समलैंगिंक जोड़ों के शादी के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट ने खास टिप्पणी की. यह मामला पांच जजों की पीठ के सामने था जिसकी अगुवाई सीजेई डी वाई चंद्रचूड़ कर रहे थे, फैसले से पहले अदालत ने कई अहम टिप्पणी की. सीजेआई ने कहा कि आर्टिकल 21 के तहत यह अधिकार है, इसके साथ ही जेंडर और सेक्सुअलिटी दो अलग अलग मुद्दे हैं. हर एक को अपने जीवनसाथी के चुनने का अधिकार है. कसी भी शख्स की मनोस्थिति का भी ध्यान रखा जाना चाहिए. होमो सेक्सुअल को भी समान अधिकार मिलना चाहिए.
- सीजेआई ने कहा कि कोर्ट का कितना दखल जरूरी इस पर विचार जरूरी
- सकार ने कहा कि समलैंगिकता सिर्फ शहरों तक सीमित है
- ये बात अलग है कि समलैंगिक गांवों में भी रहते हैं.
- सबको अपना जीवनसाथी चुनने का अधिकार है.
- समय के साथ जीवनशैली में बड़े बदलाव हुए हैं
- अनुच्छेद 21 के तहत अधिकार है.
- जेंडर और सेक्सुअलिटी एक नहीं हैं.
- स्पेशल मैरिज एक्ट में कोर्ट बदलाव नहीं कर सकता.
- केंद्र और राज्य सरकारें इस विषय पर भेदभाव खत्म करें
समलैंगिक शादी के समर्थन में तर्क
- स्पेशल मैरिज के तहत मान्यता दिए जाने का तर्क
- मौलिक अधिकार से जुड़ा है मामला
- संवैधानिक व्यवस्था से नहीं जुड़ा है केस
- शहरी सोच का नतीजा नहीं
- कानूनी हक के दायरे से बाहर हैं बच्चे
केंद्र सरकार की दलील
- यह जटिल विषय है और समाज पर असर पड़ेगा
- इस विषय पर सरकार कमेटी गठित करने के लिए है तैयार
- अलग अलग धर्मों में समलैंगिक शादी को मान्यता नहीं
- समलैंगिक जोड़ों को बच्चों के गोद लेने पर ऐतराज
11 मई को फैसला रखा गया था सुरक्षित
इस विषय पर सुप्रीम कोर्ट में 18 अप्रैल 2023 से सुनवाई शुरू हुई थी और 11 मई को अदालत ने फैसला सुरक्षित रख लिया था. चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली पांच जजों की पीठ के सामने शादी के पक्ष और विपक्ष में दिलचस्प दलीलें पेश की गईं थीं. याचिकाकर्ताओं ने समलैंगिंक शादियों को मान्यता देने की अपील की है जबकि केंद्र सरकार ने प्राकृतिक व्यवस्था का हवाला देते हुए विरोध किया था..