दिल्ली की कड़कड़डूमा कोर्ट ने 2020 के उत्तर-पूर्वी दिल्ली दंगों की बड़ी साजिश मामले में आरोपी उमर खालिद की जमानत याचिका मंगलवार को खारिज कर दी है. खालिद पर गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) के तहत मामला दर्ज किया गया था. उसने पहले दिल्ली की अदालत को बताया था कि उससे भी गंभीर आरोपों का सामना कर रहे अन्य आरोपी जमानत पर बाहर हैं. इसी तरह की गतिविधियों में कथित रूप से शामिल लोगों को दिल्ली पुलिस ने आरोपी भी नहीं बनाया है. इससे पहले स्पेशल पब्लिक प्रॉसिक्यूटर अमित प्रसाद ने कहा था कि खालिद ने सोशल मीडिया पर लोगों के साथ अपनी अलग-अलग चैट का हवाला देते हुए साजिश के तहत अपनी कहानी को बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया था.
खालिद ने मामले में देरी को आधार बनाते हुए जज से नियमित जमानत की गुहार लगाई थी। विशेष न्यायाधीश समीर बाजपेयी ने 13 मई को उनकी जमानत अर्जी पर फैसला सुरक्षित रख लिया था. दिल्ली पुलिस ने जमानत याचिका का विरोध करते हुए खालिद द्वारा लगाए गए आरोपों को तुच्छ और आधारहीन करार दिया था. वहीं, उमर खालिद के वकील ने दावा किया था कि दिल्ली पुलिस की चार्जशीट में उसके खिलाफ आतंकवाद से जुड़ा कोई आरोप नहीं लगाया गया था और उसका नाम केवल दस्तावेज में दोहराया गया था. तर्क दिया गया कि उनका नाम दोहराने से झूठ सच नहीं बन जाता.
खालिद-SPP ने कोर्ट में क्या कहा?
खालिद के वकील ने अपने मुवक्किल के खिलाफ शातिर मीडिया ट्रायल का भी आरोप लगाया था. दिल्ली पुलिस ने उमर खालिद पर 2020 में 23 स्थानों पर विरोध प्रदर्शन की योजना बनाने का आरोप लगाया है. दावा किया गया कि इन प्रदर्शन के चलते ही शहर में कथित तौर पर दंगे हुए थे. फरवरी में सुप्रीम कोर्ट से अपनी याचिका वापस लेने के बाद खालिद ने ट्रायल कोर्ट का रुख किया था. स्पेशल पब्लिक प्रॉसिक्यूटर ने आरोप लगाया था कि खालिद एक साजिश के तहत कुछ लिंक साझा करके अपनी कहानी को बढ़ा रहा था. इसपर खालिद के वकील ने कोर्ट में कहा था, “क्या संदेश साझा करना एक आपराधिक या आतंकवादी कृत्य है?”