झारखंड की हेमंत सोरेन सरकार ने एक विवादित फैसला लेते हुए हाई कोर्ट के जजों को आजीवन दो सेवा कर्मी (को-टर्मिनस कर्मियों) उपलब्ध कराने का निर्णय लिया है। इससे सम्बंधित प्रस्ताव को झारखण्ड सरकार की कैबिनेट ने पास कर राजभवन मंजूरी के लिए भेज दिया है।
हालाँकि, यह पहली बार नहीं है, हाई कोर्ट में जजों को आजीवन सेवा कर्मी देने का प्रस्ताव पहले भी भेजा गया था जब वर्तमान में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू झारखण्ड की राज्यपाल थीं। तब तत्कालीन राज्यपाल ने इस प्रस्ताव पर आपत्ति जताई थी।
दरअसल हाई कोर्ट के न्यायाधीशों को आजीवन दो सेवा कर्मी (को-टर्मिनस स्टाफ) देने का प्रस्ताव कैबिनेट ने पास कर एक बार फिर राजभवन भेजा है। हालाँकि, अभी तक झारखण्ड के वर्तमान राज्यपाल सी पी राधाकृष्णन (C. P. Radhakrishnan) ने इस प्रस्ताव पर क्या निर्णय लिया है वह सामने नहीं आया है। कैबिनेट ने इस प्रस्ताव को 11 अगस्त को स्वीकृति प्रदान कर राजभवन भेज दिया था।
वहीं झारखंड सरकार द्वारा भेजे गए इस प्रस्ताव में बताया जा रहा है कि इसमें न्यायाधीशों को सेवानिवृत्ति के बाद राज्य सरकार द्वारा दो कर्मचारी उपलब्ध कराए जाएँगे, जिनका खर्च झारखण्ड सरकार वहन करेगी। प्रस्ताव के तहत हाई कोर्ट के न्यायाधीशों को उपलब्ध कराए जाने वाले दोनों कर्मचारियों का चयन भी उन्हीं सम्बंधित जजों पर छोड़ा गया है।
, प्रस्ताव में यह भी है कि सेवा कर्मी जज की सेवानिवृत्ति की अवधि ले लेकर आजीवन जज की सेवा में जहाँ-जहाँ वे जाएँगे तैनात रहेंगे और जज का निधन हो जाने पर उनकी पत्नी की सेवा में आजीवन रहेंगे। इन सेवा कर्मियों का वेतन राज्य सरकार देगी।
वहीं इस प्रस्ताव के बारे में यह भी कहा जा रहा है कि जज के सेवाकाल में ही ये सेवा कर्मी नियुक्त होंगे और जज की सेवानिवृत्ति के बाद भी उनके साथ ही रहेंगे। वहीं अगर सेवा काल में जज का तबादला दूसरे राज्य में होता है तो दोनों कर्मी भी उनके साथ जाएँगे। और वेतन यदि सम्बंधित राज्य नहीं देती है तो दोनों सेवा कर्मियों का खर्च झारखण्ड सरकार देगी।
बता दें कि वर्तमान में हाई कोर्ट के न्यायाधीशों को सेवानिवृत्ति लाभ के अलावा हर महीने लगभग आठ हजार रुपए निजी स्टाफ रखने के लिए दिए जाते हैं, लेकिन अब दो कर्मियों की सेवा दी जाएगी।
गौरतलब है कि तत्कालीन राज्यपाल (अब राष्ट्रपति) द्रौपदी मुर्मु ने को-टर्मिनस कर्मियों की नियुक्ति को लेकर तैयार झारखण्ड सरकार के प्रस्ताव के आधार पर ही सवाल उठा दिए थे। दरअसल, झारखण्ड सरकार की कैबिनेट ने यह प्रस्ताव संविधान के अनुच्छेद-229 के आधार पर तैयार किया था, जिसके माध्यम से हाई कोर्ट में कर्मियों की नियुक्ति से लेकर उनकी पेंशन तक की व्यवस्था की जाती है।
जबकि, इस मामले में राजभवन का कहना था कि अनुच्छेद-229 के तहत कोई भी नियम सिर्फ केंद्र सरकार तैयार कर सकती है और कानून के लिए इसे केंद्रीय संसद से पास कराना होगा। ऐसे में इसके तहत सेवा कर्मियों की नियुक्ति का अधिकार राज्य सरकार का नहीं हो सकता है। इसका अर्थ यह भी है कि जब नियुक्ति ही राज्य सरकार नहीं कर सकती तो फिर उनकी सैलरी के लिए राज्य सरकार के कोटे से कैसे प्रबंध होगा।