सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार (12 दिसम्बर, 2024) को मजहबी स्थलों के सर्वे की माँग करने वाली याचिकाओं को स्वीकार करने पर रोक लगा दी है। सुप्रीम कोर्ट ने मजहबी स्थलों पर पहले से चल रहे मुकदमे को लेकर भी अंतिरम या अंतिम आदेश देने पर रोक लगाई है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि अभी बाकी अदालतें किसी भी मजहबी स्थल के सर्वे आदि का आदेश ना दें।
सुप्रीम कोर्ट ने यह फैसला प्लेसेस ऑफ़ वर्शिप एक्ट, 1991 को लेकर दायर की गई याचिकाओं की सुनवाई को लेकर दिया है। सुप्रीम कोर्ट में कई हिन्दू एक्टिविस्टों ने इस कानून को चुनौती दी है। हिन्दू पक्ष ने कहा है कि यह कानून उनके न्यायालय जाने के अधिकार को छीनता है। हिन्दू पक्ष ने यह भी कहा है कि इस कानून से मौलिक अधिकार भी प्रभावित होते हैं।
सुप्रीम कोर्ट में इस मामले में मुस्लिम पक्ष भी पहुँचा है। जमीयत-उलेमा-ए-हिन्द ने इस मामले में कानून को सही ठहराते हुए याचिका दायर की है। सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को इस पूरे मामले में केंद्र का रुख जानने के लिए उनसे एक हलफनामा दायर करने को कहा है। कोर्ट ने साथ ही यह रोक के आदेश भी दिए हैं।
सुप्रीम कोर्ट की सर्वे पर रोक के आदेश के बाद देश में उन मजहबी स्थल को लेकर मामला लटक जाएगा जहाँ किसी पक्ष ने कोई दावा ठोंका है। वर्तमान में काशी लेकर मथुरा और संभल-बदायूँ समेत कई ऐसे मामले अलग-अलग अदालतों में लंबित हैं। इनमें से कुछ सर्वे तक के आदेश हो चुके हैं जबकि कुछ में केवल याचिका ही स्वीकार हुई है।
कमाल मौला मजार बनाम भोजशाला
मध्य प्रदेश के धार जिले में स्थित भोजशाला विवाद बहुत पुराना विवाद है। हिंदू पक्ष का मत है कि ये माता सरस्वती का मंदिर है जहाँ देवी-देवताओं के चित्र और संस्कृत में श्लोक आज भी लिखे हुए हैं। सदियों पहले मुसलमानों ने इसकी पवित्रता भंग करते हुए यहाँ मौलाना कमालुद्दीन की मजार बना दी थी जिसके बाद यहाँ मुस्लिमों का आना जाना शुरू हो गया और अब इसे नमाज के लिए प्रयोग में लाया जाता है। इस मामले में हिन्दू कोर्ट पहुँचे थे। हिन्दू पक्ष की याचिका पर सुनवाई करते हुए मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने मार्च, 2024 में ASI सर्वे का आदेश दिया था।
ASI यहाँ सर्वे कर चुकी है। रिपोर्ट में ASI ने कहा है कि भोजशाला का वर्तमान परिसर यहाँ पहले मौजूद मंदिर के अवशेषों से बनाया गया था। ASI ने मध्य प्रदेश हाई कोर्ट को सौंपी गई अपनी रिपोर्ट में बताया था, “खंभों और की सजावट और उन पर बने भित्तिचित्रों की वास्तुकला से यह कहा जा सकता है कि वह पहले मंदिर का हिस्सा थे। बेसाल्ट के ऊँचे परिसर पर मस्जिद के स्तम्भ बनाते समय इनका दोबारा इस्तेमाल हुआ है। एक स्तम्भ, जिसमे चारों दिशाओं में खाने बने हुए हैं, उसमे देवताओं की नष्ट की हुईं छवियाँ भी हैं।”
अटाला मस्जिद बनाम अटाला देवी
उत्तर प्रदेश के जौनपुर में बनी अटाला मस्जिद को लेकर भी हिन्दू कोर्ट पहुँचे हैं। मई 2024 में इस संबंध में एक वकील अजय प्रताप सिंह ने याचिका दायर की थी। उन्होंने अपने दावे में कई पुस्तकों में उल्लेखित संदर्भों का हवाला दिया है। साथ ही पुरातत्व विभाग के निदेशक की रिपोर्ट का भी जिक्र किया है।
माना जाता है कि अटाला माता मंदिर का निर्माण कन्नौज के राजा जयचंद्र राठौर ने करवाया था। अजय प्रताप सिंह ने कहा है कि इस मंदिर को तोड़ने का पहला हुक्म फिरोज शाह ने दिया था। बाद में इब्राहिम शाह ने इस पर कब्जा कर मस्जिद बना दिया। वकील अजय प्रताप सिंह की यह याचिका अभी कोर्ट में लंबित है। इस मामले में एक और याचिका डाली गई थी। इस पर कोर्ट ने 16 दिसम्बर, 2024 को फैसला देने की बात कही थी। हालाँकि, अब इसमें समय लग सकता है।
