कॉन्ग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार में कैबिनेट मंत्री रहे मणिशंकर अय्यर ने सोमवार (21 अगस्त) को अपनी किताब ‘मेमोयर्स ऑफ ए मेवरिक- द फर्स्ट फिफ्टी इयर्स (1941-1991)’ लॉन्च की। इस दौरान उन्होंने देश के पूर्व और दिवगंत प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव के हिंदुत्व के प्रति झुकाव सहित कई राजनीतिक विषयों पर चर्चा की। उन्होंने कॉन्ग्रेस पार्टी में अरुण नेहरू का प्रभाव, शाह बानो मामला और पाकिस्तान के साथ भारत के रिश्तों पर अपना नजरिया साझा किया।
अय्यर ने कहा कि वो अटल बिहारी वाजपेयी की जगह कॉन्ग्रेस नेता पीवी नरसिम्हा राव को भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के पहले प्रधानमंत्री मानते हैं। इसके पीछे उन्होंने तर्क दिया कि नरसिम्हा राव को धर्मनिरपेक्ष होने से हमेशा एतराज रहा। अय्यर का आरोप है कि राव कॉन्ग्रेस के सांप्रदायिक नेता थे। इस दौरान उन्होंने सोनिया गाँधी की तारीफ की। उन्होंने कहा राजीव गाँधी की मौत के बाद उनका राजनीति में आना सराहनीय रहा।
अय्यर का कहना था, “मैंने कभी भी खुद संस्मरण लिखने पर विचार नहीं किया था, खासकर क्योंकि यह कल्पना करना बहुत अहंकारपूर्ण है कि आपका जीवन दूसरों के लिए दिलचस्प हो सकता है। मेरे प्रकाशक ने मुझे लिखने के लिए प्रेरित किया, क्योंकि उसे लगा कि मैं पाठक का मनोरंजन करूँगा। एक बार जब मैं आगे बढ़ा तो मैंने सोचना शुरू कर दिया कि मैं क्या लिखूँगा और कैसे लिखूँगा।”
गाँधी परिवार के करीबी मणिशंकर अय्यर ने किताब की लॉन्चिंग के मौके पर पूर्व प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव से जुड़ा एक किस्सा साझा किया। अय्यर ने उस वक्त अपनी ‘राम-रहीम’ यात्रा निकालने के दौर को याद करते हुए दोनों के बीच हुई बातचीत को साझा किया।
उन्होंने बताया कि पीएम रहते नरसिम्हा राव ने उनसे कहा था, “उन्हें मेरी यात्रा पर कोई एतराज नहीं है, लेकिन वो धर्मनिरपेक्षता की मेरी परिभाषा से इत्तेफाक नहीं रखते थे। उन्होंने मुझसे उस वक्त कहा था, “मणि तुम यह नहीं समझते कि यह एक हिंदू देश है।”
अय्यर ने आगे कहा कि राव की ये बात सुनकर वो अपनी कुर्सी पर बैठ गए और उनसे कहा कि बीजेपी बिल्कुल यही कहती है। तब उन्होंने सोचा कि बीजेपी के पहले प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी नहीं, बल्कि पहले प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव थे। वह भाजपा के पहले प्रधानमंत्री थे। वह सिर्फ लालकृष्ण आडवाणी की सुनते थे।
इस मौके पर अय्यर ने इस बात का भी जिक्र किया कि किस तरह राजीव गाँधी की मौत के बाद कुछ लोगों ने पार्टी से उन्हें किनारे करने की कोशिश की थी, लेकिन वो केवल सोनिया गाँधी की वजह से पार्टी में बचे रह गए थे।
इस मौके पर उन्होंने पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गाँधी के साथ अपने संबंधों पर भी बात की। अय्यर ने दिसंबर 1978 से जनवरी 1982 तक कराची में महावाणिज्य दूत के तौर पर काम किया था। इस दौरान उन्होंने इस पर भी चर्चा की।
पत्रकार वीर सांघवी के साथ बातचीत के दौरान अय्यर ने पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गाँधी के आसपास के उन लोगों की खुलकर आलोचना की, जिन्होंने कथित तौर पर राजनीति में उनके प्रवेश में भूमिका निभाई थी।
जगरनॉट से पब्लिश हुई अपनी किताब में उन्होंने खासतौर पर कॉन्ग्रेस में अरुण नेहरू के बढ़ते प्रभाव के बारे में फिक्र जताई थी। उन्होंने इस दौरान ये भी खुलासा किया कि ये पूरी तरह से गलत धारणा में थे कि ‘मैं पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गाँधी का विश्वासपात्र था’।
अय्यर ने इस दौरान पूर्व पीएम राजीव गाँधी के दौर को याद करते हुए कहा कि उनकी परेशानी थी कि वो राजीव के भरोसेमंद नहीं थे। उन्हें लगता था की कि राजीव उनके बारे में राजनीतिक तौर से अनुभवहीन होने की सोच रखते थे, क्योंकि उनसे कभी भी राजनीतिक मुद्दे पर कोई सलाह नहीं ली गई।
उन्होंने बताया की कि जब अचानक ये ऐलान किया गया की राजीव गाँधी प्रधानमंत्री बनने जा रहे हैं तो उन्हें हैरानी हुई थी। उन्होंने सोचा कि इंडियन एयरलाइंस का पायलट रहा शख्स देश कैसे चलाएगा। बाद में राजीव गाँधी को देश चलाते हुए देखकर उनकी तारीफ करने लगे थे।
अय्यर ने ये भी कहा कि राजीव गाँधी सबसे ईमानदार, स्पष्टवादी और सिद्धांतवादी नेता थे। उनमें वीपी सिंह जैसी कुटिलता या चालाकी नहीं थी। अपनी किताब में अय्यर ने भारतीय राजनीति के दो विवादास्पद मुद्दों- बाबरी मस्जिद विध्वंस और शाहबानो केस का भी जिक्र किया है।
अय्यर से जब बाबरी ढाँचे पर राजीव गाँधी के रूख को लेकर सवाल किया गया तो उन्होंने कहा कि ‘शिलान्यास गलत था’। उन्होंने कहा, “मुझे लगता है कि राजीव गाँधी ने जो सबसे बड़ी गलती की, वह भयानक आरके धवन को पीएमओ में लाना था। धवन ने PMO का राजनीतिकरण कर दिया, वर्ना पिछले चार साल से यह राजनीति में शामिल बिना पूरी तरह से तकनीकी ऑफिस के रूप से काम कर रहा था।”
शाहबानो मामले में अय्यर ने इसकी जटिलताओं को स्वीकार किया और राजीव गाँधी के करीबी लोगों खासकर आरिफ मोहम्मद खान की जमकर आलोचना की। उन्होने कहा कि उस वक्त के हालातों को गलत तरीके से सँभाला गया।