इलेक्टोरल बॉन्ड पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन (SCBA) से ही चुनौती मिलती दिख रही है. खबर है कि SCBA ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु को एक पत्र लिखा है. पत्र में उनसे मामले में हस्तक्षेप करने की अपील की गई है. SCBA ने राष्ट्रपति से आग्रह किया है कि ‘प्रेजिडेंशियल रेफरेंस’ के तहत सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर तब तक रोक लगाई जाए जब तक कि रेफरेंस पर सुनवाई पूरी नहीं होती. SCBA के अध्यक्ष आदिश अग्रवाल ने राष्ट्रपति मुर्मु से राजनीतिक पार्टियों, कॉर्पोरेट संस्थाओं के अलावा सभी हितधारकों के लिए न्याय सुनिश्चित करने की अपील की है.
राष्ट्रपति मुर्मू को लिखे अपने पत्र में, अग्रवाल ने संसद, राजनीतिक दलों, कॉर्पोरेट संस्थाओं और आम जनता सहित सभी हितधारकों के लिए न्याय सुनिश्चित करने के लिए मामले का पुनर्मूल्यांकन करने के महत्व पर जोर दिया। 14 फरवरी को सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने सूचना के अधिकार के उल्लंघन और संविधान के अनुच्छेद 19(1)(ए) के उल्लंघन का हवाला देते हुए चुनावी बांड योजना को रद्द कर दिया, जो भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता से संबंधित है।
यह फैसला मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने दिया, जिसने दाता विवरण का खुलासा करने के लिए विस्तार के लिए भारतीय स्टेट बैंक की याचिका को भी खारिज कर दिया। पीठ ने भारत निर्वाचन आयोग को यह जानकारी 15 मार्च तक सार्वजनिक करने का आदेश दिया।
पत्र में क्या लिखा है?
SCBA के पत्र में भारत की राष्ट्रपति से संविधान के अनुच्छेद 143 के तहत इस मामले में दखल देने की अपील की गई है.लाइव लॉ की एक रिपोर्ट के मुताबिक पत्र में लिखा है,
“सुप्रीम कोर्ट को स्वयं ही ऐसे फैसले नहीं देने चाहिए जिनसे संवैधानिक गतिरोध पैदा हों, जिनसे भारतीय संसद की महिमा और उसके सदस्य जनप्रतिनिधियों की सामूहिक बुद्धिमत्ता कमजोर होती हो और राजनीतिक दलों की अपनी लोकतांत्रिक कार्यप्रणाली पर सवाल खड़ा हो.”
बता दें, अनुच्छेद 143 के तहत राष्ट्रपति को सार्वजनिक महत्व और लोक कल्याण से जुड़े मुद्दों पर सुप्रीम कोर्ट की राय लेने का अधिकार देता है. इसके लिए राष्ट्रपति सर्वोच्च न्यायालय को लिखित में प्रश्न भेजता है. सुप्रीम कोर्ट को अगर इस प्रश्न पर परामर्श देना उचित लगता है तो वो विचार करने के बाद अपना जवाब राष्ट्रपति को भेज सकता है.
एसोसिएशन का कहना है कि विभिन्न राजनीतिक दलों को चंदा देने वाली कॉरपोरेट इकाइयों के नाम उजागर करने से उनके उत्पीड़न होने की आशंका बढ़ जाएगी. पत्र में कहा गया है कि ये स्कीम इसलिए लाई गई क्योंकि हमारे देश में चुनाव फंडिंग की कोई प्रणाली नहीं थी, और इसका मकसद राजनीतिक दलों को कानूनी माध्यमों से चुनावी उद्देश्यों के संसाधन बढ़ाने में सक्षम करना था. ऐसे में कोई कॉर्पोरेट यूनिट जिसने डोनेशन देते वक्त वैध और कानूनी नियमों का पालन किया हो उसे उसके उल्लंघन करने के लिए कैसे दंडित किया जा सकता है?
इलेक्टोरल बॉन्ड पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला
सुप्रीम कोर्ट ने 11 मार्च को दिए अपने फैसले में SBI की इलेक्टोरल बॉन्ड मुद्दे पर 30 जून तक का समय बढ़ाने की मांग करने वाली याचिका को खारिज कर दिया था. मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली 5 जजों की पीठ ने SBI को 12 मार्च तक (यानी आज) इलेक्टोरल बॉन्ड से संबंधित डिटेल को अपनी वेबसाइट पर अपलोड करने का निर्देश दिया था.
इसके साथ ही चुनाव आयोग को बैंक द्वारा शेयर की गई जानकारी को अपनी आधिकारिक वेबसाइट पर 15 मार्च को शाम 5 बजे प्रकाशित करने का भी निर्देश दिया था. इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने 15 फरवरी को दिए अपने ऐतिहासिक फैसले में केंद्र सरकार की चुनावी बॉन्ड स्कीम को रद्द कर दिया था.