बहुराष्ट्रीय वित्तीय सेवा कंपनी मॉर्गन स्टेनली ने 2014 से 2023 तक भारत के आर्थिक विकास में परिवर्तन, अर्थव्यवस्था पर उसका प्रभाव और निवेशकों के लिए भारतीय बाजार में प्रासंगिकता का गहन विश्लेषण किया है। इस परिवर्तन में मोदी सरकार के योगदान के आलोचनात्मक विश्लेषण पर आधारित रिपोर्ट “हाउ इंडिया हेस ट्रान्सफोर्मेड इन लेस देन ए डेकेड” के अनुसार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारत में आमूलचूल सकारात्मक परिवर्तन हुआ है।
रिपोर्ट में सबसे उल्लेखनीय निष्कर्ष यह है कि “यह भारत 2013 से अलग है”. रिपोर्ट में वर्णित किए गए 10 परिवर्तनकारी बदलावों से भारत में विपुल आर्थिक सुधार हुए हैं। इनमें व्यक्ति की आय को दोगुना करना, निर्यात बाजार में हिस्सेदारी को दोगुना करना, विनिर्माण की हिस्सेदारी बढ़ाना, कॉर्पोरेट मुनाफे को बढ़ाना और अन्य आर्थिक स्वास्थ्य संकेतकों में उल्लेखनीय सुधार करना शामिल हैं। ये सुधार डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर, आपूर्ति-पक्ष नीति सुधार और दिवाला और शोधन अक्षमता संहिता के संशोधन जैसे नीतिगत परिवर्तनों को मान्यता देने के माध्यम से हुए हैं। नेशनल स्टैटिस्टिक्स ऑफिस (NSO) द्वारा जारी अनंतिम अनुमानों के अनुसार, 2022-23 के लिए वास्तविक सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि दर 7.2 प्रतिशत रही, जो अनुमानित 7 प्रतिशत से अधिक थी।
इस रिपोर्ट के अनुसार विनिर्माण और कैपेक्स में जीडीपी के प्रतिशत के रूप में लगातार वृद्धि होगी और 2031 तक जीडीपी में दोनों की हिस्सेदारी लगभग 5PPT तक बढ़ जाएगी। भारत का निर्यात बाजार हिस्सा 2031 तक बढ़कर 4.5 प्रतिशत हो जाएगा, जो 2021 के स्तर से लगभग दोगुना है, और इससे माल और सेवाओं के निर्यात में व्यापक लाभ होगा। भारतीय न्यूनतम संपत्ति की प्रति व्यक्ति आय वर्तमान में 2,200 अमेरिकी डॉलर से बढ़कर 2032 में लगभग 5,200 अमेरिकी डॉलर होगी, जिससे खर्च को बढ़ाने के साथ-साथ उपभोग शैली में भी महत्वपूर्ण बदलाव होंगे। मुद्रास्फीति की मध्यम स्थिरता और कम होने के कारण, दर चक्र कम होगा। भारतीय अर्थव्यवस्था का संरचनात्मक परिवर्तन बचत और निवेश की गतिशीलता को बढ़ावा देगा। सकल घरेलू उत्पाद में मुनाफे का हिस्सा 2020 से अब तक के निचले स्तर से दोगुना हो गया है और इसे आगे भी बढ़ने की आशा है। चालू खाता फंडिंग में विदेशी पोर्टफोलियो (FPI) की कम हिस्सेदारी ने तेल की कीमतों के साथ शेयर बाजार के नकारात्मक रिटर्न सहित तालमेल को कम कर दिया है। शेयरों के मूल्यांकन में सुधार और लंबे समय तक उच्च वृद्धि की दिशा देखी जा रही है। घरेलू मांग में मजबूती के कारण, भारत की जीडीपी वृद्धि आगामी दो वित्तीय वर्षों में 6 प्रतिशत से अधिक हो जाएगी। यहां तक कि 2023-24 और 2024-25 के लिए इसने 6.2 प्रतिशत और 6.5 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की है।
कॉर्पोरेट टैक्स में 23% से 15% की कटौती आय को और रोजगार को बढ़ाने के लिए कॉर्पोरेट निवेश को प्रोत्साहित करने के लिए किया गया है। कहा जाता है कि आँकड़े तो केवल किताब के लिए होते हैं और धरातल में स्थिति से भिन्न होते हैं किंतु मैं इस कथन से इत्तेफाक नहीं रखता। बहुराष्ट्रीय संस्थानों को हमारे देश में निवेश करने का प्रोत्साहन मिलेगा। यही निवेश हमारे युवा वर्ग के लिए रोजगार के नये अवसर सृजित करेंगे। राष्ट्रीय राजमार्गों की अवसंरचना को 25,700 किलोमीटर से 53,700 किलोमीटर तक बढ़ाया जा रहा है। इस परिवर्तन से आवागमन में डीजल कम खर्च होगा और परिवहन दर में कमी होने से महंगाई कम होगी। ब्रॉडबैंड सब्सक्रिप्शन में वृद्धि हुई है, जहां 58.9 मिलियन से 771.3 मिलियन तक सदस्यों की संख्या बढ़ी है। रेलवे मार्ग का विद्युतीकरण 4100 किलोमीटर (कुल का 6.3%) से 28,800 किलोमीटर (कुल का 42.3%) तक किया गया है. इन प्रत्येक आंकड़ों का प्रभाव परोक्ष रूप से भारतवर्ष के सवा सौ करोड़ जनता के चेहरे पर एक मुस्कान के रूप में दिखता है।
