संभल के ‘वाराही कुआँ’ विवाद में उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से सुप्रीम कोर्ट में दी गई जानकारी ने मामले को नया मोड़ दे दिया है। सरकार का कहना है कि यह कुआँ सार्वजनिक भूमि पर स्थित है, और मस्जिद कमिटी द्वारा इसे निजी संपत्ति बताने का दावा गलत है।
मामले के मुख्य बिंदु:
- यूपी सरकार की रिपोर्ट:
- ‘वाराही कुआँ’ सार्वजनिक संपत्ति है और सभी समुदायों द्वारा इस्तेमाल किया जाता था।
- विवादित मस्जिद भी सरकारी जमीन पर बनी है, जबकि मस्जिद केवल निजी भूमि पर ही बनाई जा सकती है।
- मस्जिद कमिटी ने सुप्रीम कोर्ट में गलत तस्वीरें पेश कीं, जिससे यह लगे कि कुआँ मस्जिद के अंदर है।
- कुएँ तक मस्जिद के अंदर से कोई रास्ता नहीं है।
- मस्जिद परिसर में पहले से ही एक और कुआँ ‘यज्ञ कूप’ मौजूद है, जिसकी जानकारी छिपाई गई।
- मस्जिद कमिटी का दावा:
- उनका कहना था कि प्रशासन जबरन कुएँ को सार्वजनिक बता रहा है।
- जिला प्रशासन को बिना इजाजत कोई भी कार्रवाई रोकने की अपील की गई थी।
- सरकार द्वारा गठित तीन सदस्यीय टीम की जाँच:
- टीम में एसडीएम, क्षेत्रीय अधिकारी और नगर पालिका के कार्यकारी अधिकारी शामिल थे।
- उन्होंने पाया कि कुआँ मस्जिद की दीवार के बाहर है और पहले सभी समुदायों द्वारा इस्तेमाल किया जाता था।
- यह कुआँ धरनी वराह कूप के नाम से जाना जाता है, जो 1978 के दंगों के बाद एक हिस्से में पुलिस चौकी बनने के कारण सूख गया।
- 2012 में इसका बचा हुआ हिस्सा ढक दिया गया था।
- जिला प्रशासन अब इस कुएँ को पुनर्जीवित करने के प्रयास कर रहा है (बारिश का पानी संरक्षित करने और भूजल स्तर बढ़ाने के लिए)।
महत्वपूर्ण कानूनी पहलू:
- भारत में कोई भी मस्जिद सरकारी या सार्वजनिक जमीन पर नहीं बनाई जा सकती, केवल निजी भूमि पर ही निर्माण संभव है।
- यदि मस्जिद या कोई धार्मिक स्थल सरकारी जमीन पर स्थित हो, तो वह अवैध कब्जे के अंतर्गत आता है।
- यूपी सरकार ने स्पष्ट किया कि ‘वाराही कुआँ’ सार्वजनिक संपत्ति है और मस्जिद कमिटी का दावा गलत है।
- अब सुप्रीम कोर्ट में इस मामले की सुनवाई के बाद अंतिम फैसला होगा।
- सरकार संभल के 19 कुओं का पुनर्जीवन कर रही है, ताकि भूजल स्तर बढ़ाया जा सके और सभी को इसका लाभ मिले।
इस मामले का फैसला आने वाले समय में धार्मिक स्थलों और सार्वजनिक संपत्तियों पर कब्जे के मामलों में एक मिसाल बन सकता है।