77 कॉलेज, 16 फैक्लटी और 86 डिपार्टमेंट वाली दिल्ली यूनिवर्सिटी (डीयू) देश की नंबर वन यूनिवर्सिटी बन गई है. जी हां, ब्रिटेन की नंबर वन सर्वे कंपनी क्यूएस वर्ल्ड रैकिंग ने डीयू को भारत की टॉप यूनिवर्सिटी के खिताब से नवाजा है. खास बात यह है कि डीयू ने इस रेस में कई आईआईटी और आईआईएम को पीछे छोड़ दिया.
यही नहीं दुनिया भर में डीयू की रैंकिंग पहले से सुधरी है. डीयू की रैंकिंग पिछले साल 441-451 के बीच थी जो इस साल घटकर 421-430 के बीच आ गई है. इस साल दिल्ली यूनिवर्सिटी का स्थान भारत की पांच आईआईटी से ऊपर है. हाल ही में डीयू के पेंशन और प्रोमोशन के मुद्दों पर लिए गए फैसलों की भले ही दिल्ली यूनिवर्सिटी टीचर्स एसोसिएशन (DUTA) ने काफी आलोचना की हो, लेकिन डीयू को पूरे भारत में ‘एम्प्लॉयर्स रेप्यूटेशन’ में पहला स्थान मिला है, जबकि इस पैरामीटर में वर्ल्ड रैंकिग 122वीं है. एंप्लॉयर्स रेप्यूटेशन के मामले में यूनिवर्सिटी ऑफ मुंबई को दूसरा स्थान दिया गया है. वहीं, एकैडमिक रेप्यूटेशन में डीयू की वर्ल्ड रैंकिंग 196 हो गई है, जो अब तक किसी भी भारतीय यूनवर्सिटी को दी गई सर्वोच्च रैंकिंग है. इसके अलावा डीयू के सोशल साइंस डिपार्टमेंट को पहला (166 वर्ल्ड रैंकिंग) और आर्ट्स (194 वर्ल्ड रैंकिंग) तथा नेचुरल साइंस (220 वर्ल्ड रैकिंग) डिपार्टमेंट को दूसरा स्थान मिला है.
किसी भी रैंकिग में कई पैरामीटर होते है जिसमें कोर्स से लेकर इंफ्रास्ट्रक्चर, फैक्लटी और टीचिंग मेथडेलॉजी तक सबको ध्यान में रखा जाता है. पिछले कुछ सालों में यूनिवर्सिटी में कई बदलाव हुए हैं. कई नए कोर्स लांच किए गए. साथ ही कैंपस को हाई टेक बनाने की भी कोशिश की गई. हालांकि डीयू प्रशासन का मानना है कि फंड की कमी के चलते यूनिवर्सिटी कई मामलों में पिछड़ जाती है.
इसमें कोई शक नही कि डीयू ने दुनिया भर में अलग पहचान बनाई है और यहां दाखिला लेना किसी चुनौती से कम नहीं. हर साल बढ़ती कट ऑफ. और इस तरह के खिताब बताते है कि क्यों यहां पढ़ना हर छात्र का सपना है. गौरतलब है कि ब्रिटेन की सर्वे कंपनी ‘QS यूनिवर्सिटी वर्ल्ड रैंकिग’ हर साल ये सर्वे करती है. इस साल इस सर्वे में दुनियाभर की कुल 800 विश्वविद्यालयों को शामिल किया गया.
इस बार 95 देशों के 1,397 संस्थान शामिल रहे
उच्च शिक्षा विश्लेषक क्यूएस क्वाक्वेरेली साइमंड्स द्वारा संकलित ‘क्यूएस वर्ल्ड यूनिवर्सिटी रैंकिंग सस्टेनेबिलिटी 2024’ में इस बार 95 देशों के 1,397 संस्थान शामिल हैं जोकि पिछले साल के प्रायोगिक संस्करण की संख्या से दोगुने से भी अधिक हैं। विश्वविद्यालयों के प्रदर्शन का मूल्यांकन तीन मापदंडों पर किया गया है पर्यावरणीय प्रभाव, सामाजिक प्रभाव और शासन। इसमें देखा गया कि विश्वविद्यालय दुनिया की सबसे गंभीर वैश्विक चुनौतियों से निपटने के लिए कैसे कार्य कर रहे हैं।
क्यूएस के वरिष्ठ उपाध्यक्ष बेन सोटर ने कहा-‘ भारत दुनिया के सबसे बड़े कार्बन डाइआक्साइड उत्सर्जकों में से एक के रूप में एक विकट चुनौती का सामना कर रहा है और 2070 तक शुद्ध शून्य उत्सर्जन का लक्ष्य हासिल करने की अपनी प्रतिबद्धता को पूरा करने के लिए अहम जिम्मेदारी उठा रहा है। इस संदर्भ में भारतीय विश्वविद्यालयों की भूमिका महत्वपूर्ण है क्योंकि उनकी संख्या में विस्तार और गुणवत्ता में सुधार जारी है।