उप-राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (NSA) विक्रम मिस्री अब भारत के नए विदेश सचिव हैं। उन्होंने 15 जुलाई से विनय क्वात्रा से पदभार ग्रहण किया है। यह घोषणा सरकार ने पिछले सप्ताह की थी, जिसने कई लोगों को हैरत में डाला। कैबिनेट की नियुक्ति समिति के फैसले के साथ ही डिप्टी एनएसए के रूप में मिस्री का कार्यकाल बीच में ही खत्म हो गया है। इस फैसले को कई कारणों से अपरंपरागत और महत्वपूर्ण माना जा रहा है।
क्यों हटकर है मिस्री की नियुक्ति
विदेश सचिव के रूप में मिस्री की नियुक्ति को असामान्य बनाने वाली बात न सिर्फ उनका अब तक का असरदार करियर है, बल्कि उनके चयन का संदर्भ और समय भी कई मायनों में महत्वपूर्ण है। आमतौर पर, विदेश सचिव का पद राजनयिकों को दिया जाता है जो विदेश मंत्रालय में तैनात रहते हैं। लेकिन मिस्री डिप्टी एनएसए के रूप में कार्य कर रहे थे। मिस्री की इस हालिया भूमिका और सुरक्षा मुद्दों पर उनका विशेष नजरिया परंपरागत ढर्रों से थोड़ा हटकर है। नई नियुक्ति मौजूदा भू-राजनीतिक माहौल में विदेश नीति में सुरक्षा और रणनीतिक विशेषज्ञता को प्राथमिकता देने की दिशा में एक अहम बदलाव दिखाती है।
चीनी मामलों के विशेषज्ञ
अपने विदेश सेवा करियर में मिस्री चीन और म्यांमार में भारत के राजदूत रहे। उन्होंने एनएसए कार्यालय में नीतियों को लागू करने में अपनी पहचान बनाई। मिस्री की आखिरी राजदूत पोस्टिंग जनवरी 2019 से दिसंबर 2021 तक बीजिंग में थी। वह गलवान झड़प के दौरान चीन में भारत के राजदूत थे। उन्हें चीन मामलों को संभालने वाले शीर्ष अधिकारियों में से एक माना जाता है। इस मायने में मिस्री की नई नियुक्ति बेहद अहम है।
मिस्री की नियुक्ति के मायने
भारत का मुख्य रणनीतिक प्रतिद्वंद्वी चीन है और वह सीमा सुरक्षा के लिए बड़ी चुनौती भी है। युद्धग्रस्त देश म्यांमार में मिस्री का राजनयिक अनुभव भी भारत के काम आएगा। वहीं, उनकी नियुक्ति के समय का एक और पहलू यह भी है कि पश्चिमी गुट के दो महत्वपूर्ण देशों कनाडा और अमेरिका ने अपनी-अपनी धरती पर भारतीय एजेंटों द्वारा खुफिया ऑपरेशन का आरोप लगाया है। एनएसए कार्यालय का हिस्सा रहे मिस्री सभी घटनाक्रमों से अच्छी तरह वाकिफ हैं। अमेरिका और कनाडा की धरती पर खालिस्तान समर्थक सिख अलगाववादियों की हत्या की कथित साजिशों की जांच और राजनयिक स्तर पर चर्चा जारी है।
रणनीतिक बदलाव का हिस्सा
विदेश सचिव के रूप में मिस्री की नियुक्ति को भारत की विदेश नीति दृष्टिकोण में व्यापक रणनीतिक बदलाव के हिस्से के रूप में भी देखा जा सकता है। चीन और राष्ट्रीय सुरक्षा में व्यापक अनुभव वाले किसी अधिकारी को विदेश मंत्रालय में शीर्ष पद देने का फैसला चीन द्वारा पैदा की गई चुनौतियों से निपटने पर सरकार के फोकस के बारे में बताता है। यह कदम विदेश नीति फैसलों में राष्ट्रीय सुरक्षा की प्राथमिकाताओं के एकीकरण का भी संकेत है।
श्रीनगर से नई दिल्ली तक का सफर
7 नवंबर, 1964 को श्रीनगर में जन्मे मिस्री ने दिल्ली विश्वविद्यालय के हिंदू कॉलेज से इतिहास में उच्च शिक्षा हासिल की और बाद में एक्सएलआरआई, जमशेदपुर से एमबीए पूरा किया। अपने करियर में वह कई अहम पदों पर रहे। उन्होंने तीन प्रधानमंत्रियों इंद्र कुमार गुजराल, मनमोहन सिंह और नरेंद्र मोदी के निजी सचिव के रूप में काम किया है, जो उनकी खासियत को दर्शाता है। भारत, चीन के साथ अपने संबंधों को फिर से परिभाषित करना चाहता है, ऐसे में चीन के मामलों में विशेषज्ञता रखने वाला एक विदेश सचिव होना फायदेमंद हो सकता है। चीन में राजदूत रहने के दौरान मिस्री ने भारत-चीन संबंधों की जटिलताओं से सीधे तौर पर निपटा। यह एक ऐसा अनुभव है जो उनकी नई भूमिका में बेहद काम आएगा।