गंगा दशहरा का पर्व सनातन संस्कृति में एक अत्यंत पवित्र और आध्यात्मिक महत्व रखने वाला दिन है। इसे देवी गंगा के स्वर्ग से पृथ्वी पर अवतरण की स्मृति में मनाया जाता है। मान्यता है कि ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को गंगा जी धरती पर अवतरित हुई थीं, और इसी कारण यह दिन गंगा दशहरा कहलाता है। “दशहरा” शब्द का अर्थ है दस प्रकार के पापों का हरण, जिनसे मां गंगा के स्नान और पूजन से मुक्ति मिलती है।
गंगा अवतरण की पौराणिक कथा
पौराणिक कथा के अनुसार, राजा भागीरथ ने अपने पूर्वजों की मुक्ति के लिए गंगा को पृथ्वी पर लाने का संकल्प लिया। उन्होंने वर्षों तक कठोर तपस्या की, जिससे प्रसन्न होकर मां गंगा ने अवतरण की स्वीकृति दी, लेकिन उन्होंने यह शर्त रखी कि उनके तेज प्रवाह को रोकने वाला कोई चाहिए, अन्यथा उनका वेग पृथ्वी को नष्ट कर देगा। तब राजा भागीरथ ने भगवान शिव की तपस्या की। प्रसन्न होकर शिवजी ने गंगा को अपनी जटाओं में समाहित कर उनके वेग को संयमित किया और धरती पर उनकी धार को प्रवाहित किया।
धार्मिक महत्व और मान्यता
गंगा को केवल एक नदी नहीं, बल्कि मां और मोक्षदायिनी के रूप में पूजा जाता है। मान्यता है कि गंगा दशहरा के दिन मां गंगा की पूजा, स्नान, और दान करने से व्यक्ति को काम, क्रोध, लोभ, मोह, ईर्ष्या, द्वेष, ब्रह्महत्या, कपट, परनिंदा और छल जैसे दस पापों से मुक्ति मिलती है।
पवित्र तीर्थों पर उत्सव का दृश्य
हर साल गंगा दशहरा पर हरिद्वार, ऋषिकेश, देवप्रयाग, वाराणसी, प्रयागराज, गढ़मुकेश्वर, पटना और गंगासागर जैसे तीर्थ स्थलों पर लाखों श्रद्धालु मां गंगा में आस्था की डुबकी लगाते हैं। हर की पौड़ी (हरिद्वार) और दशाश्वमेध घाट (वाराणसी) की गंगा आरती विशेष आकर्षण का केंद्र होती है।
पूजा विधि और दान का महत्व
इस दिन:
- गंगा स्नान और तर्पण किया जाता है।
- सत्तू, मटका, हाथ का पंखा, जल और तिल का दान शुभ माना जाता है।
- उपवास, भजन, गंगा स्तुति और आरती की जाती है।
- भगवान शिव का अभिषेक विशेष रूप से किया जाता है क्योंकि उन्हीं के माध्यम से गंगा धरती पर अवतरित हुईं थीं।
गंगा स्तुति मंत्र
“नमो भगवते दशपापहरायै गंगायै नारायण्यै रेवत्यै शिवायै दक्षायै अमृतायै विश्वरूपिण्यै नंदिन्यै ते नमो नमः”
भावार्थ – हे भगवती, दस पापों का नाश करने वाली मां गंगा, नारायणी, रेवती, शिवा, दक्षा, अमृता, विश्वरूपिणी और नंदिनी को मेरा कोटि-कोटि नमन।
आध्यात्मिक संदेश
गंगा दशहरा केवल एक पर्व नहीं, बल्कि यह आत्मशुद्धि, प्रकृति के प्रति आभार और आस्था का पर्व है। मां गंगा हमारे पापों को हरती हैं, शांति प्रदान करती हैं और मोक्ष का मार्ग प्रशस्त करती हैं। इस दिन का उद्देश्य केवल पवित्र डुबकी ही नहीं, बल्कि आंतरिक शुद्धता, संयम और सेवा भावना को भी अपनाना है।
इस पावन अवसर पर श्रद्धालु मां गंगा को धन्यवाद देते हैं कि उन्होंने धरती को पावन किया, और हम सभी को उनके चरणों में डुबकी लगाकर शुद्ध और पापमुक्त जीवन जीने का अवसर प्रदान किया।