लोंगेवाला युद्ध: ‘टैंकों की कब्रगाह’ से बना देशभक्ति का तीर्थस्थल
राजस्थान के जैसलमेर जिले में भारत-पाक सीमा से महज 15 किलोमीटर दूर स्थित लोंगेवाला कभी वीरान और डरावना माना जाता था। यही वह भूमि है, जहां 1971 के भारत-पाक युद्ध में भारतीय सेना ने अद्वितीय शौर्य और साहस का परिचय देते हुए पाकिस्तान के 179 सैनिकों और 37 टैंकों को नेस्तनाबूद कर दिया था। यही कारण है कि इसे कभी “टैंकों की कब्रगाह” कहा जाता था।
लोंगेवाला युद्ध: जब इतिहास रचा गया
- तारीख: दिसंबर 1971
- स्थान: लोंगेवाला पोस्ट, जैसलमेर (राजस्थान)
- भारतीय सैनिक: केवल 120 जवान, जिनमें कुछ बीएसएफ के जवान भी शामिल थे
- पाकिस्तानी हमलावर: भारी संख्या में पैदल सेना और 45 टैंक
- परिणाम:
- 179 पाकिस्तानी सैनिक मारे गए
- 37 टैंक और भारी सैन्य साजो-सामान नष्ट
- भारतीय पक्ष में न्यूनतम हताहत
इस युद्ध में मेजर कुलदीप सिंह चांदपुरी के नेतृत्व में भारतीय जवानों ने असंभव को संभव किया। उनके साहस और रणनीति के बल पर पाकिस्तान की आधी रात को की गई घातक टैंक-संचालित हमले की योजना विफल हो गई।
लोंगेवाला युद्ध संग्रहालय: इतिहास का जीवंत दस्तावेज
आज लोंगेवाला सिर्फ एक युद्धस्थल नहीं, बल्कि देशभक्ति की जीवंत प्रेरणा बन चुका है। यहां स्थापित “लोंगेवाला युद्ध संग्रहालय” में वो सबकुछ मौजूद है जो उस वीरता की कहानी सुनाता है:
संग्रहालय में क्या देखें? | विवरण |
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पाकिस्तानी T-59 और Sherman टैंक | जो युद्ध में भारतीय सेना ने नष्ट किए |
106 मिमी रिकॉयलेस गन और RCL जीप | युद्ध के समय इस्तेमाल हुए हथियार |
बंकर और सैनिक चौकियां | वास्तविक युद्ध-सज्जा की प्रतिकृति |
वीडियो क्लिप और दस्तावेज | युद्ध की घटनाओं का वर्णन |
हर वर्ष 60,000 से अधिक पर्यटक यहां आते हैं, जिनमें बड़ी संख्या में छात्र, युवा और विदेशी नागरिक भी शामिल होते हैं।
टनोट माता मंदिर से लोंगेवाला तक: एक आस्था और पराक्रम की यात्रा
लोंगेवाला के पास ही स्थित टनोट माता मंदिर भी 1971 युद्ध से जुड़ा है। कहा जाता है कि युद्ध के समय यहां गिराए गए कई बम फटे ही नहीं, जिसे स्थानीय लोग माता का चमत्कार मानते हैं।
लोंगेवाला की विरासत: चार युद्ध, चार जीत
भारत और पाकिस्तान के बीच अब तक चार बार युद्ध हुए हैं (1947, 1965, 1971 और 1999 कारगिल), और हर बार भारत ने विजय पताका फहराई है। लेकिन 1971 की लोंगेवाला की लड़ाई भारतीय इतिहास में विशेष स्थान रखती है क्योंकि:
- यह लड़ाई न्यूनतम संसाधनों में अधिकतम साहस का परिचायक थी।
- यह दर्शाता है कि रणनीति और आत्मबल, बड़ी ताकतों पर भी भारी पड़ सकते हैं।
निष्कर्ष: वीरगाथा से प्रेरणा तक
लोंगेवाला अब सिर्फ एक युद्धस्थल नहीं, बल्कि एक राष्ट्रीय तीर्थ बन गया है। यह स्थल नई पीढ़ी को न सिर्फ इतिहास सिखाता है, बल्कि देशभक्ति, साहस और बलिदान का भी बोध कराता है।