इस साल केमिस्ट्री का नोबेल पुरस्कार (Nobel Prize in Chemistry) मैसाच्यूसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी के वैज्ञानिक मोउंगी जी. बावेंडी, कोलंबिया यूनिवर्सिटी के लुई ई. ब्रुस और नैनोक्रिस्टल्स टेक्नोलॉजी के एलेक्सी आई. एकीमोव को दिया गया है. इन्हें यह सम्मान क्वांटम डॉट्स (Quantum Dots) की खोज और विकास के लिए दिया गया है.
क्वांटम डॉट्स बेहद बारीक नैनोपार्किटल्स हैं. जो अपनी रोशनी से टेलिविजन स्क्रीन को रंग दे रहे हैं. LED लैंप जलाने में मदद कर रहे हैं. साथ ही डॉक्टरों को शरीर से ट्यूमर निकालने में मदद कर रहे हैं. ये अत्यधिक छोटे लेकिन ताकतवर कण होते हैं. जब आप नैनो-डायमेंशन की बात करते हैं. यानी इन कणों के आकार की, तो वही उनकी ताकत और खूबी बन जाता है.
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The Royal Swedish Academy of Sciences has decided to award the 2023 #NobelPrize in Chemistry to Moungi G. Bawendi, Louis E. Brus and Alexei I. Ekimov “for the discovery and synthesis of quantum dots.” pic.twitter.com/qJCXc72Dj8
— The Nobel Prize (@NobelPrize) October 4, 2023
जितना ज्यादा छोटा कण, उतना ही ज्यादा फायदा. ये क्वांटम डॉट्स छोटे होने के साथ-साथ अलग-अलग आकृतियों के होते हैं. आकार और आकृति के हिसाब से इनका अलग रंग निकलता है. इसलिए इनका इस्तेमाल LED स्क्रीन वाली टीवी में किया गया. एलईडी बल्ब और लैंप बनाए गए. यहां तक की इनकी मदद से डॉक्टर किसी मरीज के शरीर से ट्यूमर वाले ऊतक यानी टिश्यू निकाल सकता है.
कैसे की क्वांटम डॉट्स की खोज?
1980 के शुरूआत में एलेक्सी एकीमोव ने नैनोपार्टिकल के लेवल पर रोशनी को अलग-अलग रंगों में बांटने में सफलता पाई थी. ये रंग कॉपर क्लोराइड के नैनोपार्टिकल की वजह से मिले थे. कुछ साल बाद ही लुई ब्रुस ने कुछ ऐसा ही किया. लुई ब्रुस दुनिया के पहले वैज्ञानिक हैं, जिन्होंने यह बताया कि किसी तरल पदार्थ में आजादी से तैरने के लिए नैनोपार्टिकल का आकार और आकृति जरूरी है. 1993 में माउंगी बावेंडी ने क्वांटम डॉट्स का परफेक्ट केमिकल प्रोडक्शन कर डाला. इसकी वजह से कई तरह की चीजें बनने लगीं. जैसे – कंप्यूटर स्क्रीन, टीवी स्क्रीन, QLED टेक्नोलॉजी विकसित हुई. इन क्वांटम डॉट्स से निकलने वाली रोशनी की मदद से डॉक्टर्स शरीर में ऊतकों की जांच-पड़ताल करने लगे.