मध्य प्रदेश के धार में स्थित भोजशाला का कल यानी 22 मार्च से सर्वे शुरू होगा। सर्वे के दौरान मुख्य रूप से यह बात सामने आ सकती है कि यहां पर किस तरह के प्रतीक चिह्न हैं। किस तरह की यहां की वास्तु शैली है। साथ ही यह भी स्पष्ट हो जाएगा कि यह किस तरह की धरोहर है।
हाईकोर्ट ने दिया था फैसला
कुछ ही दिन पहले मध्य प्रदेश हाईकोर्ट की इंदौर खंडपीठ ने भोजशाला में आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया (एएसआई) को सर्वे के आदेश दिए थे। हिंदू फ्रंट फॉर जस्टिस की ओर से एक याचिका दायर की गई थी।
क्या है याचिकाकर्ता की मांग?
याचिका में मुसलमानों को भोजशाला में नमाज पढ़ने से रोके जाने और हिंदुओं को नियमित पूजा का अधिकार देने की मांग की गई थी। याचिका पर सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने एएसआई को वैज्ञानिक सर्वेक्षण करने का आदेश दिया। इससे पहले, सभी पक्षों को सुनने के बाद हाईकोर्ट ने फरवरी में फैसला सुरक्षित रख लिया था।
हिंदू फ्रंट फार जस्टिस की तरफ से एडवोकेट हरिशंकर जैन और एडवोकेट विष्णुशंकर जैन ने पैरवी की थी। उन्होंने अपनी दलील में कहा था कि पूर्व में भी जो सर्वेक्षण हुए हैं, वे साफ-साफ बता रहे हैं कि भोजशाला वाग्देवी का मंदिर है। यहां हिंदुओं को पूजा करने का पूरा अधिकार है। ये अधिकार देने से भोजशाला के धार्मिक चरित्र पर कोई बदलाव नहीं होगा।
क्या है विवाद?
भोजशाला विवाद सदियों पुराना है। दरअसल, हिंदू पक्ष का कहना है कि ये सरस्वती देवी का मंदिर है। सदियों पहले मुसलमानों ने इसकी पवित्रता भंग करते हुए यहां मौलाना कमालुद्दीन की मजार बनाई थी। यहां आज भी देवी-देवताओं के चित्र और संस्कृत में श्लोक लिखे हुए हैं। अंग्रेज भोजशाला में लगी वाग्देवी की मूर्ति को लंदन ले गए थे।
29 अप्रैल से पहले सौंपनी होगी रिपोर्ट
मध्य प्रदेश हाईकोर्ट की इंदौर बेंच ने आदेश में कहा था कि परिसर में कार्बन डेटिंग विधि से एक विस्तृत वैज्ञानिक जांच की जानी चाहिए, जिससे जमीन के ऊपर और नीचे दोनों तरह की संरचना कितनी पुरानी है और उनकी उम्र का पता लगाया जा सके.
अदालत की ओर से यह भी कहा गया कि सर्वेक्षण ये कार्यवाही दोनों पक्षों को दो प्रतिनिधियों की उपस्थिति में की जाए और उसकी वीडियोग्राफी होनी चाहिए. अब इस मामले की अगली सुनवाई 29 अप्रैल को होनी है. साथ ही कोर्ट ने ASI को 29 अप्रैल से पहले अपनी रिपोर्ट सौंपने का आदेश दिया है.
राजा भोज ने बनवाई थी भोजशाला: हिंदू पक्ष
हिंदू संगठनों के मुताबिक, धार स्थित कमाल मौलाना मस्जिद दरअसल मां सरस्वती मंदिर भोजशाला है. सन 1034 में राजा भोज ने संस्कृत की पढ़ाई के लिए भोजशाला को बनवाया था, लेकिन बाद में मुगल आक्रांताओं ने उसे तोड़ दिया था. इसी परिसर के वैज्ञानिक सर्वेक्षण के लिए हिंदू फ्रंट फॉर जस्टिस द्वारा हाईकोर्ट में आवेदन दिया था. जिस पर पर सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट की इंदौर बेंच ने एएसआई को वैज्ञानिक सर्वेक्षण करने का आदेश दिया था.
क्या है भोजशाला का इतिहास?
बता दें कि हजार साल पहले धार में परमार वंश का शासन था. 1000 से 1055 ईस्वी तक राजा भोज ने शासन किया. राजा भोज सरस्वती देवी के अनन्य भक्त थे. उन्होंने 1034 ईस्वी में यहां पर एक महाविद्यालय की स्थापना की, जिसे बाद में ‘भोजशाला’ के नाम से जाना जाने लगा. इसे हिंदू सरस्वती मंदिर भी मानते थे. कहा जाता है कि 1305 ईस्वी में अलाउद्दीन खिलजी ने भोजशाला को ध्वस्त कर दिया. बाद में 1401 ईस्वी में दिलावर खान गौरी ने भोजशाला के एक हिस्से में मस्जिद बनवा दी. 1514 ईस्वी में महमूद शाह खिलजी ने दूसरे हिस्से में भी मस्जिद बनवा दी. 1875 में यहां पर खुदाई की गई थी. इस खुदाई में सरस्वती देवी की एक प्रतिमा निकली. इस प्रतिमा को मेजर किनकेड नाम का अंग्रेज लंदन ले गया. फिलहाल ये प्रतिमा लंदन के संग्रहालय में है. हाईकोर्ट में दाखिल याचिका में इस प्रतिमा को लंदन से वापस लाए जाने की मांग भी की गई है.