सावित्रीबाई फुले (3 जनवरी 1831 – 10 मार्च 1897) भारत की पहली महिला शिक्षिका, कवयित्री, और समाज सुधारक थीं। उन्होंने महिलाओं और वंचित वर्गों के लिए शिक्षा और समानता का मार्ग प्रशस्त किया। सावित्रीबाई ने अपने पति, महात्मा ज्योतिराव फुले के साथ मिलकर सामाजिक कुरीतियों जैसे जातिवाद, बाल विवाह, विधवा प्रथा, और लैंगिक भेदभाव के खिलाफ संघर्ष किया।
जीवन परिचय
- जन्म:
सावित्रीबाई का जन्म महाराष्ट्र के सतारा जिले के नायगांव में एक किसान परिवार में हुआ था। - शिक्षा:
एक समय जब महिलाओं की शिक्षा को पाप समझा जाता था, सावित्रीबाई ने ज्योतिराव फुले की मदद से पढ़ाई की और खुद शिक्षिका बनीं। - शादी:
1840 में, मात्र 9 साल की उम्र में उनका विवाह 13 वर्षीय ज्योतिराव फुले से हुआ। शादी के बाद दोनों ने समाज सुधार और शिक्षा के क्षेत्र में मिलकर काम किया।
सावित्रीबाई फुले ने न केवल महिलाओं की शिक्षा के लिए अपना जीवन समर्पित किया, बल्कि समाज में व्याप्त जातिवाद, छुआछूत, और लैंगिक भेदभाव के खिलाफ एक क्रांति का नेतृत्व भी किया। सावित्रीबाई को भारतीय समाज में महिलाओं के सशक्तिकरण और शिक्षा के माध्यम से समानता लाने की दिशा में एक अग्रदूत माना जाता है।
प्रमुख उपलब्धियां:
- पहली महिला शिक्षिका:
सावित्रीबाई ने अपने पति, ज्योतिराव फुले के साथ मिलकर 1848 में पुणे में देश का पहला लड़कियों का स्कूल खोला। यह उस समय के लिए एक ऐतिहासिक कदम था जब महिलाओं की शिक्षा को हतोत्साहित किया जाता था। - स्त्री शिक्षा का प्रसार:
सावित्रीबाई ने सामाजिक दबाव और विरोध के बावजूद, लड़कियों और समाज के वंचित वर्गों को शिक्षित करने का बीड़ा उठाया। उन्होंने खुद शिक्षित होकर अन्य महिलाओं को भी शिक्षा के लिए प्रेरित किया। - महिला अधिकारों के लिए संघर्ष:
उन्होंने विधवा महिलाओं और बाल विवाह की पीड़िताओं की सहायता के लिए काम किया। 1854 में सावित्रीबाई और ज्योतिराव ने विधवा पुनर्विवाह को बढ़ावा देने के लिए एक बाल हत्या प्रतिबंधक गृह (Infanticide Prevention Home) की स्थापना की। - कविताओं और लेखन के माध्यम से जागरूकता:
सावित्रीबाई एक कुशल कवयित्री भी थीं। उनकी कविताएं महिलाओं और दलितों को सशक्त बनाने की भावना से ओतप्रोत थीं। - महामारी के समय सेवा कार्य:
1897 में प्लेग महामारी के दौरान, सावित्रीबाई ने रोगियों की सेवा करते हुए अपना जीवन तक बलिदान कर दिया।
समाज पर प्रभाव:
सावित्रीबाई फुले ने न केवल महिलाओं को शिक्षित करने का कार्य किया, बल्कि उन्हें यह भी सिखाया कि वे अपने अधिकारों के लिए कैसे खड़ी हो सकती हैं। उनकी क्रांतिकारी सोच और सामाजिक सुधारों ने भारत के स्वतंत्रता संग्राम और समाज सुधार आंदोलनों में एक महत्वपूर्ण प्रेरणा प्रदान की।
विरासत:
आज सावित्रीबाई फुले को भारत में महिला शिक्षा और सशक्तिकरण की प्रतीक के रूप में याद किया जाता है। उनके जन्मदिन को हर साल शिक्षक दिवस के रूप में भी मनाया जाता है। उनका योगदान न केवल इतिहास का एक गौरवशाली अध्याय है, बल्कि आज भी महिलाओं और वंचित वर्गों के अधिकारों की लड़ाई में प्रेरणा का स्रोत है।
“यदि आप शिक्षा प्राप्त करते हैं, तो आप अपने अधिकारों को समझ सकते हैं।”
— सावित्रीबाई फुले
प्लेग मरीजों की मदद करते हुए गई जान
सावित्रीबाई फुले जब स्कूल जाती थीं तो लोग उन पर गोबर फेंकते थे और पत्थर मारते थे। वह हमेशा बैग में एक साड़ी लेकर जाती थीं और स्कूल जाकर साड़ी बदलती थीं। इसके बाद बच्चों को पढ़ाती थीं। उन्होंने मराठी साहित्य में भी अहम योगदान दिया। 1890 में पति की मौत के बाद उन्होंने उनके अधूरे काम पूरे करने का फैसला किया और 1897 में प्लेग के मरीजों की मदद करते हुए उनकी जान गई। समाज में उनके योगदान को देखते हुए उनके लिए भारत रत्न और तीन जनवरी को महिला दिवस मनाने की मांग हो चुकी है।
भारत रत्न देने की मांग
भारतीय जनता पार्टी के सांसद उन्मेश पाटिल ने पिछले साल लोकसभा में केंद्र सरकार से आग्रह किया था कि समाज सुधारक सावित्रीबाई फुले को मरणोपरांत ‘भारत रत्न’ प्रदान किया जाए। पाटिल ने सदन में शून्यकाल के दौरान यह मांग की थी। उन्होंने कहा था कि सावित्रीबाई फुले ने शिक्षा के क्षेत्र में काम किया। पाटिल ने सरकार से आग्रह किया था कि सावित्री बाई फुले को मरणोपरांत ‘भारत रत्न’ दिया जाए। यह उनके प्रति सम्मान और सच्ची श्रद्धांजलि होगी।
तीन जनवरी को महिला दिवस घोषित करने की मांग
जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) की कुलपति शांतिश्री धुलीपुड़ी पंडित ने पिछले साल केंद्र सरकार से अनुरोध किया था कि समाज सुधारक सावित्रीबाई फुले की जयंती तीन जनवरी को आठ मार्च के साथ महिला दिवस के रूप में मनाया जाना चाहिए। विश्वविद्यालय की पहली महिला कुलपति पंडित ने कहा था कि फुले के कार्यों और योगदान की वजह से ‘‘मैं वहां पहुंच सकी हूं, जहां आज मैं हूं।’’ उन्होंने कहा था कि, सावित्रीबाई फुले के कार्यों की वजह से समाज ने प्रगति की है। आठ मार्च को महिला दिवस के रूप में मनाया जाता है, लेकिन हमें फुले की जयंती को भी महिला दिवस के रूप में मनाना चाहिए।’’
भारतीय जनता पार्टी की सांसद संघमित्रा मौर्य ने संसद में महान समाज सेविका सावित्रीबाई फुले की जयंती तीन जनवरी को ‘महिला शिक्षिका दिवस’ के रूप में मनाने की मांग की थी। उन्होंने लोकसभा में कहा था ‘‘माता सावित्रीबाई फुले देश की पहली शिक्षिका होने के साथ ही महान समाज सेविका भी थीं। उन्हें और उनके योगदान को लंबे समय तक याद रखा जाएगा।’’