कोलकाता स्थित भारत के पहले जनरल पोस्ट ऑफिस (जीपीओ) ने ढाई सदी लंबा सफर पूरा किया है. इस मौके पर खास प्रदर्शनी भी आयोजित की गई कोलकाता स्थित देश के पहले जनरल पोस्ट ऑफिस (जीपीओ) ने अपने ढाई सदी लंबे सफर के दौरान इतिहास को बदलते तो देखा ही है, डाक के क्षेत्र में हुई क्रांति का मूक गवाह भी रहा है. इस जीपीओ ने इसी सप्ताह अपने 250 साल पूरे किए हैं. पश्चिम बंगाल सर्किल के चीफ पोस्ट मास्टर जनरल नीरज कुमार बताते है, “यह जीपीओ अपने आप में एक विरासत है. यह देश में डाक सेवाओं के निरंतर विकास का गवाह रहा है उनके मुताबिक, यह जीपीओ समय के साथ ताल मिलाते हुए डाक भेजने की नई तकनीक अपनाता रहा है. यही वजह है कि यह मौजूदा दौर में भी प्रासंगिक बना हुआ है” यह भवन भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की हेरिटेज सूची में शामिल है. वर्ष 1774 से 1868 के बीच इस जीपीओ की जगह बदलती रही. कोलकाता में हुगली के किनारे नेताजी सुभाष रोड पर स्थापत्य की दृष्टि से लाजवाब यह सफेद इमारत, जहां जीपीओ है, भले वर्ष 1864 में बनी थी, महानगर में डाक सेवा उससे करीब 90 साल पहले वर्ष 1774 में ही शुरू हो गई थी कोलकाता में 1774 में डाक सेवा शुरू करने का श्रेय वारेन हेस्टिंग्स को दिया जाता है.
मौजूदा जीपीओ भवन का निर्माण वर्ष 1700 में बने पुराने फोर्ट विलियम की जगह पर किया गया है. फोर्ट विलियम के उस भवन को वर्ष 1756 के हमले में सिराजुद्दौला ने बर्बाद कर दिया था. यह इमारत अपनी भव्य उच्च गुंबददार छत और लंबे आयोनिक कोरिंथियन खम्भों के लिए मशहूर है. यहां वर्ष 1884 में एक पोस्टल म्यूजियम भी बनाया गया था उसमें कलाकृतियों और डाक टिकटों के संग्रह को प्रदर्शित किया गया है वर्ष 1864 में निर्माण कार्य शुरू होने के बाद इस इमारत को पूरा होने में करीब चार साल का समय लगा. उसके बाद दो अक्तूबर, 1868 को इसे आम लोगों के लिए खोल दिया गया. उस समय इस भवन के निर्माण में छह लाख से कुछ ज्यादा रकम खर्च हुई थी. वर्ष 1896 में इस भवन के गुंबद पर चमकदार डायल वाली एक घड़ी लगाई गई इस घड़ी को लंदन की उसी घड़ीसाज कंपनी व्हाइटचैपल बेल फाउंड्री ने बनाया था जिसने वहां एलिजाबेथ टावर पर दूसरा बिग बेन बनाया था. वर्ष 2018 में इस भवन के डेढ़ सौ साल पूरे होने कई कार्यक्रम आयोजित किए गए थे.
वर्ष 2022 इस भवन में एक पार्सल कैफे खोला गया था जो देश में अपनी तरह का पहला कैफे है अपने कामकाज के सिलसिले में पोस्ट आफिस आने वाले लोग इसमें बैठ कर चाय-नाश्ता कर सकते हैं. इस कैफे में खाने-पीने के साथ ही पार्सल बुकिंग काउंटर की भी सुविधा है. इस मौके पर तत्कालीन पोस्ट मास्टर जनरल नीरज कुमार ने बताया था, “इस कैफे की शुरुआत का मकसद मौजूदा पीढ़ी के साथ डाक विभाग संबंधों को मजबूत करना है. युवा पीढ़ी में से ज्यादातर को इस भवन और इसके समृद्ध इतिहास के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं है कैफे के बहाने ही सही, लोग यहां आने लगे हैं. ” कोलकाता में डाक की व्यवस्था महज ईस्ट इंडिया कंपनी के पत्रों को भेजने के लिए शुरू हुई थी. लेकिन बाद में ब्रिटिश अधिकारियों को भी मुफ्त पत्र भेजने की सुविधा मुहैया करा दी गई. उसके बाद डाक की आवाजाही का खर्च निकालने की खातिर आम लोगों के लिए भी पत्र भेजने की सुविधा खोल दी गई. उनको तब इसके लिए मामूली खर्च देना होता था. उसके बाद निजी पत्रों की तादाद और एक से दूसरे शहर तक सामान भेजने में तेजी आई.
इसके साथ ही जीपीओ की आय भी बढ़ने लगी अब फोन, ईमेल और मोबाइल के दौर में पत्र भेजने वालों की तादाद भले कम हो गई है. यहां आने वालों की तादाद में खास कमी नहीं आई है शुरुआती दौर में आम लोगों के पत्र या पार्सल उन तक पहुंचाने वालों को डाकिया नहीं, बल्कि रनर कहा जाता था उनकी तब की पोशाक, बैज और बेल्ट अब भी यहां बने म्युजियम में संरक्षित है यहां उस दौरे के रनर की एक प्रतिमा भी लगी है अब इसके ढाई सौ साल पूरे होने के मौके पर विभाग की ओर से यहां प्रदर्शनी का आयोजन किया गया है. इसके साथ ही कई नए डाक टिकट और कवर जारी करने की भी योजना है. इसमें बोट्स आफ बंगाल शीर्षक छह पिक्चर पोस्टकार्ड के सेट के अलावा टेलीग्राफ सिस्टम पर भी पोस्टकार्ड का सेट जारी किया जाएगा पोस्ट मास्टर जनरल नीरज कुमार बताते हैं, “इस दौरान ' ट्रांसपोर्टेशन ऑफ मेल्स थ्रो एजेज' शीर्षक एक स्पेशल कवर भी जारी करने की योजना है. कोलकाता जीपीओ देश में अकेले ऐसी इमारत है जो लगातार बदलते दौर में भी समय और तकनीक के साथ ताल मिलाते हुए शान से सिर उठाए खड़ी है”