भारत की कूटनीतिक चाल: “तुर्की की दुखती रग”
- ऑपरेशन सिंदूर में भारत ने जिस तरह पाकिस्तान के आतंकी इंफ्रास्ट्रक्चर को नष्ट किया, उसने पाकिस्तान के “आतंकी साझेदारों” को भी असहज कर दिया।
- तुर्की की प्रतिक्रिया—भारत की कार्रवाई की आलोचना और पाकिस्तान का समर्थन—कूटनीतिक रूप से पाखंड (hypocrisy) के रूप में सामने आया, क्योंकि तुर्की खुद NATO का सदस्य है और आतंकवाद के खिलाफ वैश्विक प्रतिबद्धताओं की बात करता है।
खुफिया रिपोर्ट्स में बड़े खुलासे:
- तुर्की का आतंकी समर्थन:
- ISIS, अल-कायदा और HTS जैसे संगठनों को लॉजिस्टिक, फाइनेंशियल और प्लेटफॉर्म सपोर्ट।
- हमास के नेताओं को तुर्की में शरण, फंडिंग और राजनीतिक मंच।
- एनजीओ और कंपनियों का इस्तेमाल:
- जैसे: Al Amaan Cargo (IRGC से लिंक), Trend GYO (हमास के पास 75% शेयर) – इनका उपयोग आतंकी फंडिंग और ऑपरेशन्स के लिए।
- 2024 में एर्दोआन की हमास प्रमुख से मुलाकात:
- इस्माइल हनिया को तुर्की में मुख्यालय ऑफर करना इस बात का स्पष्ट संकेत है कि तुर्की केवल राजनीतिक समर्थन नहीं, रणनीतिक शरण भी दे रहा है।
भारत की तुलना और रणनीति:
- भारत ने तुर्की के कुर्द नीति (Kurd Repression) को उजागर कर उसकी दोहरी भूमिका को ग्लोबल फोरम पर रख दिया।
- पाकिस्तान और तुर्की की समानता दिखाना—दोनों स्टेट-स्पॉन्सर्ड टेररिज्म के समर्थन में—एक रणनीतिक नैरेटिव सेट करना है जो तुर्की को वैश्विक मंच पर घेरता है।
NATO और पश्चिम के लिए चुनौती:
- तुर्की की यह भूमिका NATO की साख पर सवाल खड़े करती है, जो खुद आतंकवाद के खिलाफ संघर्ष का दावा करता है।
- भारत का यह स्टैंड पश्चिमी देशों को तुर्की की भूमिका की समीक्षा के लिए बाध्य कर सकता है।
निष्कर्ष: भारत ने क्या हासिल किया?
- कूटनीतिक बढ़त – भारत ने ना केवल पाकिस्तान को सैन्य रूप से पछाड़ा, बल्कि तुर्की जैसे देशों की दोहरी नीति को ग्लोबल एजेंडे पर लाया।
- वैश्विक नैरेटिव कंट्रोल – भारत ने आतंकवाद के खिलाफ अपनी पोजीशन को और मजबूत किया, जबकि तुर्की जैसे देश सवालों के घेरे में आ गए।