टीले वाली मस्जिद बनाम शेषनाग मंदिर
उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में टीले वाली मस्जिद के खिलाफ भी हिन्दू कोर्ट पहुँचे हैं। साल 2013 में लखनऊ स्थित भगवान शेषनाग टीलेश्वर महादेव विराजमान, लक्ष्मण टीला शेषनाग तीर्थ भूमि और अन्य ने निचली दीवानी कोर्ट में एक सिविल क्लेम किया था, जिसमें कहा गया था कि मुगल आक्रान्ता औरंगजेब के शासनकाल में मस्जिद बनाने के लिए मंदिर को तोड़ दिया गया था।
हिंदू याचिकाकर्ताओं ने दावा किया कि संपत्ति के एक हिस्से पर जहाँ मस्जिद है, यह उनका है और इसे उन्हें सौंपा जाना चाहिए। इस मामले में मुस्लिम पक्ष ने हिन्दू पक्ष की याचिका के खिलाफ कोर्ट में अपील भी डाली थी लेकिन उसे कोर्ट ने खारिज कर दिया था। वर्तमान में यह मामला कोर्ट के सामने लंबित है।
अजमेर दरगाह बनाम शिव मंदिर
हिन्दू पक्ष की याचिका में यह भी कहा गया है कि यहाँ भगवान शिव की पूजा-अर्चना और जलाभिषेक भी होता था। हिन्दू पक्ष ने अपनी माँग के समर्थन में 1911 में लिखी एक किताब का जिक्र किया है। साथ ही उन्होंने दरगाह में मौजूद ढांचों को भी पुराने मंदिर का हिस्सा बताया है।
हिन्दू पक्ष ने कहा है कि अजमेर के तहखाने में गर्भगृह है। याचिका विष्णु गुप्ता ने दायर की है। विष्णु गुप्ता ने अब इस जगह की सही स्थिति जानने के लिए एक सर्वे की माँग की है। हिन्दू पक्ष ने कहा है कि इसके साथ ही दरगाह के ही निकट अढ़ाई दिन का झोपड़ा मस्जिद को भी मंदिर तोड़ कर बनाया गया है।
संभल जामा मस्जिद बनाम हरि हर मंदिर
संभल के जिला न्यायालय में एक याचिका लगाई गई है। याचिका में कहा गया है कि संभल में स्थित जामा मस्जिद का निर्माण सदियों पुराने श्री हरि हर मंदिर पर किया गया था, जो भगवान कल्कि को समर्पित था और जिसे बाबर ने नष्ट कर दिया था।
याचिकाकर्ताओं ने कहा है कि यह स्थल हिंदुओं के लिए धार्मिक महत्व रखता है और इसे मुगल काल के दौरान इसे जबरन मस्जिद में बदल दिया गया था। याचिकाकर्ताओं ने कोर्ट को बताया कि वर्तमान में यह संरक्षित स्मारक है। इसको लेकर कोर्ट ने 19 नवम्बर को सर्वे का आदेश दिया था। इसके बाद 24 नवम्बर को भी सर्वे होना था लेकिन इस दिन मुस्लिम भीड़ ने दंगा कर दिया।
यह याचिका सुप्रीम कोर्ट के वकील और एडवोकेट विष्णु शंकर जैन के पिता हरि शंकर जैन, नोएडा के पार्थ यादव साथ अन्य याचिकार्ताओं ने लगाई है। याचिका लगाने वालों में और भी लोग शामिल हैं। उन्होंने कोर्ट से कहा है कि भगवान विष्णु और भगवान शिव के भक्त होने के नाते, उन्हें पूजा-अर्चना के लिए मंदिर में जाने का अधिकार है।
बदायूँ जामा मस्जिद बनाम नीलकंठ महादेव
यूपी के बदायूँ में स्थित शाही जामा मस्जिद पर हिंदू पक्ष ने दावा किया है। हिन्दू पक्ष ने कहा है कि बदायूँ की जामा मस्जिद असल में पौराणिक नीलकंठ महादेव मंदिर है। इसको लेकर हिंदू पक्ष ने जिला अदालत में याचिका दायर की है। इस मामले की अगली सुनवाई 17 दिसम्बर, 2024 को है।
हिंदू पक्ष की तरफ से वादी मुकेश पटेल ने साल 2022 में अदालत में सबूत पेश करते हुए दावा किया था कि यह मस्जिद पहले नीलकंठ महादेव मंदिर थी। उनकी याचिका में जामा मस्जिद के अंदर हिंदुओं को पूजा का अधिकार देने की माँग की गई है। मुस्लिम इस याचिका को खारिज करने की माँग कर रहे हैं।
फतेहपुर की जामा मस्जिद बनाम कामाख्या मंदिर
