भारतीय भाषाओं के संरक्षण, संवर्धन और विकास में मोदी सरकार के योगदान पर एक प्रभावशाली और गहराई से शोधित प्रस्तुति है। नीचे इस लेख की विषय-वस्तु को सुसंगठित पैराग्राफों में व्यवस्थित रूप से प्रस्तुत किया गया है ताकि पाठक को इसकी स्पष्ट समझ हो और यह पत्रकारिता, रिपोर्टिंग या निबंध लेखन के लिए भी उपयुक्त हो:
मातृभाषा पर गर्व और भाषाई जागरूकता की शुरुआत:
वर्ष 2022 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने मासिक रेडियो कार्यक्रम ‘मन की बात’ में देशवासियों से आह्वान किया था कि वे अपनी मातृभाषा बोलें और उस पर गर्व करें। यह केवल एक वक्तव्य नहीं था, बल्कि एक व्यापक सोच और नीति की झलक थी, जिसके तहत केंद्र सरकार भारतीय भाषाओं को उनके उचित सम्मान और अधिकार दिलाने की दिशा में निरंतर कार्य कर रही है। यह पहल इसलिए और भी महत्वपूर्ण बन जाती है क्योंकि स्वतंत्र भारत के इतिहास में भाषाओं के साथ लंबे समय तक राजनीतिक उपेक्षा और प्रशासनिक पक्षपात का व्यवहार होता रहा है।
भाषाई अन्याय से भाषाई न्याय की ओर:
1952 की जनगणना के बाद, नेहरू सरकार ने भाषाओं की गिनती को सीमित किया और इंदिरा गांधी सरकार ने 1971 की जनगणना में उन भाषाओं को ‘अन्य भाषाएँ’ की श्रेणी में डाल दिया, जिनके बोलने वालों की संख्या 10,000 से कम थी। इससे भारत की कई प्राचीन बोलियाँ और भाषाएँ सरकारी नीतियों से गायब हो गईं। इस ऐतिहासिक अन्याय को समझते हुए मोदी सरकार ने 2014 के बाद भाषाओं के संरक्षण की दिशा में कई ठोस कदम उठाए।
भारतीय भाषाओं को नया जीवन:
मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद स्थानीय भाषाओं को वही सम्मान मिलने लगा जो अब तक केवल अंग्रेज़ी या हिंदी को मिलता था। सरकार ने भाषाओं के मानकीकरण, टेक्स्टबुक्स के अनुवाद और डिजिटल डिक्शनरी निर्माण जैसे कार्यों को प्राथमिकता दी। उदाहरणस्वरूप, ‘हिंदी शब्दसिंधु’ नामक डिजिटल डिक्शनरी बनाई गई जिसमें शब्दों के बहुपरिप्रेक्ष्यीय अर्थ, लोकोक्तियाँ और मुहावरे भी शामिल किए गए।
शिक्षा में भाषाई समावेशन:
राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के तहत मातृभाषा में प्रारंभिक शिक्षा को प्राथमिकता दी गई। अब इंजीनियरिंग, मेडिकल और तकनीकी शिक्षा के लिए भी क्षेत्रीय भाषाओं में सामग्री उपलब्ध करवाई जा रही है। मोदी सरकार के कार्यकाल में टेक्नोलॉजी की मदद से बहुभाषीय टूल्स जैसे कंठस्थ 3.0, बहुभाषी अनुवाद प्रणाली, और प्रोजेक्ट अस्मिता को लॉन्च किया गया। प्रोजेक्ट अस्मिता के तहत पाँच वर्षों में 22,000 किताबों को भारतीय भाषाओं में अनुवादित किया जाएगा।
भारतीय भाषाओं को वैश्विक दर्जा:
साल 2021 में केंद्रीय हिंदी समिति की बैठक में मोदी सरकार ने पाँच और भाषाओं को शास्त्रीय भाषा का दर्जा प्रदान किया। इसके साथ ही भारत विश्व का पहला ऐसा देश बन गया जिसकी 11 भाषाओं को ‘क्लासिकल लैंग्वेज’ का दर्जा प्राप्त है। यह भारत की भाषाई विरासत को अंतरराष्ट्रीय मान्यता दिलाने की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम है।
संस्थागत और आर्थिक सहयोग:
भाषाओं को प्रोत्साहित करने के लिए सरकार ने संस्थान और फंडिंग दोनों ही मोर्चों पर काम किया। संस्कृत, तमिल, तेलुगु, कन्नड़, मलयालम और उड़िया जैसी भाषाओं के लिए विशेष शैक्षणिक संस्थान खोले गए। 2014 से अब तक सरकार ने 130 करोड़ रुपये भारतीय भाषाओं को प्रोत्साहित करने के लिए खर्च किए हैं, जिसमें अकेले तमिल भाषा पर 100 करोड़ रुपये खर्च हुए।
प्रवेश परीक्षाओं और सरकारी नौकरियों में भाषाओं का स्थान:
पहले JEE, NEET, CUET जैसी प्रतियोगी परीक्षाएँ केवल अंग्रेजी या हिंदी में होती थीं। अब ये परीक्षाएँ 13 क्षेत्रीय भाषाओं में आयोजित होती हैं। सरकारी नौकरियों के लिए परीक्षाएँ 15 भाषाओं में आयोजित होती हैं, जिससे भाषा अब योग्यता में बाधा नहीं, बल्कि आत्म-गौरव का विषय बन गई है।
डिजिटल क्रांति और भाषाई समावेश:
सरकार ने 200 PM ई-एजुकेशन चैनल और दीक्षा प्लेटफॉर्म जैसे डिजिटल प्रयासों से 133 भाषाओं में 3.66 लाख से अधिक ई-कंटेंट उपलब्ध कराए हैं। इसमें 126 भारतीय और 7 विदेशी भाषाएँ शामिल हैं। इसके अलावा अनुवादिनी ऐप जैसी तकनीक ने भाषाओं की सीमाएँ पाट दी हैं।
सांस्कृतिक संगम और भाषाई एकता:
काशी-तमिल संगमम, काशी-तेलुगु संगमम और काशी-सौराष्ट्र संगमम जैसे आयोजनों के माध्यम से केंद्र सरकार ने भाषाओं के जरिये भारत की सांस्कृतिक विविधता और एकता को सशक्त किया है। इससे देश ही नहीं, विदेशों में भी भारतीय भाषाओं की प्रतिष्ठा और चर्चा बढ़ी है।
प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में बीते 11 वर्षों में भाषाई विविधता को सम्मान, भाषाओं के लिए संसाधन, और तकनीकी माध्यमों द्वारा भाषाई समावेश का जो मॉडल बना है, वह स्वतंत्र भारत के भाषाई इतिहास में एक सुनहरा अध्याय है। यह केवल भाषाओं का संरक्षण नहीं है, बल्कि देश की आत्मा को जीवित रखने का एक सशक्त प्रयास है।