरोपित गुरप्रीत था, जो लंदन पासपोर्ट ऑफिस में काम करता था। गुरप्रीत आरोपित अजय को फोन पर निर्देश दिया करता था।