उत्तर प्रदेश के फतेहपुर सीकरी में स्थित सलीम चिश्ती की दरगाह के खिलाफ भी हिन्दुओं ने कोर्ट में याचिका दायर की है। हिन्दुओं ने कहा है कि जहाँ आज फतेहपुर में जामा मस्जिद बनी हुई है, वहाँ कभी माँ कामाख्या का मंदिर हुआ करता था। हिन्दू पक्ष यहाँ बनी जामा मस्जिद के भी हिन्दू मंदिर के परिसर में होने की बात कही है।
हिन्दू पक्ष की तरफ से यह याचिका वकील अजय प्रताप सिंह ने दायर की है। उन्होंने ASI के एक अधिकारी की एक पुस्तक का भी जिक्र अपनी याचिका में किया है। उन्होंने कहा है कि इस पुस्तक के अनुसार, यहाँ मस्जिद में हिन्दू और जैन मंदिर के अवशेष से निर्माण किया गया है।
शाही ईदगाह बनाम कृष्ण जन्मस्थान
मथुरा में स्थित शाही ईदगाह वर्तमान में विवादित है और इसको लेकर न्यायालयों में कई याचिकाएँ पड़ी हुई हैं। हिन्दू पक्ष का कहना है कि मथुरा में स्थित श्रीकृष्ण जन्मभूमि मंदिर के बराबर में बनी शाही ईदगाह वाला ढाँचा जबरन वही बना दिया गया जहाँ भगवान कृष्ण का जन्म हुआ था। इस जगह पर कब्जा करके ढाँचा बनाया गया है। यहाँ अभी भी कई ऐसे सबूत हैं जो कि यह सिद्ध करते हैं कि यहाँ पहले एक मंदिर हुआ करता था। यह मामला अभी कोर्ट में ही लंबित है।
हिन्दू पक्ष का दावा है कि भगवान श्रीकृष्ण का जन्म राजा कंस के कारागार में हुआ था और यह जन्मस्थान शाही ईदगाह के वर्तमान ढाँचे के ठीक नीचे है। सन् 1670 में मुगल आक्रांता औरंगज़ेब ने मथुरा पर हमला कर दिया था और केशवदेव मंदिर को ध्वस्त करके उसके ऊपर शाही ईदगाह ढाँचा बनवा दिया था और इसे मस्जिद कहने लगे। 13.37 एकड़ जमीन पर दावा करते हुए हिन्दू यहाँ से शाही ईदगाह ढाँचे को हटाने की माँग करते रहे हैं। इस मामले में सर्वे का आदेश निचली अदालत द्वारा दिया गया था लेकिन उस पर सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगाई है।
ज्ञानवापी मस्जिद बनाम काशी विश्वनाथ
वाराणसी में काशी विश्वनाथ के बराबर में स्थित विवादित ज्ञानवापी मस्जिद में हिन्दू पक्ष को शुरूआती सफलता भी मिली है। इस मामले में हिन्दू पक्ष ने ASI सर्वे की माँग की थी। कोर्ट ने यहन ASI को सर्वे का आदेश भी दिया था। ASI की रिपोर्ट में बताया गया है कि ढाँचे के भीतर मंदिर का अस्तित्व प्रमाणित करने वाली कई कृतियों को जानबूझकर छुपाकर रखा गया था। ये सभी कृतियाँ (मूर्तियाँ, शिलाएँ, शिलालेख) उन तहखानों की जाँच में मिले हैं, जिन्हें जानबूझकर दीवालों और मलबों के सहारे बंद कर दिया गया था।
31 जनवरी, 2024 को एक आदेश में कहा गया था कि ज्ञानवापी परिसर के भीतर व्यास जी के तहखाने में हिन्दू पूजा अर्चना कर सकते हैं, उन्हें झरोखा दर्शन की अनुमति भी दी गई थी। यह निर्णय आने के बाद प्रशासन ने रात में ही पूजा और आरती चालू करवा दी थी। मस्जिद कमिटी इसके खिलाफ पहले सुप्रीम कोर्ट भी गई थी जहाँ कोर्ट ने सुनवाई से इंकार कर दिया था।
कुव्वत उल इस्लाम मस्जिद बनाम हिन्दू-जैन मंदिर
2020 में दिल्ली की एक अदालत में क़ुतुब मीनार के भीतर मंदिर होने की बात कहते हुए वहाँ हिन्दुओं को पूजा का अधिकार दिलाने हेतु याचिका दाखिल की गई थी। याचिका में दावा किया गया है कि क़ुतुब मीनार के भीतर ही हिन्दू और जैन मंदिर परिसर स्थित है।
याचिका में कहा गया है कि अंदर 27 मंदिर हुआ करते थे, जिनमें मुख्य रूप से जैन तीर्थंकर ऋषभदेव के अलावा भगवान विष्णु प्रमुख रूप से स्थापित हैं। और इन्हीं मंदिरों को तोड़ कर ही मस्जिद का निर्माण किया गया। इस मामले में को निचली अदालत ने खारिज कर दिया था, जिसे ऊपरी अदालत में चुनौती दी गई है।