उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ द्वारा दिया गया यह वक्तव्य कई महत्वपूर्ण पहलुओं को छूता है — राष्ट्रीय सुरक्षा, शिक्षा नीति, संवैधानिक दायित्व, और सांस्कृतिक मूल्यों। चलिए इसे कुछ मुख्य बिंदुओं में संक्षेप में समझते हैं:
आतंकवाद पर सख्त संदेश
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उपराष्ट्रपति ने पहलगाम आतंकी हमले पर गहरा दुख और आक्रोश व्यक्त किया।
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उन्होंने आतंकवाद को “वैश्विक खतरा” करार देते हुए इसे मानवता के खिलाफ बताया।
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कहा कि इसका सामना वैश्विक एकजुटता और मानवतावादी दृष्टिकोण से होना चाहिए।
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भारत को उन्होंने शांतिप्रिय राष्ट्र कहा और हमारी ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ की संस्कृति को रेखांकित किया।
राष्ट्र सर्वोपरि — राजनीति से ऊपर
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उन्होंने संविधान सभा में डॉ. भीमराव आंबेडकर के अंतिम संबोधन का हवाला देते हुए कहा कि राष्ट्रहित को व्यक्तिगत, राजनीतिक या समूह हितों से ऊपर रखा जाना चाहिए।
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यह बयान स्पष्ट रूप से आज के राजनीतिक माहौल में राष्ट्रवाद और एकता की भावना को प्राथमिकता देने की बात करता है।
राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) पर सराहना
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धनखड़ ने नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति को परिवर्तनकारी बताया।
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कहा कि यह नीति तीन दशकों के बाद, सभी हितधारकों के इनपुट लेकर बनाई गई है।
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नीति बहुविषयक शिक्षा को बढ़ावा देती है और भारतीय सभ्यतागत मूल्यों से जुड़ी है।
राज्यपाल आर.एन. रवि की भूमिका की प्रशंसा
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उन्होंने तमिलनाडु के राज्यपाल आर.एन. रवि की पहल की प्रशंसा की, जिन्होंने राज्य के विश्वविद्यालयों के कुलपतियों का सम्मेलन आयोजित किया।
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कहा कि यह राज्यपाल द्वारा उनकी संवैधानिक शपथ का पालन है।
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शिक्षा के क्षेत्र में इस तरह की पहल को “संविधान के अनुरूप सेवा” करार दिया।
कुलपतियों की भूमिका पर विचार
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उन्होंने आज के कुलपतियों को दूरदर्शी, प्रतिभाशाली और परिवर्तनकारी शक्ति के रूप में देखा।
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उन्हें परिणाम लाने में सक्षम शिक्षाविद बताया और विश्वास जताया कि वे भारत की शिक्षा प्रणाली को नई ऊँचाइयों तक ले जा सकते हैं।