अमेरिकी पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को उनकी टैरिफ नीति को लेकर एक बड़ा झटका लगा है। मैनहेटन की संघीय अदालत ने उनके “लिबरेशन डे टैरिफ” को असंवैधानिक घोषित करते हुए उस पर रोक लगा दी है। अदालत ने यह फैसला देते हुए साफ कहा है कि:
“अमेरिकी संविधान के अनुसार, अन्य देशों के साथ व्यापार को विनियमित करने का विशेष अधिकार कांग्रेस को है, न कि राष्ट्रपति को, भले ही वह राष्ट्रीय सुरक्षा या आपातकालीन शक्तियों की बात क्यों न करें।”
क्या है मामला?
- 2 अप्रैल को ट्रंप ने अमेरिका के प्रमुख व्यापारिक साझेदारों पर टैरिफ (शुल्क) लगाने का आदेश दिया था — खासकर चीन और यूरोपीय संघ पर, जहां व्यापार घाटा ज्यादा था।
- इसका उद्देश्य अमेरिका की विनिर्माण (मैन्युफैक्चरिंग) क्षमता को बढ़ाना और घरेलू उद्योगों को सुरक्षा देना था।
- हालांकि इन टैरिफ्स ने अमेरिकी वित्तीय बाजारों में अस्थिरता ला दी, और कई देशों से बातचीत के बाद इन्हें अस्थायी रूप से कम या रोक दिया गया।
कोर्ट में किसने चुनौती दी?
- लिबर्टी जस्टिस सेंटर — पांच छोटे अमेरिकी कारोबारियों की ओर से, जो प्रभावित देशों से सामान आयात करते हैं।
- 13 अमेरिकी राज्य — इन टैरिफ्स को व्यापार में हस्तक्षेप और असंवैधानिक करार दिया।
कोर्ट का तर्क:
- राष्ट्रपति ट्रंप ने अपने संवैधानिक अधिकारों से आगे बढ़कर यह कदम उठाया।
- आपातकालीन शक्तियां व्यापार नियमों पर कांग्रेस के अधिकार को प्रभावित नहीं कर सकतीं।
ट्रंप प्रशासन की दलील:
- टैरिफ वार्ता “नाजुक स्थिति” में है, और इस फैसले से चीन के साथ व्यापार संबंधों के साथ-साथ भारत-पाकिस्तान के आर्थिक समीकरण भी प्रभावित हो सकते हैं।
- प्रशासन ने 7 जुलाई की डेडलाइन का हवाला देकर टैरिफ पावर बनाए रखने की मांग की।
आगे क्या?
- यह फैसला अमेरिका में राष्ट्रपति की शक्तियों की सीमा को फिर से परिभाषित करता है, खासकर व्यापार और आर्थिक नीतियों में।
- अभी कम से कम पांच अन्य मुकदमे टैरिफ नीति को लेकर लंबित हैं — जिससे ट्रंप की नीतियों पर और कानूनी दबाव बढ़ सकता है।