घी सग्रांद की बधै चि!– सब्बी लोगों थें घी सग्रांद की भोत भोत बधै छिन..। उत्तराखंड में भादो महीने की संक्रांति को घी संक्रांति के रूप में मनाया जाता है। आज सूर्य देवता कर्क राशि से सिंह राशि में प्रवेश कर जाते हैं। इसलिये इसे सिंह संक्राति कहा जाता है। उत्तराखंड में घी संग्राद को किसान अच्छी फसलों की कामना करता है। और घी से बनाए पकवान बनाए-खाए जाते हैं। ऐसी लोक मान्यता है कि यदि घी संक्रांति के दिन घी नहीं खाया तो उन्हें अगले जन्म में घोंघा बनना पड़ेगा। अगले जन्म में घोंघा न बन जाए इस डर से गढ़वाली और कुमाऊंनी नवजातों के सिर और पांव के तलुवों पर घी लगाते हैं।
इसके अलावा उनकी जीभ पर भी थोड़ा सा घी रखा जाता है। ताकि वह अगले जन्म में कहीं घोंघा न बन जाएं। वहीं घी त्योहार के बाद अखरोट खाना भी शुरू कर देते हैं। घी संग्राद के दिन शरीर के विभिन्न हिस्सों में घी लगाया जाता है। अखरोट का फल घी त्योहार के साथ ही तैयार होने लगता है। घी त्यौहार के दिन लोगों के घर घी और दूध पहुंचाना शुभ माना जाता है। पहले घी त्यौहार के दिन पारम्परिक लोकगीत गाये जाते थे, समय के साथ साथ अब ये परम्परा भी ओझल हो गयी है।
सोशल मीडिया के युग में एक बार ये परंपरागत त्यौहार फिर से घर घर में प्रचार पा रहा है, जिनके घर गाय है उसके दूध से घी तैयार करने का रिवाज फिर से चल पड़ा है।