सुप्रीम कोर्ट ने किसानों से अपील की कि वे प्रदर्शन जरूर करें, लेकिन कानून के दायरे में रहते हुए। कोर्ट ने कहा कि लोकतंत्र में शांतिपूर्ण प्रदर्शन का अधिकार सबको है, लेकिन इसे जिम्मेदारी से करना चाहिए ताकि जनता को कोई असुविधा न हो। कोर्ट ने यह भी कहा कि खनौरी बॉर्डर पंजाब की ‘लाइफलाइन’ है और इसे बाधित करना सही नहीं है।
जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस उज्जल भुयान की बेंच ने डल्लेवाल से उम्मीद जताई कि वे अपने प्रदर्शनकारी साथियों को कानून का पालन करने और प्रदर्शन को व्यवस्थित तरीके से करने के लिए प्रेरित करेंगे।
बता दें कि 13 फरवरी 2024 से शुरू हुए इस आंदोलन में किसान दिल्ली की ओर मार्च कर रहे थे, लेकिन उन्हें शंभू और खनौरी बॉर्डर पर रोक दिया गया। प्रदर्शनकारियों ने केंद्र सरकार पर उनकी माँगों की अनदेखी करने का आरोप लगाया है। उनकी मुख्य माँगें हैं:
सुप्रीम कोर्ट का निर्देश और किसानों के प्रदर्शन का घटनाक्रम भारत में जन आंदोलनों और उनकी सीमाओं पर ध्यान केंद्रित करता है।
सुप्रीम कोर्ट का रुख
- शांतिपूर्ण और जिम्मेदार प्रदर्शन:
- सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि किसानों को प्रदर्शन का अधिकार है, लेकिन यह शांतिपूर्ण और जिम्मेदारी से होना चाहिए।
- सार्वजनिक स्थानों, जैसे हाईवे, को बाधित करने से बचने की हिदायत दी गई।
- जगजीत सिंह डल्लेवाल का मामला:
- किसान नेता डल्लेवाल की ओर से दायर याचिका में आरोप था कि उन्हें खनौरी बॉर्डर से जबरन हटाकर लुधियाना के एक अस्पताल में भर्ती कराया गया।
- सुप्रीम कोर्ट ने उनकी रिहाई की पुष्टि की और याचिका का निपटारा किया।
दिल्ली कूच और पुलिस की कार्रवाई
- नोएडा से किसानों का कूच:
- नोएडा के किसानों ने महामाया फ्लाईओवर के पास पुलिस बैरिकेडिंग को हटाकर दिल्ली की ओर बढ़ने का प्रयास किया।
- पुलिस ने उन्हें दलित प्रेरणा स्थल के पास रोक दिया।
- कानून व्यवस्था बनाए रखने की चुनौती:
- किसानों के दिल्ली कूच को रोकने के लिए पुलिस ने सतर्कता बढ़ा दी है।
- प्रदर्शनकारियों और पुलिस के बीच टकराव की स्थिति कानून व्यवस्था के लिए एक चुनौती बन रही है।
मुद्दे और उनकी गंभीरता
- किसानों की मांगें:
- किसान नए भूमि अधिग्रहण कानून के तहत उचित मुआवजा, विकसित प्लॉट, और रोजगार के अवसरों की मांग कर रहे हैं।
- हाई पावर कमेटी की सिफारिशों को लागू करने की भी मांग की जा रही है।
- सरकार का दृष्टिकोण:
- सरकार और किसान संगठनों के बीच संवाद की कमी प्रदर्शन को और जटिल बना रही है।
- किसानों के अधिकार और कानून व्यवस्था बनाए रखने के बीच संतुलन बनाना एक बड़ी चुनौती है।
#WATCH | Noida, UP | Protesting farmers climb over police barricades at Dalit Prerna Sthal as they march towards Delhi over their various demands pic.twitter.com/39xs9Zx5mn
— ANI (@ANI) December 2, 2024
डल्लेवाल का आरोप: ‘अस्पताल में नजरबंद किया गया’
जगजीत सिंह डल्लेवाल ने अपनी हिरासत को लेकर गंभीर आरोप लगाए। उन्होंने कहा कि उन्हें जबरन अस्पताल में रखा गया और न तो मीडिया से मिलने दिया गया, न ही फोन तक पहुँचने दिया गया। उनका कहना था, “अगर मुझे जाँच के लिए भर्ती किया गया होता, तो मीडिया से मिलने की अनुमति होती। लेकिन यह असल में पुलिस हिरासत थी।”
डल्लेवाल को शुक्रवार (29 नवंबर 2024) को अस्पताल से डिस्चार्ज किया गया, जिसके बाद खनौरी बॉर्डर पर उनका जोरदार स्वागत किया गया। संयुक्त किसान मोर्चा (गैर-राजनीतिक) के वरिष्ठ नेता सरवन सिंह पंधेर ने डल्लेवाल को समर्थन देते हुए आंदोलन जारी रखने की बात कही।
प्रदर्शनों को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने दी सलाह
सुप्रीम कोर्ट ने किसानों से अपील की कि वे प्रदर्शन जरूर करें, लेकिन कानून के दायरे में रहते हुए। कोर्ट ने कहा कि लोकतंत्र में शांतिपूर्ण प्रदर्शन का अधिकार सबको है, लेकिन इसे जिम्मेदारी से करना चाहिए ताकि जनता को कोई असुविधा न हो। कोर्ट ने यह भी कहा कि खनौरी बॉर्डर पंजाब की ‘लाइफलाइन’ है और इसे बाधित करना सही नहीं है।
जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस उज्जल भुयान की बेंच ने डल्लेवाल से उम्मीद जताई कि वे अपने प्रदर्शनकारी साथियों को कानून का पालन करने और प्रदर्शन को व्यवस्थित तरीके से करने के लिए प्रेरित करेंगे।
बता दें कि 13 फरवरी 2024 से शुरू हुए इस आंदोलन में किसान दिल्ली की ओर मार्च कर रहे थे, लेकिन उन्हें शंभू और खनौरी बॉर्डर पर रोक दिया गया। प्रदर्शनकारियों ने केंद्र सरकार पर उनकी माँगों की अनदेखी करने का आरोप लगाया है। उनकी मुख्य माँगें हैं:
- न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) को कानूनी दर्जा दिया जाए।
- स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशें लागू की जाएँ।
- किसानों और कृषि मजदूरों के लिए पेंशन योजना शुरू की जाए।
- किसानों का कर्ज माफ किया जाए।
- भूमि अधिग्रहण अधिनियम, 2013 को फिर से लागू किया जाए।
- 2020-21 के किसान आंदोलन में जान गँवाने वाले किसानों के परिवारों को मुआवजा दिया जाए।
सुप्रीम कोर्ट ने प्रदर्शन की वैधता पर कोई टिप्पणी नहीं की, लेकिन यह स्पष्ट किया कि विरोध शांतिपूर्ण और व्यवस्थित होना चाहिए। कोर्ट ने कहा कि अगर भविष्य में किसी कानूनी मदद की जरूरत होगी, तो उसके लिए उचित प्रक्रिया अपनाई जा सकती है।