गुजरात हाई कोर्ट ने गुरुवार (3 अक्टूबर 2024) को मुस्लिमों की मस्जिद, दरगाह और कब्रों के हटाने के संबंध में यथास्थिति बरकरार रखने का आदेश देने से इनकार कर दिया। दरअसल, इन कार्रवाई करने के लिए 28 सितंबर को गिर सोमनाथ में अधिकारियों द्वारा आदेश दिया गया था। प्रशासन ने अतिक्रमण विरोधी कार्रवाई में अवैध रूप से बने मजहबी निर्माणों को भी ध्वस्त कर दिया था।
औलिया-ए-दीन कमेटी नाम के वक्फ द्वारा दायर याचिका पर राज्य सरकार को नोटिस जारी करते हुए न्यायमूर्ति संगीता के. विशेन की एकल पीठ ने अपने मौखिक आदेश में कहा, “जहाँ तक यथास्थिति का सवाल है, इसमें कोई विवाद नहीं है कि 1983 में राज्य सरकार द्वारा इस अदालत के समक्ष बॉम्बे लैंड रेवेन्यू कोड की धारा 37 के तहत जाँच कराने के बारे में एक बयान दिया गया था।”
न्यायमूर्ति संगीता विशेन ने आगे कहा, “डिप्टी कलेक्टर ने अपनी जाँच के बाद एक आदेश पारित किया, जिसके तहत भूमि को राज्य सरकार की भूमि घोषित किया गया था। इसके खिलाफ कलेक्टर के समक्ष अपील दायर की गई थी और यह याचिकाकर्ता के लिए किसी भी रोक या सुरक्षा के बिना लंबित है।” कोर्ट ने राज्य की इस दलील पर भी गौर किया कि ये कदम अतिक्रमण हटाने के लिए उठाए गए हैं।
अदालत ने आगे कहा कि साल 2015 में याचिकाकर्ता द्वारा एक सिविल मुकदमा दायर किया गया था और वरिष्ठ सिविल जज ने शुरू में रोक लगा दी थी। इसके बाद 2020 में याचिकाकर्ता द्वारा वादपत्र वापस करने के लिए एक आवेदन दायर किया गया, जिसे 18 जनवरी 2020 को अनुमति दे दी गई। वादपत्र वापस कर दिया गया और मामला अब वक्फ ट्रिब्यूनल के समक्ष लंबित है।
न्यायमूर्ति विशेन ने आगे कहा कि वक्फ ट्रिब्यूनल में भी रोक नहीं लगाई गई। हाई कोर्ट ने भी इस साल अलग-अलग अवमानना कार्यवाही में इस पारित आदेश पर ध्यान दिया है। इसलिए यह स्पष्ट रूप से दर्ज किया गया है कि कोई रोक नहीं दी गई थी। 18 जनवरी 2020 के आदेश के खिलाफ इस अदालत के समक्ष एक रिट याचिका दायर की गई है और वह लंबित है।
कोर्ट ने कहा कि इस अदालत की प्रथम दृष्टया राय में याचिकाकर्ता किसी भी यथास्थिति का हकदार नहीं है और इसलिए इसे खारिज कर दिया गया है। कोर्ट ने कहा, “इस अदालत की प्रथम दृष्टया राय में याचिकाकर्ता संपत्ति का प्रबंधक होने का दावा करता है, लेकिन याचिका के रिकॉर्ड पर रखा गया पीटीआर किसी भी संपत्ति का संकेत नहीं देता है। याचिकाकर्ता के वकील ने इसे स्वीकार किया है।”
रिपोर्ट के मुताबिक, कोर्ट ने इस मामले की अगली सुनवाई के लिए 24 अक्टूबर की तारीख तय की है। इसके साथ ही अदालत ने प्रतिवादी राज्य के अधिकारियों से हटाए गए अतिक्रमण का विवरण प्रदान करने के लिए कहा है। इसमें इमारत की प्रकृति, जिस वर्ष यह बना, भौगोलिक संकेत (यानी स्थान) और वर्ष संरचनाओं का अंकन आदि सहित संपत्तियों का ब्योरा भी शामिल है।
दरअसल, अवैध अतिक्रमण हटाने की कार्रवाई में 36 बुलडोजर, 70 ट्रैक्टर-ट्रॉली और 1500 से अधिक पुलिसकर्मियों की तैनाती की गई थी। मलबा हटाने के लिए 50 ट्रैक्टर और 10 बड़े डंपरों को लगाया गया। गिर सोमनाथ में विशेष रूप से समुद्री इलाकों और पूजा स्थलों के आसपास के अवैध निर्माणों को हटाने के उद्देश्य से यह मेगा अभियान चलाया गया।
इस मेगा ड्राइव के दौरान प्रशासन ने ईदगाह और मस्जिद सहित कई अवैध मजहबी स्थलों को हटाया, जिससे कुछ स्थानीय मुस्लिम समुदाय के लोग विरोध में एकत्रित हो गए। विरोध के बावजूद, प्रशासन ने सख्ती से स्थिति को नियंत्रण में लिया और कार्रवाई को सफलतापूर्वक अंजाम दिया। यह विध्वंस अभियान पिछले एक महीने से तैयार किया जा रहा था।
प्रशासन ने करीब एक महीने तक सर्वेक्षण किया और सभी अवैध निर्माणों की पहचान की। हाजी मंगरोलीशा पीर दरगाह, हजरत माईपुरी, सीपे सालार और मस्तानशा बापू जैसी प्रमुख दरगाहों को भी इस कार्रवाई के दौरान हटाया गया। प्रशासन ने यह सुनिश्चित किया कि इस प्रक्रिया के दौरान शांति व्यवस्था बनी रहे और विध्वंस कार्य सफलतापूर्वक पूरा हो सके।
वक्फ के मुतवल्ली (प्रबंधक/ट्रस्टी) ने एक याचिका दायर करके प्रशासन की कार्रवाई को अवैध और असंवैधानिक बताया। साथ ही कहा कि प्रशासन ने सदियों पुराने मस्जिदों, ईदगाहों, दरगाहों और कब्रों को गिरा दिया। याचिका में यह भी कहा गया कि तोड़फोड़ से पहले कोई नोटिस नहीं दी गई थी। याचिका में यह भी कहा गया कि मामला वक्फ ट्रिब्यूनल में होने के बावजूद कार्रवाई की गई।