भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) और अमेरिकी कंपनी स्पेस-एक्स (SpaceX) ने अंतरिक्ष में एक नया अध्याय जोड़ा है। ISRO ने अपने सबसे उन्नत संचार उपग्रह GSAT-31A को स्पेस-एक्स के फाल्कन 9 रॉकेट के माध्यम से सफलतापूर्वक अंतरिक्ष में प्रक्षेपित किया। यह सहयोग अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी में वैश्विक साझेदारी की बढ़ती भूमिका को दर्शाता है।
प्रक्षेपण की मुख्य बातें:
- लॉन्च का स्थान:
- यह प्रक्षेपण अमेरिका के केनेडी स्पेस सेंटर से 18 नवंबर 2024 को हुआ।
- रॉकेट का चयन:
- GSAT-31A को फाल्कन 9 रॉकेट पर लॉन्च किया गया।
- फाल्कन 9 की पुन: प्रयोज्य (reusable) क्षमता ने इसे इस मिशन के लिए लागत-प्रभावी विकल्प बनाया।
- संचार उपग्रह GSAT-31A:
- GSAT-31A ISRO का अब तक का सबसे उन्नत संचार उपग्रह है।
- इसका उद्देश्य भारत में डिजिटल कनेक्टिविटी को बढ़ावा देना और सुदूर इलाकों में उच्च गुणवत्ता वाले इंटरनेट की पहुंच सुनिश्चित करना है।
- उपग्रह का उद्देश्य:
- बैकबोन कनेक्टिविटी: टेलीविजन, टेलीमेडिसिन, और डिजिटल शिक्षा सेवाओं को बेहतर बनाना।
- आपातकालीन संचार में सुधार।
- भारत के ग्रामीण और दुर्गम इलाकों में इंटरनेट कनेक्टिविटी बढ़ाना।
क्या है सैटेलाइट की खासियत?
स्पेसएक्स ने भारत के जिस सैटेलाइट को लॉन्च किया है उसे GSAT N-2 या फिर GSAT 20 के नाम से भी जाना जाता है। इस कमर्शियल सैटेलाइट का वजन 4,700 किलोग्राम है और इसे दूरदराज के क्षेत्रों में ब्रॉडबैंड सेवाएं, साथ ही यात्री विमानों के लिए उड़ान के दौरान इंटरनेट प्रदान करने के लिए डिजाइन किया गया है। इस सैटेलाइट को अमेरिका में फ्लोरिडा के केप कैनावेरल में स्थित लॉन्च कॉम्प्लेक्स से अंतरिक्ष में भेजा गया। केप कैनावेरल को स्पेसएक्स ने यूएस स्पेस फोर्स ले लीज पर लिया है।
Deployment of @NSIL_India GSAT-N2 confirmed pic.twitter.com/AHYjp9Zn6S
— SpaceX (@SpaceX) November 18, 2024
GSAT-N2: भारत का पहला KA-बैंड सैटेलाइट
इसरो ने स्पेस-एक्स के सहयोग से GSAT-N2 सैटेलाइट को सफलतापूर्वक लॉन्च किया है। इस मिशन को भारत की अंतरिक्ष क्षमताओं में महत्वपूर्ण मील का पत्थर माना जा रहा है। यह पहली बार है जब न्यू स्पेस इंडिया लिमिटेड (NSIL) के माध्यम से इसरो और स्पेस-एक्स ने इस प्रकार का संयुक्त मिशन संचालित किया है।
KA-बैंड की विशेषता
- KA-बैंड फ्रीक्वेंसी:
- GSAT-N2 भारत का पहला सैटेलाइट है जो KA-बैंड फ्रीक्वेंसी का उपयोग करता है।
- रेडियो फ्रीक्वेंसी की रेंज 27 गीगाहर्ट्ज़ से 40 गीगाहर्ट्ज़ के बीच है।
- यह उच्च बैंडविड्थ और तेज़ डेटा ट्रांसफर के लिए उपयुक्त है।
- उच्च दक्षता:
- KA-बैंड फ्रीक्वेंसी का उपयोग हाई स्पीड ब्रॉडबैंड सेवाओं के लिए किया जाता है।
- यह कम लेटेंसी और अधिक डेटा क्षमता प्रदान करता है।
GSAT-N2 की प्रमुख भूमिकाएँ
- ब्रॉडबैंड सेवाओं का विस्तार:
- GSAT-N2 भारत के ग्रामीण और दूरदराज के क्षेत्रों में हाई स्पीड इंटरनेट सेवाएं पहुंचाएगा।
- यह डिजिटल इंडिया कार्यक्रम को बढ़ावा देगा।
- बेहतर कवरेज:
- KA-बैंड की उच्च फ्रीक्वेंसी भारत के अलग-अलग भौगोलिक क्षेत्रों में बेहतर कवरेज सुनिश्चित करेगी।
- डिजिटल संचार में सुधार:
- यह सैटेलाइट टेलीमेडिसिन, ई-लर्निंग, और आपातकालीन संचार जैसे सेवाओं को अधिक कुशल बनाएगा।
न्यू स्पेस इंडिया लिमिटेड (NSIL) की भूमिका
- NSIL इसरो की वाणिज्यिक शाखा है, जो निजी और अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष एजेंसियों के साथ साझेदारी को बढ़ावा देती है।
- GSAT-N2 का लॉन्च स्पेस-एक्स के साथ NSIL का पहला प्रोजेक्ट है, जो भारत के अंतरिक्ष क्षेत्र में निजी भागीदारी का संकेत है।
इसरो को क्यों पड़ी स्पेसएक्स की जरूरत?
रिपोर्ट्स की मानें तो वर्तमान में, इसरो के पास 4,700 किलोग्राम तक के पेलोड को लॉन्च करने में सक्षम रॉकेटों की कमी है। भारत के लॉन्चिंग यान एलवीएम-3 की क्षमता 4,000 किलोग्राम तक है। लेकिन इस लॉन्च की आवश्यकताएं इसरो की क्षमताओं से अधिक थीं। इसी कारण इस मिशन के लिए स्पेसएक्स फाल्कन 9 रॉकेट को चुना गया है।