बीजेपी अल्पसंख्यक मोर्चा ने ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (AIMPLB) से ‘बोर्ड’ शब्द को हटाने की मांग की है, और इसके लिए एक पत्र भी लिखा है। बीजेपी अल्पसंख्यक मोर्चा के अध्यक्ष जमाल सिद्दीकी ने AIMPLB के अध्यक्ष खालिद रहमानी को पत्र भेजकर कहा कि ‘बोर्ड’ शब्द से यह भ्रम होता है कि यह संस्था सरकारी है, जबकि यह एक गैर सरकारी संस्था है। सिद्दीकी ने यह भी आरोप लगाया कि ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड में पसमांदा मुस्लिम समुदाय का उचित प्रतिनिधित्व नहीं है, और यह केवल एक छोटे से हिस्से का प्रतिनिधित्व करता है।
उन्होंने यह भी कहा कि बोर्ड अपने आर्थिक लेन-देन और चंदा लेने की प्रक्रिया को सार्वजनिक नहीं करता, और इस मुद्दे पर सवाल उठाते हुए मांग की कि ‘बोर्ड’ शब्द को हटाया जाए ताकि देश के मुसलमान भ्रमित न हों।
इसके अलावा, सिद्दीकी ने दावा किया कि ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने पसमांदा मुस्लिम समाज के लिए कभी आवाज नहीं उठाई, जबकि इस समुदाय के लोग भारत में मुसलमानों का 80 फीसदी हिस्सा हैं।
क्या है ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड?
ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की स्थापना 7 अप्रैल 1972 को हुई थी. यह एक गैर-राजनीतिक संगठन है. भारत में मुस्लिम पर्सनल लॉ के एप्लीकेशन की रक्षा करना और उसे बढ़ावा देना है. यह संगठन मुस्लिम कानूनों की रक्षा करने, भारत सरकार के साथ संपर्क करने और महत्वपूर्ण मुद्दों पर आम जनता का मार्गदर्शन करने के लिए काम करता है.
बोर्ड में अधिकांश मुस्लिम संप्रदायों का प्रतिनिधित्व किया जाता है. बोर्ड के पास 51 उलेमा की एक कार्य समिति है जो तमाम मुद्दों पर सरकार के सामने अपनी राय रखती है. इसमें लगभग 25 महिलाओं सहित उलेमा के 201 व्यक्तियों के साथ-साथ आम आदमी भी शामिल हैं.