राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने मंगलवार को कहा कि उच्चतर न्यायपालिका में अंग्रेजी का इस्तेमाल और वहां का खर्च न्याय तक समान पहुंच की राह की बड़ी बाधा हैं। उन्होंने इन बाधाओं को दूर करने पर जोर दिया। वे यहां ‘कमजोर लोगों के लिए गुणवत्तापूर्ण कानूनी सहायता तक पहुंच सुनिश्चित करना: ग्लोबल साउथ में चुनौतियां और अवसर’ विषय पर आयोजित सम्मेलन को संबोधित कर रही थीं।
राष्ट्रपति ने समानता पर दिया जोर
उन्होंने खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले लोगों और सामाजिक रूप से वंचित समूहों के लोगों के बीच जागरूकता अभियान शुरू करने की आवश्यकता पर बल दिया ताकि उन्हें उनके अधिकारों से अवगत कराया जा सके।
उन्होंने कहा कि समानता न सिर्फ न्याय की बुनियाद है, बल्कि उसकी एक जरूरी शर्त भी है। बहुत समय हो गया जब दुनिया ने यह घोषणा की थी कि सभी मनुष्य समान हैं, लेकिन हमें खुद से पूछने की जरूरत है कि क्या हम सभी को वास्तव में न्याय तक समान पहुंच प्राप्त है?
राष्ट्रपति ने नालसा के कामों की तारीफ की
राष्ट्रपति ने कहा कि इसका मतलब यह है कि काफी संख्या में लोग कई कारणों की वजह से अपनी शिकायतों के निवारण में असमर्थ होते हैं। उन्होंने कहा कि हमारा प्रमुख काम उन अवरोधकों को हटाना है। स्वाभाविक रूप से सबसे बड़ा अवरोधक अक्सर न्याय प्राप्त करने पर आने वाला खर्च है।
उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण (नालसा) द्वारा उठाए गए कदमों ने भी कानूनी सहायता के विस्तार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। राष्ट्रपति मुर्मु ने कहा कि कुल मिलाकर उद्देश्य न्याय प्राप्त करने में सहूलियत को बढ़ाना है, लेकिन मुझे लगता है कि लोगों के बीच जागरूकता अभियान शुरू करने की जरूरत है। न केवल उन्हें उनके अधिकारों के प्रति सचेत किया जाए, बल्कि उन्हें आवश्यकता पड़ने पर कानूनी सहायता दिलाने में भी मदद की जाए।
सुप्रीम कोर्ट की पहल सराहनीयः राष्ट्रपति
उन्होंने कहा कि भारत में उच्चतर न्यायपालिका की भाषा अंग्रेजी है, जिससे समाज के एक बड़े वर्ग के लिए न्यायिक प्रक्रियाओं को समझना मुश्किल हो जाता है। उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने अपनी वेबसाइट पर विभिन्न क्षेत्रीय भाषाओं में फैसले प्रकाशित करना शुरू कर दिए हैं। कानूनी सहायता संस्थान भी भाषाई अंतर को पाटने में मदद करते हैं। साथ ही उन्होंने कहा कि प्रौद्योगिकी कानूनी सहायता तक पहुंच को और अधिक लोकतांत्रिक बनाने में बहुत बड़ी भूमिका निभाती है।
चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि कई देशों के शीर्ष न्यायाधीश इस बात पर सहमत हैं कि कानूनी सहायता का अधिकार जल्द से जल्द लागू होना चाहिए, यहां तक कि किसी आरोपित की गिरफ्तारी से पहले भी। उन्होंने कहा कि न्यायाधीशों को न केवल छात्रों बल्कि जनता को भी इसके बारे में शिक्षित करने की जरूरत है।
उन्होंने न्यायपालिका तक लोगों की पहुंच को बढ़ावा देने में प्रौद्योगिकी के महत्व पर भी चर्चा की। कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने कहा कि क्षेत्रीय भाषाओं में अपने फैसले उपलब्ध कराने के उच्चतम न्यायालय के कदम को अन्य देश भी दोहरा सकते हैं। यह शीर्ष कोर्ट का सराहनीय कदम है। सम्मेलन में ‘ग्लोबल साउथ’ के 69 देशों ने भागीदारी की, जोकि अफ्रीका और एशिया-प्रशांत क्षेत्र में स्थित हैं।