विश्व हिंदू परिषद (विहिप) ने वक्फ (संशोधन) अधिनियम पर विचार के लिए बनाई गई संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) को एक महत्वपूर्ण सुझाव दिया है। विहिप ने कहा है कि देश में धार्मिक संपत्तियों के प्रबंधन के लिए अलग-अलग धर्मों के लिए अलग कानूनों के बजाय एक समान कानून बनाया जाना चाहिए। यह सुझाव भारतीय संविधान के अनुच्छेद 44 के संदर्भ में दिया गया है, जो समान नागरिक संहिता (यूसीसी) लागू करने की बात करता है।
विहिप का सुझाव:
- समान कानून की आवश्यकता:
- विहिप ने कहा कि वक्फ अधिनियम के तहत मुसलमानों की संपत्तियों को जिस तरह से संरक्षित और प्रबंधित किया जाता है, उसी तरह अन्य धर्मों की संपत्तियों के लिए भी समान कानून लागू होना चाहिए।
- यह कानून सभी धार्मिक समुदायों की संपत्तियों के प्रबंधन और नियंत्रण के लिए एक समान प्रावधान बनाएगा।
- धार्मिक समर्पण का सिद्धांत:
- पत्र में बताया गया कि वक्फ संपत्तियां अल्लाह के नाम पर समर्पित मानी जाती हैं, जो धार्मिक या धर्मार्थ उद्देश्यों के लिए उपयोग की जाती हैं।
- अन्य धर्मों जैसे हिंदू, ईसाई, सिख, बौद्ध, और जैन में भी संपत्तियां देवताओं या धर्मार्थ उद्देश्यों के लिए समर्पित की जाती हैं।
- संविधान का अनुच्छेद 44:
- विहिप ने संविधान के अनुच्छेद 44 का उल्लेख करते हुए कहा कि राज्य को एक समान नागरिक संहिता लागू करने के प्रयास करने चाहिए, ताकि सभी नागरिकों के लिए समान कानून सुनिश्चित हो।
वक्फ अधिनियम का इतिहास:
- वक्फ अधिनियम, 1954:
- इसे प्राइवेट मेंबर बिल के रूप में मोहम्मद अहमद काजमी ने पेश किया था।
- यह विधेयक राज्य सभा की प्रवर समिति को भेजा गया था।
- तत्कालीन कानून मंत्री सी. सी. बिस्वास ने समिति की अध्यक्षता की और स्पष्ट किया कि सरकार की भूमिका केवल विधेयक की समीक्षा तक सीमित थी।
- वक्फ अधिनियम, 1995:
- बाद में 1954 के वक्फ अधिनियम को संशोधित किया गया और 1995 का वक्फ अधिनियम लागू हुआ, जो वर्तमान में मुसलमानों की धार्मिक संपत्तियों के प्रबंधन का आधार है।
विहिप के सुझाव का महत्व:
विहिप का यह सुझाव धार्मिक और कानूनी दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है क्योंकि:
- यह सभी धर्मों के लिए समानता और पारदर्शिता सुनिश्चित करेगा।
- धार्मिक संपत्तियों के प्रबंधन और विवादों को सुलझाने में एकरूपता लाएगा।
- संविधान के अनुच्छेद 44 की भावना के अनुरूप होगा।
संभावित विवाद:
- विहिप का यह प्रस्ताव संवेदनशील हो सकता है क्योंकि यह धर्म आधारित कानूनों को एक समान बनाने की दिशा में है।
- कुछ अल्पसंख्यक समुदाय इसे अपनी धार्मिक स्वतंत्रता में हस्तक्षेप मान सकते हैं।
यह विषय वक्फ अधिनियम के दायरे को व्यापक रूप से प्रभावित कर सकता है और समान नागरिक संहिता लागू करने की बहस को और तीव्र कर सकता है।