भारत सरकार ने हाल ही में संसद में पारित वक्फ संशोधन विधेयक पर पाकिस्तान की तरफ से की गई टिप्पणी को प्रेरित व आधारहीन करार देते हुए मंगलवार को खारिज कर दिया है। कहा कि इस्लामाबाद को दूसरों को उपदेश देने के बजाय अल्पसंख्यकों के अधिकारों की रक्षा करने में अपने खुद के ‘खराब’ रिकार्ड पर गौर करना चाहिए।
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‘देश के आतंरिक मामलों में पाक को बोलने का अधिकार नहीं’
पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने हाल ही में भारत के प्रस्तावित वक्फ संशोधन विधेयक पर तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की थी। उन्होंने इसे भारतीय मुसलमानों की संपत्तियों, मस्जिदों और धार्मिक स्थलों को छीनने और उन्हें हाशिए पर धकेलने का प्रयास बताया। उनका कहना था कि यह विधेयक भारतीय मुस्लिम समुदाय के धार्मिक और आर्थिक अधिकारों का उल्लंघन करता है।
इस विधेयक के तहत, वक्फ बोर्डों की शक्तियों में कमी की जा रही है, और जिला कलेक्टरों को वक्फ संपत्तियों के विवादों का निपटारा करने का अधिकार दिया जा रहा है। इसके अलावा, ‘वक्फ बाय यूजर’ (जो संपत्तियां बिना दस्तावेजों के पीढ़ियों से धार्मिक उपयोग में हैं) की अवधारणा को समाप्त किया जा रहा है, जिससे ऐतिहासिक मस्जिदों और दरगाहों की स्थिति अनिश्चित हो गई है। इससे पहले, जम्मू-कश्मीर के मीरवाइज उमर फारूक और शिया धर्मगुरु मौलाना सैयद कल्बे जव्वाद नकवी जैसे नेताओं ने भी इस विधेयक को मुसलमानों के अधिकारों पर हमला करार दिया था।
पाकिस्तान के बयान और भारतीय मुस्लिम संगठनों की चिंताओं के बावजूद, भारतीय सरकार ने इस विधेयक को संसद में पेश किया है, जिसे अब संयुक्त संसदीय समिति द्वारा समीक्षा की जा रही है।
यह भी कहा था कि वक्फ विधेयक का पारित होना भारत में बढ़ते बहुसंख्यकवाद का प्रतीक है। सिर्फ पाकिस्तान की सरकार की तरफ से ही यह बयान नहीं आया है बल्कि पाकिस्तानी मीडिया में भी वक्फ संशोधन विधेयक को खूब कवरेज दिया जा रहा है और इसे भारतीय मुसलमानों के अधिकारों के खिलाफ बताया जा रहा है।