वित्त वर्ष 2019 में जीएसटी संग्रह ₹97,555 करोड़ से बढ़कर वित्त वर्ष 2023 में ₹18.10 लाख करोड़ तक पहुंच गया है, जो इस अवधि में 9.8% की निश्चित जीडीपी वृद्धि दर के मुकाबले 2019 और 2023 के बीच 12.3% की वृद्धि दर्ज कर रहा है। इस बढ़ोतरी का अर्थव्यवस्था में औपचारिककरण के एक महत्वपूर्ण संकेतक के रूप में उल्लेख किया जा सकता है। जीएसटी में वृद्धि दर घरेलू उत्पाद की वृद्धि दर से 25% अधिक है। वित्त वर्ष 2016 में डिजिटल लेनदेन जीडीपी का 4.4% था, जो वित्त वर्ष 2023 में 76.1% तक बढ़ गया है।
वित्त वर्ष 2014 से वित्त वर्ष 2023 तक नकद में डीबीटी (लाभार्थियों के खातों में सब्सिडी का हस्तांतरण) ₹5 बिलियन से बढ़कर ₹250 बिलियन तक पहुंच गई है। योजनाओं की संख्या भी 50 से बढ़कर 400 तक बढ़ गई है। कॉर्पोरेट और शेयर बाजार के निवेशकों के लिए लाभ में उछाल के साथ वैश्विक तेल की कीमतों में गिरावट आई है। भारतीय शेयरों को अधिक रक्षात्मक माना जा रहा है और विपरीत वैश्विक परिस्थितियों और कड़ी घरेलू मौद्रिक नीति के बावजूद, विभिन्न अंतर्राष्ट्रीय एजेंसियों ने भारत को 2023-24 में सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में से एक होने का अनुमान लगाया है। रिपोर्ट में मुद्रास्फीति के दृष्टिकोण के बारे में यह आशंका व्यक्त की गई है कि 2023-24 के लिए खुदरा मुद्रास्फीति 2022-23 में 6.7 प्रतिशत के मुकाबले 5.2 प्रतिशत पर आरबीआई के अनुमानों के अनुरूप होगी। कोविड के कठिन दौर के बावजूद भारतीय अर्थव्यवस्था के चतुर्मुखी आर्थिक विकास का श्रेय मोदी सरकार को देना तो पड़ेगा। मोदी सरकार ने अर्थव्यवस्था के संशोधन के लिए भूतकाल से चल रहे कई विपरीतताओं का सामना किया है और सुधारों को लागू करके अच्छे परिणाम प्राप्त किए हैं। यह रिपोर्ट प्रधानमंत्री मोदी के कठिन निर्णयों और सतत प्रयासों के लिए एक साधुवाद है।
हालांकि, भारतीय अर्थव्यवस्था के सामने कई प्रमुख जोखिम हैं। ये जोखिम वैश्विक मंदी, 2024 में खंडित आम चुनाव परिणाम, आपूर्ति में कमी, और कुशल श्रम की कमी जैसे कारकों के कारण वस्तुओं की कीमतों में वृद्धि को बाधा दे सकते हैं।इन चुनौतियों के बावजूद, रिपोर्ट में व्यक्त किया गया है कि भारत की अर्थव्यवस्था में अगले वर्षों में गति बनाए रखने की संभावना है, इसमें प्रधानमंत्री मोदी के प्रशासनिक नीतियों और सुधारों का महत्वपूर्ण योगदान होगा।
प्राचीन काल में भारत को सोने की चिड़िया कहा जाता था किंतु दो से अधिक सदी के औपनिवेशिक तानाशाही ने इस सोने की चिड़िया की छवि को कहीं दबा सा दिया था। आजादी के बाद पहली बार भारत अंतरराष्ट्रीय पटल पर इतनी मजबूती के साथ खड़ा दिखाई दे रहा है। प्रमुख आर्थिक महाशक्तियों ने भी भारत की बढ़ती प्रभुत्व को स्वीकार किया है और हर देश आज भारत के साथ कदमताल करने को आतुर दिखाई पड़ता है। इस वर्ष के अंत में होने वाले G-20 के शिखर सम्मेलन जैसे आयोजन भारत के बढ़ते कद के प्रमाण के रूप में देखे जा सकते है । विपक्ष को भी ये बात स्वीकारनी होगी की वे एक नये भारत के नये सूर्य के साक्षी हैं। नये संसद भवन की भव्यता हो या बहुराष्ट्रीय संस्थानों द्वारा देश में निवेश करने की होड़ ये सभी आंकडें मोदी सरकार के सफल 9 वर्षों के प्रमाण हैं। भले इस सोने की चिड़िया ने उड़ान भरना अभी शुरू ही किया है किंतु ये तो स्पष्ट दिखाई पड़ रहा है कि नये पंखों से उड़ान भरती ये चिड़िया सोने की तो अवश्य है।