भारत की ओर से सिंधु जल संधि को निलंबित कर “जल को हथियार” के रूप में इस्तेमाल करना पाकिस्तान के खिलाफ एक बड़ा रणनीतिक कदम है। पहलगाम में 26 हिंदू तीर्थयात्रियों की निर्मम हत्या ने न केवल जनभावनाओं को झकझोर दिया है, बल्कि अब भारत ने स्पष्ट कर दिया है कि आतंकवाद का जवाब केवल सीमा पर गोलियों से नहीं, बल्कि हर मोर्चे पर दिया जाएगा—सैन्य, कूटनीतिक, और जल नीति के स्तर पर भी।
भारत के जवाब की प्रमुख विशेषताएं:
1. बगलिहार डैम के फाटक बंद करना – चेनाब नदी पर जल प्रवाह रोका:
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स्थान: जम्मू-कश्मीर में चेनाब नदी पर स्थित।
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प्रभाव: पाकिस्तान के पंजाब क्षेत्र में सिंचाई संकट उत्पन्न होने की आशंका।
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प्रमुख हिट: गेहूं, गन्ना, चावल जैसी फसलें बुरी तरह प्रभावित होंगी।
2. किशनगंगा डैम के ज़रिए झेलम नदी पर नियंत्रण की योजना:
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पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर (PoK) में झेलम नदी के बहाव को भारत घटा-बढ़ा सकता है।
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बिना किसी चेतावनी के जल स्तर में बदलाव पाकिस्तान में बाढ़ या सूखे जैसी स्थिति ला सकता है।
3. सिंधु जल संधि का निलंबन – 1960 के इतिहास में पहली बार इतना सख्त कदम:
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भारत ने तीन युद्धों (1965, 1971, 1999) के बावजूद इस संधि को नहीं तोड़ा था।
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लेकिन अब जब आतंकवाद की चपेट में आम नागरिक आ रहे हैं, भारत ने “दया नहीं, कार्रवाई” की नीति अपनाई है।
पाकिस्तान की प्रतिक्रिया और भारत की कूटनीतिक स्थिति:
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पाकिस्तान “पानी को लेकर युद्ध” की धमकी दे रहा है, लेकिन उसकी खुद की स्थिति कमजोर है:
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घरेलू आर्थिक संकट
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IMF की शर्तें
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कृषि निर्भरता जल पर (80% से ज्यादा)
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भारत ने “पानी उसका है, जिसे नदी का स्रोत मिला हो” का तर्क देकर नैतिक और भौगोलिक बढ़त बना ली है।
भारत का मास्टरस्ट्रोक क्यों है यह निर्णय?
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अंतरराष्ट्रीय मंच पर दबाव बनाने के बजाय सीधी कार्रवाई।
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पाकिस्तान की आर्थिक और खाद्य सुरक्षा को बिना गोली चलाए झटका।
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देश के भीतर जनता को यह संदेश: अब “सहन नहीं, प्रतिकार” का समय है।
निष्कर्ष:
भारत ने अब “स्ट्रेटेजिक टॉलरेंस” की सीमा पार कर ली है। आतंक के प्रायोजकों को कूटनीतिक, सामरिक और जलनीति से जवाब दिया जा रहा है। बगलिहार डैम और किशनगंगा परियोजनाएं अब केवल हाइड्रोपावर नहीं, बल्कि भारत की नई सुरक्षा नीति का प्रतीक बन चुकी हैं।