मामले का सार: जस्टिस यशवंत वर्मा कैश विवाद
क्या है विवाद?
- एक याचिका सुप्रीम कोर्ट में दाखिल की गई थी जिसमें आरोप लगाया गया था कि जस्टिस यशवंत वर्मा के घर से नकद (cash) बरामद हुआ है।
- याचिकाकर्ता वकील नेदुमपारा की मांग थी कि जस्टिस वर्मा के खिलाफ एफआईआर (FIR) दर्ज की जाए क्योंकि आरोप स्पष्ट हैं और अब तक कोई कानूनी कार्रवाई नहीं हुई है।
सुप्रीम कोर्ट का निर्णय
- बेंच: जस्टिस अभय एस. ओका और जस्टिस उज्जल भुइयां की खंडपीठ ने यह मामला सुना।
- निर्णय: सुप्रीम कोर्ट ने याचिका खारिज कर दी।
मुख्य तर्क:
- संबंधित प्रक्रिया का पालन नहीं हुआ –
सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि पहले ही:- चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (CJI) ने मामले पर 3 जजों की एक कमेटी बनाई थी,
- और जस्टिस वर्मा का जवाब लेकर वह रिपोर्ट प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति को भेजी जा चुकी है।
- मामला अभी राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री के पास लंबित है –
इसलिए, याचिकाकर्ता को सीधे सुप्रीम कोर्ट आने की बजाय पहले राष्ट्रपति और पीएम के समक्ष अर्जी लगानी चाहिए थी। - FIR की मांग अभी जल्दबाज़ी है –
जब तक संवैधानिक प्राधिकारियों (राष्ट्रपति/प्रधानमंत्री) का निर्णय नहीं आता, अदालत हस्तक्षेप नहीं कर सकती।
वीरास्वामी जजमेंट पर बहस
- नेदुमपारा ने वीरास्वामी बनाम भारत सरकार (Veeraswami judgment) के तहत निर्धारित in-house प्रक्रिया पर पुनर्विचार की मांग की।
- सुप्रीम कोर्ट ने इस पर सुनवाई से इनकार कर दिया।
(Veeraswami Judgment 1991 में कहा गया था कि हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के जजों पर कोई आपराधिक जांच तभी की जा सकती है जब चीफ जस्टिस की अनुमति हो।)
इस मामले के व्यापक निहितार्थ
- यह मामला दिखाता है कि न्यायपालिका में पारदर्शिता बनाम संस्थागत गरिमा के बीच संतुलन बनाना कितना कठिन है।
- साथ ही, उच्च न्यायपालिका के जजों के खिलाफ जांच कैसे होनी चाहिए, इस पर संवैधानिक प्रक्रिया का सख्ती से पालन आवश्यक है।
निष्कर्ष
- जस्टिस यशवंत वर्मा पर फिलहाल कोई एफआईआर नहीं होगी,
- क्योंकि प्रक्रियात्मक स्तर पर याचिकाकर्ता ने राष्ट्रपति/प्रधानमंत्री के समक्ष पहले अर्जी नहीं दी,
- और यह मामला अभी संवैधानिक अधिकारियों के विचाराधीन है।