वन नेशन-वन इलेक्शन यानी एक देश-एक चुनाव को पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता वाली उच्च स्तरीय समिति ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को अपनी रिपोर्ट सौंप दी है. 18,626 पन्नों की इस रिपोर्ट में समिति ने देश में एकसाथ लोकसभा, विधानसभा चुनावों के लिए संविधान में संशोधन की सिफारिश की है.
कोविंद की अध्यक्षता वाली इस समिति ने देश में एक साथ चुनाव कराने के लिए राष्ट्रपति से संविधान के अंतिम पांच अनुच्छेदों में संशोधन की सिफारिश की है. पांच अनुच्छेदों में- संसद के सदनों की अवधि से संबंधित अनुच्छेद 83, लोक सभा के विघटन से संबंधित अनुच्छेद 85, राज्य विधानमंडलों की अवधि से संबंधित अनुच्छेद 172, राज्य विधानमंडलों के विघटन से संबंधित अनुच्छेद 174, और राज्यों में राष्ट्रपति शासन लगाने अनुच्छेद 356 है. समिति की यह रिपोर्ट 191 दिनों के शोध कार्य का परिणाम है.
The High-Level Committee on simultaneous elections, chaired by Ram Nath Kovind, Former President of India, has met President Murmu at Rashtrapati Bhavan and submitted its report. The Report comprises of 18,626 pages, and is an outcome of extensive consultations with…
— ANI (@ANI) March 14, 2024
पैनल ने राष्ट्रपति भवन में राष्ट्रपति को 18,626 पन्नों की रिपोर्ट सौंपी। इसमें कहा गया है कि रिपोर्ट 2 सितंबर 2023 को पैनल के गठन के बाद से हितधारकों और एक्सपर्ट्स परामर्श और 191 दिन के रिसर्च का नतीजा है।
रिपोर्ट्स के मुताबिक कोविंद कमेटी ने 2029 में एकसाथ चुनाव कराने की सिफारिश की गई है। इसमें लोकसभा, विधानसभा और स्थानीय निकाय चुनाव के लिए एक मतदाता सूची रखने की बात भी सामने आई है। साथ ही एक चुनाव के लिए संविधान में संशोधन की सिफारिश की भी संभावना है।
रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि विधि आयोग के प्रस्ताव पर सभी दल सहमत हुए तो यह 2029 से ही लागू होगा। साथ ही इसके लिए दिसंबर 2026 तक 25 राज्यों में विधानसभा चुनाव कराने होंगे।
मध्यप्रदेश, राजस्थान, तेलंगाना, छत्तीसगढ़ और मिजोरम विधानसभाओं का कार्यकाल 6 महीने बढ़ाकर जून 2029 तक किया जाए। उसके बाद सभी राज्यों में एकसाथ विधानसभा-लोकसभा चुनाव हो सकेंगे।
एकसाथ चुनाव कराने को लेकर ज्यादातर दल सहमत
समिति की रिपोर्ट के मुताबिक, लोकसभा, विधानसभा और पंचायत चुनाव को एक साथ कराने को लेकर ज्यादातर राजनीतिक दल सहमत हैं. समिति ने एक राष्ट्र-एक चुनाव के लिए सरकार गिरने की स्थितियों पर एकसाथ चुनाव कराने की व्यवस्था कायम रखने की अहम सिफारिशें की है. समिति की रिपोर्ट में एक मतदाता सूची रखने की सिफारिश, लोकसभा, विधानसभा और स्थानीय निकाय चुनाव के लिए एक मतदाता सूची रखने की सिफारिश शामिल है यानी लोकसभा, विधानसभा और स्थानीय निकाय चुनाव कराने के लिए एक सिंगल वोटर लिस्ट बनाई जाए. बताया जा रहा है जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 के प्रासंगिक प्रावधानों में संशोधन करने की भी सिफारिश की गई है.
बताया गया है कि समिति का मानना है कि उसकी सभी सिफारिशें सार्वजनिक डोमेन में होनी चाहिए, लेकिन इसको लेकर फैसला सरकार ही करे. रिपोर्ट एक साथ चुनाव कराने के लिए जरूरी वित्तीय और प्रशासनिक संसाधनों का भी ब्योरा दिया जाएगा. इसको लेकर समिति ने अपनी वेबसाइट के जरिए से दिए गए फीडबैक और पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्तों सहित तमाम हितधारकों से फीडबैक पर विचार किया है.
पिछले साल किया गया था समिति का गठन
समिति का गठन पिछले साल 2 सितंबर को किया गया था और इसके अध्यक्ष पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद हैं. समिति राजनीतिक दलों, संवैधानिक विशेषज्ञों, पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्तों और चुनाव आयोग व अन्य संबंधित हितधारकों के साथ उनके विचार जानने और मामले पर गहन जानकारी एकत्रित करने के लिए परामर्श कर रही थी. समिति के कार्यक्षेत्र में अन्य पहलुओं के अलावा शासन, प्रशासन, राजनीतिक स्थिरता, खर्च और वोटरों की भागीदारी पर चुनावों के संभावित प्रभाव की जांच करना शामिल है.
रामनाथ कोविंद राजनीतिक पार्टियों से कर चुके हैं ये अपील
इससे पहले एक संसदीय स्थायी समिति, नीति आयोग और विधि आयोग ने एक साथ चुनाव के मुद्दे पर विचार किया है, जिसमें एक के बाद एक चुनाव कराने के बढ़ते खर्च पर चिंता व्यक्त की गई है, लेकिन साथ ही संभावित संवैधानिक और कानूनी समस्याओं का भी जिक्र किया गया है. कोविंद पहले ही संसदीय और राज्य विधानसभा चुनावों को एक साथ कराने के पक्ष में रहे हैं और सभी राजनीतिक दलों से राष्ट्रीय हित में इस विचार का समर्थन करने की अपील भी कर चुके हैं. पिछले साल नवंबर में पूर्व राष्ट्रपति ने कहा था कि केंद्र में सत्ता में रहने वाली किसी भी पार्टी को “एक राष्ट्र, एक चुनाव” से लाभ होगा और चुनाव खर्च में बचाए गए धन का उपयोग विकास के लिए किया जा सकता है. बीजेपी के 2014 और 2019 के घोषणापत्र में पूरे देश में एक साथ चुनाव कराने की वकालत की गई थी, लेकिन इसे लागू करने के लिए संविधान में कम से कम पांच अनुच्छेद और जन प्रतिनिधित्व अधिनियम में बदलाव करना होगा.