कोई चलते चलते गिर रहा है तो कोई डांस करते करते. किसी की जिम में एक्सरसाइज करते करते मौत हो रही है तो कोई कुर्सी पर बैठे ही चल बसा – ऐसी तस्वीरों के बार-बार आने के बाद हर किसी के मन में ये चिंता थी कि युवाओं की मौत ऐसे क्यों हो रही है. खासतौर पर ऐसे लोग जो देखने में फिट हैं उनकी ऐसी अचानक मौत के क्या कारण हैं.
आईसीएमआर पिछले तीन साल से ये स्टडी कर रहा है कि युवाओं में अचानक मौत के लिए क्या कारण जिम्मेदार हैं. स्टडी के नतीजे जारी कर दिए गए हैं – इसमें कोरोनावायरस के गंभीर मरीजों में मौत के कई मामले देखे गए हैं. ऐसे युवा जिन्हें कोविड की वजह से अस्पताल में एडमिट होने की नौबत आई, उनमें अचानक मौत का खतरा बढ़ा है.
कुछ लोग कोविड वैक्सीन को भी शक के दायरे में रख रहे थे लेकिन स्टडी में वैक्सीन को क्लीन चिट दी गई है और बताया गया है कि वैक्सीन की दोनों डोज लगवाने वालों को सुरक्षा मिली है. स्टडी से ये समझ आता है कि कोरोना का वायरस दिल की बीमारी और स्ट्रोक होने का खतरा बढ़ा देता है.
18 से 45 साल के युवाओं पर की गई स्टडी
इसके लिए 18 से 45 साल के ऐसे युवाओं पर स्टडी की गई जिन्हें कोरोना की वजह से अस्पताल में भर्ती होना पड़ा. भारत के 19 राज्यों में 47 अस्पताल इसमें शामिल रहे. स्टडी का डाटा अक्टूबर 2021 से 31 मार्च 2023 के बीच का है. इस वर्ष मई से अगस्त के बीच डाटा का एनालिसिस किया गया.
स्टडी में ये देखा गया कि वैक्सीन की कम से कम एक डोज़ लगने के 42 दिनों तक मरीज कैसा रहा ? WHO की गाइडलाइंस के मुताबिक वैक्सीन के 42 दिन के अंदर होने वाले साइड इफेक्ट्स को वैक्सीन का असर माना जाएगा.
इस स्टडी में 18 से 45 साल के ऐसे 1145 युवा शामिल थे जिनकी 1 अक्टूबर 2021 से 31 मार्च 2023 के बीच अचानक हार्ट अटैक से मौत हुई थी. 87 प्रतिशत लोगों को कोविड वैक्सीन की कम से कम एक डोज़ लग चुकी थी. 2 प्रतिशत को अस्पताल जाने की जरुरत पड़ी थी. 2 प्रतिशत को कोरोना से रिकवर होने के बाद भी सांस फूलने, ब्रेन फॉगिंग या दूसरी दिक्कतें बनी रही थी. इन लोगों में से 10 प्रतिशत लोग ऐसे थे जिनके परिवार में पहले भी किसी की सडन डेथ यानी अचानक मौत हो चुकी थी.
मरने वालों में 27 प्रतिशत लोग स्मोकर थे, 27 प्रतिशत लोग शराब पीते थे. मृतकों में से 677 लोग ऐसे भी थे जिन्होंने मौत से 48 घंटे पहले 6 या उससे पहले ड्रिंक्स ली थी. 18% यानी 692 लोग मौत से एक साल पहले तक एक्सरसाइज कर रहे थे.
कंट्रोल ग्रुप स्टडी
इसके अलावा इस स्टडी को कंट्रोल ग्रुप में भी किया गया. कंट्रोल ग्रुप में 18 से 45 वर्ष के 4850 लोगों को शामिल किया गया जिसमें से 2916 का डिटेल एनालिसिस किया गया.
इनमें से 81 प्रतिशत युवा वैक्सीन की कम से कम एक डोज लगवा चुके थे. इनमें से 1 प्रतिशत लोग अस्पताल पहुंचे थे. 1 प्रतिशत को कोरोना से रिकवर होने के बाद एक महीने तक कोरोना के साइड इफेक्टस जैसे सांस फूलने, स्मेल ना आने और ब्रेन फागिंग जैसी परेशानियां रहीं.
4 प्रतिशत के घर में किसी ना किसी की पहले भी सडन डेथ यानी अचानक मौत हो चुकी थी. कंट्रोल ग्रुप में 19 प्रतिशत स्मोकर थे. 13 प्रतिशत शराब पीते थे. 1 प्रतिशत ने किसी बीमारी से 48 घंटे पहले 6 या उससे ज्यादा पैग शराब पी थी, 17 प्रतिशत लोग 1 साल पहले से कोई ना कोई फिजिकल एक्टिविटी जैसे एक्सरसाइज कर रहे थे
ऐसे लोग जिन्हें कोरोना की वजह से अस्पताल जाने की नौबत आई उनमें कोरोना से जान जाने का खतरा बाकियों के मुकाबले 4 गुना ज्यादा था.
परिवार में पहले से किसी की सडन डेथ हो चुकी हो ऐसे लोगों में मौत का खतरा 3 गुना ज्यादा था.
इसके अलावा स्मोकिंग और शराब जैसी आदतों को भी अचानक मौतों के पीछे जिम्मेदार पाया गया.
मौत से 48 घंटे पहले जमकर एक्सरसाइज करने वाले या 48 घंटे पहले ज्यादा शराब पीने वाले मामले खासतौर पर अचानक मौत के लिए जिम्मेदार पाए गए.
कोविड वैक्सीन को मौतों के लिए जिम्मेदार नहीं माना गया. बल्कि स्टडी में ये बताया गया है कि वैक्सीन की वजह से लोगों को सुरक्षा मिली और उन्हें वैक्सीन लेने से फायदा हुआ.
हालांकि आईसीएमआर ने साफ किया है कि विदेशों में ऐसी कुछ स्टडी हुई जिनमें ये देखा गया है कि कोविड वैक्सीन से दिल की आर्टरी में खून के क्लॉट जम रहे हैं – लेकिन इसका पता लगाने के लिए और गहन स्टडी की जरुरत होगी.