केंद्रीय सूचना और तकनीक मंत्री अश्विनी वैष्णव ने गुरुवार को कॉन्ग्रेस नेता जयराम रमेश के उस दावे का जवाब दिया, जिसमें रमेश ने कहा था कि डेटा प्रोटेक्शन एक्ट 2023 की धारा 44(3) ने सूचना का अधिकार कानून (आरटीआई एक्ट 2005) को बर्बाद कर दिया है।
वह भारत के लोकतंत्र, पारदर्शिता और नागरिकों के सूचना के अधिकार से जुड़ा एक अहम विषय है। आइए इसे थोड़ा विस्तार से समझते हैं।
Section 44(3) of the Data Protection Act, 2023 virtually destroys the Right to Information Act, 2005. I have written to the Minister concerned in this regard urging for pause, review, and repeal of that dangerous Section. pic.twitter.com/piOfR7Arho
— Jairam Ramesh (@Jairam_Ramesh) March 23, 2025
मामला क्या है?
जयराम रमेश (कॉन्ग्रेस नेता) ने आरोप लगाया है कि:
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डिजिटल पर्सनल डेटा प्रोटेक्शन एक्ट, 2023 (DPDP Act 2023) की धारा 44(3) ने सूचना का अधिकार कानून 2005 (RTI Act) की मूल आत्मा को नुकसान पहुँचाया है।
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खास तौर पर RTI की धारा 8(1)(j) अब “बेमतलब” हो गई है, क्योंकि DPDP एक्ट के तहत व्यक्तिगत डेटा की रक्षा को प्राथमिकता दी गई है, भले ही वो सार्वजनिक हित में क्यों न हो।
Jairam Ramesh Ji, https://t.co/TD9nFnoAqM pic.twitter.com/IYyj11gCWW
— Ashwini Vaishnaw (@AshwiniVaishnaw) April 10, 2025
IT मंत्री अश्विनी वैष्णव का जवाब:
उन्होंने रमेश के आरोप को “राजनीतिक चाल” करार दिया और कहा कि:
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DPDP एक्ट और RTI एक्ट एक-दूसरे के पूरक हैं, न कि विरोधी।
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RTI एक्ट में पहले भी कुछ सीमाएँ थीं जहाँ व्यक्तिगत जानकारी साझा नहीं की जा सकती थी। DPDP एक्ट सिर्फ इन नियमों को और स्पष्ट करता है।
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कोई भी कानून “व्यक्तिगत डेटा” को बिना वजह सार्वजनिक नहीं कर सकता, चाहे वह कोई भी हो — नागरिक, अफसर या नेता।
असली चिंता क्या है?
RTI एक्ट की धारा 8(1)(j) कहती है कि कोई भी व्यक्तिगत जानकारी तब तक सार्वजनिक नहीं की जा सकती जब तक कि उसका कोई सार्वजनिक हित में उपयोग न हो।
अब, DPDP एक्ट की धारा 44(3) के अनुसार:
यदि कोई अन्य कानून (जैसे RTI) में ऐसा प्रावधान है, जो DPDP की धाराओं के विपरीत है, तो DPDP की धाराएँ ही मान्य होंगी।
इसका मतलब ये निकाला जा रहा है कि अब RTI के तहत व्यक्तिगत जानकारी मांगने पर DPDP एक्ट का हवाला देकर उसे रोका जा सकता है — भले ही वह जानकारी सार्वजनिक हित में हो।
अश्विनी वैष्णव ने जिस पुट्टस्वामी फैसले (2017) का ज़िक्र किया है, वह भारत में निजता के अधिकार को एक मौलिक अधिकार घोषित करने वाला ऐतिहासिक निर्णय है।
पुट्टस्वामी बनाम भारत सरकार (2017) – क्या फैसला था?
सुप्रीम कोर्ट की 9 जजों की संविधान पीठ ने सर्वसम्मति से फैसला सुनाया कि:
“निजता (Privacy) भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत मौलिक अधिकार है।”
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यह फैसला भारत के हर नागरिक को अपने व्यक्तिगत डेटा, जीवनशैली, विचार, शरीर और सूचना की गोपनीयता पर नियंत्रण का अधिकार देता है।
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सरकार या कोई भी संस्था बिना उचित कारण के किसी की व्यक्तिगत जानकारी में दखल नहीं दे सकती।
डेटा प्रोटेक्शन एक्ट 2023 का उद्देश्य क्या है?
IT मंत्री अश्विनी वैष्णव का कहना है कि:
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DPDP Act 2023 का मूल उद्देश्य निजता की रक्षा करना है — जैसा कि पुट्टस्वामी फैसले में निर्देशित किया गया था।
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यह कानून व्यक्तिगत जानकारी की सुरक्षा को प्राथमिकता देता है, खासकर डिजिटल युग में, जहाँ डेटा लीक और दुरुपयोग की संभावना ज्यादा है।
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साथ ही, यह कानून RTI की पारदर्शिता की भावना को भी नुकसान नहीं पहुँचाता — बल्कि इसे निजता के साथ संतुलन में रखता है।
क्या दोनों में सामंजस्य संभव है?
अश्विनी वैष्णव का कहना है कि हां — क्योंकि:
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पुट्टस्वामी फैसले ने यह भी कहा था कि निजता पूर्ण अधिकार नहीं है। यदि सार्वजनिक हित में ज़रूरत हो, तो इसे सीमित किया जा सकता है।
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इसलिए RTI के तहत यदि कोई जानकारी सच में जनहित में हो, तो DPDP के बावजूद उसे उपलब्ध कराया जा सकता है — बशर्ते कि संतुलन सावधानी से हो।
वैष्णव ने अपनी चिट्ठी में लिखा, “इसलिए, समाज के लोगों और संसद के कई मंचों के साथ लंबी बातचीत के बाद ये साफ हुआ कि सूचना के अधिकार और निजता के अधिकार में संतुलन जरूरी है। डेटा प्रोटेक्शन एक्ट, जिसे संसद ने पास किया, इस जरूरत को पूरा करता है और साथ ही जनजीवन में पारदर्शिता भी बनाए रखता है। ये सब डेटा प्रोटेक्शन एक्ट की धारा 3 के जरिए सुनिश्चित किया गया है।”
उन्होंने ये भी लिखा, “इस कानून के नियमों के तहत, ये लागू नहीं होगा… ऐसी निजी जानकारी पर, जो… किसी ऐसे शख्स द्वारा सार्वजनिक की गई हो, जिसे भारत में मौजूदा किसी कानून के तहत वो जानकारी सबके सामने लानी ही थी।”
आईटी मंत्री ने आगे कहा कि जो भी निजी जानकारी हमारे जनप्रतिनिधियों या कल्याणकारी योजनाओं जैसे मनरेगा आदि को चलाने वाले कानूनों के तहत सबके सामने लानी जरूरी है, वो आरटीआई एक्ट के तहत अब भी सामने आएगी। उन्होंने ये भी जोड़ा कि ये बदलाव निजी जानकारी को छुपाने के लिए नहीं है, बल्कि लोगों के निजता के अधिकार को मजबूत करने और कानून के गलत इस्तेमाल को रोकने के लिए है।