ज्ञानवापी मामले में सुप्रीम कोर्ट ने एक बार फिर महत्वपूर्ण निर्णय लेते हुए मुस्लिम पक्ष और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है। यह मामला ज्ञानवापी ढांचे के अंदर कथित शिवलिंग के सर्वेक्षण और 1991 के पूजा स्थल अधिनियम (Places of Worship Act) के दायरे में आने वाले मुद्दों से संबंधित है।
सुप्रीम कोर्ट के निर्देश:
- मुस्लिम पक्ष और ASI से जवाब तलब:
- सुप्रीम कोर्ट ने दो हफ्तों के भीतर मुस्लिम पक्ष और ASI से इस मामले पर जवाब मांगा है।
- हिंदू पक्ष का कहना है कि शिवलिंग की वीडियोग्राफी और सर्वे से जुड़े पहलुओं को स्पष्ट किया जाए।
- ज्ञानवापी के सीलबंद क्षेत्र का मुद्दा:
- कोर्ट ने सीलबंद क्षेत्र के सर्वेक्षण से जुड़े मुद्दों को प्राथमिकता देते हुए सुनवाई करने की बात कही।
- मई 2022 में सुप्रीम कोर्ट ने इस क्षेत्र को सील करने का निर्देश दिया था, जिससे यह स्थान विवाद का केंद्र बन गया।
- मामलों का ट्रांसफर:
- सुप्रीम कोर्ट ने ज्ञानवापी से जुड़े 15 मामलों को इलाहाबाद हाई कोर्ट में ट्रांसफर करने के सवाल पर भी विचार किया।
- यह सुनिश्चित किया जाएगा कि सभी संबंधित मामलों की सुनवाई एक ही जगह पर हो।
- अगली सुनवाई:
- सुप्रीम कोर्ट ने 17 दिसंबर को इन सभी मामलों पर सुनवाई की तारीख तय की है और कहा है कि आगे साप्ताहिक या पाक्षिक आधार पर इस मामले को सुना जाएगा।
मामले की पृष्ठभूमि:
- शिवलिंग का दावा:
- 2022 में इलाहाबाद हाई कोर्ट के आदेश पर ASI ने ज्ञानवापी ढांचे का सर्वेक्षण किया।
- इस सर्वे में वजूखाना के अंदर शिवलिंग मिलने का दावा किया गया, जिसे मुस्लिम पक्ष ने एक फव्वारा बताया।
- 1991 का पूजा स्थल अधिनियम:
- मुस्लिम पक्ष का कहना है कि ज्ञानवापी मस्जिद का मामला 1991 के पूजा स्थल अधिनियम के तहत संरक्षित है, जो कहता है कि 15 अगस्त 1947 को जो पूजा स्थल जिस स्वरूप में था, उसे उसी रूप में रखा जाएगा।
- हिंदू पक्ष इस दावे को चुनौती देते हुए कहता है कि यह स्थल मूलतः एक सनातन धर्म का प्रतीक है, जिसे औरंगजेब ने तोड़कर मस्जिद में परिवर्तित कर दिया था।
- संवेदनशीलता:
- यह मामला केवल कानूनी नहीं बल्कि धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टि से भी संवेदनशील है।
- हिंदू पक्ष इसे अपने अधिकारों से जुड़ा मामला मानता है, जबकि मुस्लिम पक्ष इसे अपने धार्मिक स्थल की सुरक्षा का प्रश्न मानता है।
आगे की संभावनाएं:
- सुप्रीम कोर्ट ने संकेत दिया है कि वह इस मामले को तेजी से सुलझाने के लिए नियमित सुनवाई करेगा।
- ASI का सर्वेक्षण और 1991 के अधिनियम की वैधानिकता पर आने वाला फैसला इस विवाद में अहम भूमिका निभाएगा।
- इस मामले का निर्णय न केवल स्थानीय स्तर पर बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर धार्मिक सौहार्द और सांस्कृतिक धरोहर के संरक्षण को भी प्रभावित करेगा।
यह मामला अब एक निर्णायक मोड़ पर है, और सुप्रीम कोर्ट की भूमिका इस विवाद के समाधान में सबसे महत्वपूर्ण होगी।