प्रयागराज महाकुंभ-2025 शुरू होने वाले हैं। इसमें देश भर के संतों के 13 अखाड़े भाग लेंगे। महाकुंभ में आमतौर पर नागा साधु आकर्षण का केंद्र है, क्योंकि इनकी दुनिया इतनी रहस्यमयी होती है कि इनके बारे में आम लोग बहुत कम लोग जानते हैं। नागा साधु को आमतौर पर संन्यासियों का सैन्य पंथ कहा जाता है। इनके कुल सात अखाड़े हैं, जो सैन्य रेजिमेंट की तरह बँटे हैं।
नागा साधुओं के ये अखाड़े हैं- पंचदशनामी जून अखाड़ा, निरंजनी अखाड़ा, महानिर्वणी अखाड़ा, अटल अखाड़ा, अग्नि अखाड़ा, आनंद अखाड़ा और आह्वान अखाड़ा। नागा साधु साधु वैरागी होते हैं, लेकिन जरूरत पड़ने पर राष्ट्र और धर्म की रक्षा के लिए हथियार उठाने से भी नहीं कतराते हैं। नागा साधुओं को शस्त्रों की भी शिक्षा दी जाती है। नागा साधुओं से जुड़े ऐसे अनेकों किस्से हैं, जो मशहूर हैं।
कहा जाता है कि जब मुगल आक्रांता अकबर के खिलाफ मेवाड़ के महाराणा प्रताप युद्ध कर रहे थे, उस समय नागा साधुओं ने भी उनका साथ दिया था। जिस युद्ध में नाग संन्यासियों ने महाराणा प्रताप का साथ दिया था, वह युद्ध राजस्थान के पंचमहुआ में छापली तालाब और राणाकड़ा घाट के बीच लड़ा गया था। इस युद्ध में मुगलों के छक्के छूट गए थे। बलिदान संन्यासियों की समाधियाँ आज भी वहाँ मौजूद हैं।
सन 1666 में भी हरिद्वार कुंभ के मेले पर औरंगजेब के सेना ने हमला करके हिंदू धर्म के खिलाफ अपना इस्लामी अभियान तेज किया था। उस दौरान नागा संन्यासियों ने साधु-संतों को एकत्र करके युद्ध किया और मजहबी फौज को भगा दिया। इसी तरह 1751 में अहमद अली बंगस ने प्रयागराज कुंभ के दौरान हमला कर दिया। उस समय 50 हजार नागा संन्यासियों ने बंगस की सेना को भागने पर मजबूर कर दिया।
वाराणसी में जब औरंगज़ेब ने विश्वनाथ मंदिर हमला करवाया था तो इन्हीं सन्यासियों ने मंदिर की रक्षा के लिए शस्त्र उठाए थे। वाराणसी को औरंगज़ेब के कहर से इन्हीं सन्यासियों ने बचाया था। औरंगज़ेब की फ़ौज और इन संन्यासियों के बीच भीषण लड़ाई हुई थी। इसमें भीषण रक्तपात हुआ था। नागा संन्यासियों की युद्ध कला को देखते हुए औरंगजेब ने इनके अस्त्र-शस्त्र रखने पर रोक लगा दी थी।
जून अखाड़े के नागा साधुओं ने 1757 ईस्वी शताब्दी में अफगान आक्रांता अहमद शाह अब्दाली को मथुरा-वृंदावन को लूटने से रोक दिया था। इसके कारण अब्दाली का गोकुल लूटने का सपना सपना ही रह गया था। नागा साधुओं ने गुजरात के जूनागढ़ के निजाम के साथ एक भीषण युद्ध किया था। इस युद्ध में नागा संन्यासियों ने निजाम और उसकी सेना को धूल चटा दी थी।
नागा संन्यासियों ने अंग्रेजों से भी लोहा लिया था। बंगाल में अत्याचारियों के खिलाफ संन्यासी युद्ध बहुत प्रसिद्ध है। इस पर बांग्ला कथाकार एवं कवि बंकिमचंद्र चटर्जी ने अपनी किताब ‘आनंद मठ’ लिखी है। इसी किताब का गीत वंदे मातरम आज हमारा राष्ट्रीय गीत है। अयोध्या के रामजन्मभूमि के लिए भी नागा संन्यासियों ने अपना खून खूब बहाए।
कैसे बनते हैं नागा साधु?
अखाड़े का संन्यासी बनने के लिए एक संकल्प पूरा करना होता है। यह संकल्प 12 साल का होता है। यह संकल्प लेने वाला ब्रह्मचारी कहलाता है। ब्रह्मचर्य के दौरान उस शख्स को अखाड़े के नियम और परंपराएँ सिखाई जाती हैं। इस दौरान गुरु की सेवा करनी होती है। जब ब्रह्मचारी का 12 साल का संकल्प पूरा हो जाता है तो आने वाले कुंभ में नागा साधु के रूप में दीक्षा दी जाती है।
शुरुआत में संन्यास की दीक्षा गुरु के द्वारा दी जाती है। मंत्रोच्चार आदि से शरीर पर समस्त चीजों को धारण करवाया जाता है। इसके बाद विजय संस्कार संपन्न किया जाता है। विजय संस्कार में संन्यास लेने वाले व्यक्ति का पिंडदान और अन्य आहुतियाँ करवाकर उसे सांसारिक मोह-माया से काट दिया जाता है। आहूति दीक्षा मिलने के बाद नागा संन्यासी बनने की प्रक्रिया शुरू हो जाती है।
इस संस्कार के दौरान धर्म ध्वज के नीचे सभी साधुओं को एकत्रित किया जाता है और फिर नागा साधु की दीक्षा दी जाती है। इस दौरान एक अलग गुरु बनाया जाता है, जो दिगंबर होता है। इसके बाद अच्छे नागाओं की अखाड़ों में ड्यूटी लगाई जाती है। नागा संन्यासी आमतौर पर हाथ में त्रिशूल, तलवार, शंख लिए होते हैं और गले एवं शरीर में रुद्राक्ष आदि धारण करते हैं।