चीन द्वारा तिब्बत में ब्रह्मपुत्र नदी (यारलुंग त्सांगपो) पर 60,000 मेगावाट का मेगा डैम बनाने की योजना भारत के लिए एक रणनीतिक और जल-सुरक्षा संबंधी चिंता का विषय है। भारत सरकार ने इसे लेकर अपनी सतर्कता बनाए रखने की बात कही है और केंद्रीय मंत्री कीर्ति वर्धन सिंह ने राज्यसभा में बताया कि सरकार चीन की जलविद्युत परियोजनाओं पर नजर रख रही है।
भारत की चिंता क्यों है?
- जल प्रवाह पर नियंत्रण: ब्रह्मपुत्र नदी भारत और बांग्लादेश के लिए एक महत्वपूर्ण जल स्रोत है। चीन द्वारा इसके ऊपरी हिस्से में किसी भी बड़े बांध का निर्माण नदी के जल प्रवाह को प्रभावित कर सकता है।
- सूखा और बाढ़ का खतरा: अगर चीन पानी रोकता है, तो भारत के पूर्वोत्तर राज्यों में सूखा पड़ सकता है, जबकि अचानक पानी छोड़ने से असम और अरुणाचल प्रदेश में विनाशकारी बाढ़ आ सकती है।
- रणनीतिक जोखिम: तिब्बत में चीन की गतिविधियाँ केवल जलविद्युत तक सीमित नहीं हैं, बल्कि यह भारत के लिए भू-राजनीतिक चुनौती भी बन सकती हैं।
भारत सरकार की रणनीति
- भारत इस मुद्दे पर चीन के साथ 2006 से एक संस्थागत विशेषज्ञ-स्तरीय तंत्र के माध्यम से बातचीत करता रहा है।
- चीन से यह सुनिश्चित करने को कहा गया है कि कोई भी निर्माण भारत और बांग्लादेश के हितों को नुकसान न पहुँचाए।
- भारत सरकार ब्रह्मपुत्र की सहायक नदियों पर अध्ययन कर रही है ताकि जलविद्युत परियोजनाओं के संभावित प्रभावों का विश्लेषण किया जा सके।
चीन के डैम की विशेषताएँ
- स्थान: मेडोग काउंटी, तिब्बत
- क्षमता: 60,000 मेगावाट (यह दुनिया का सबसे बड़ा हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट होगा)
- लागत: अनुमानित 137 अरब अमेरिकी डॉलर
- प्रभाव: ब्रह्मपुत्र नदी के प्रवाह और पारिस्थितिकी तंत्र पर बड़ा प्रभाव पड़ सकता है।
भारत इस परियोजना पर गहरी नजर बनाए हुए है और इस मुद्दे को कूटनीतिक और तकनीकी स्तर पर उठाने के प्रयास कर रहा है। हालांकि, चीन की जलविद्युत परियोजनाओं के चलते भारत को दीर्घकालिक जल-सुरक्षा और पूर्वोत्तर राज्यों में संभावित आपदाओं से निपटने की ठोस योजना बनानी होगी।