पश्चिम बंगाल में आयोजित होने वाले 48वें अंतर्राष्ट्रीय कोलकाता पुस्तक मेले में विश्व हिंदू परिषद (वीएचपी) को स्टॉल लगाने की अनुमति नहीं दिए जाने का मामला तूल पकड़ रहा है। इस मुद्दे को लेकर वीएचपी ने कलकत्ता हाई कोर्ट का रुख किया है।
मामले का विवरण:
- वीएचपी का आवेदन और गिल्ड की प्रतिक्रिया:
- वीएचपी ने पिछले साल अक्टूबर में मेले में स्टॉल के लिए आवेदन किया था।
- गिल्ड ने आवेदन को न तो स्वीकृत किया, न खारिज किया, बल्कि उसे लंबित रखा।
- गिल्ड का कहना है कि वीएचपी का आवेदन ‘निर्दिष्ट फॉर्म’ में नहीं था और उसने मेले की शर्तों को पूरा नहीं किया।
- गिल्ड के आरोप:
- गिल्ड का दावा है कि वीएचपी द्वारा प्रकाशित पुस्तकें “संवेदनशील और विवादास्पद” हैं।
- गिल्ड ने आशंका जताई कि इन पुस्तकों से मेले में “अशांति” फैल सकती है।
- गिल्ड ने यह भी कहा कि वह ऐसी स्थिति पैदा नहीं होने देना चाहता, इसलिए इस साल वीएचपी को स्टॉल नहीं दिया गया।
- हाई कोर्ट की सुनवाई:
- जस्टिस अमृता सिन्हा ने गिल्ड से पूछा, “क्या पहले वीएचपी के प्रकाशन विवादास्पद नहीं थे, जब उन्हें स्टॉल आवंटित किए गए थे?”
- उन्होंने गिल्ड के आरोपों पर सवाल उठाते हुए कहा कि यह अचानक परिवर्तन क्यों आया है।
- इस मामले पर अगली सुनवाई 20 जनवरी 2025 को होगी।
वीएचपी का पक्ष:
- वीएचपी का कहना है कि वह कई वर्षों से कोलकाता पुस्तक मेले में भाग लेता रहा है।
- संगठन ने आरोप लगाया कि गिल्ड ने इच्छापूर्वक उनके आवेदन पर कोई निर्णय नहीं लिया।
- वीएचपी ने इसे एक पक्षपातपूर्ण कदम बताते हुए अपनी सांस्कृतिक और धार्मिक स्वतंत्रता पर हमले की बात कही।
विवाद के संभावित आयाम:
- संवैधानिक और कानूनी सवाल:
- क्या किसी संगठन को पुस्तक मेले में भाग लेने से रोकना अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का उल्लंघन है?
- क्या गिल्ड का यह कदम धार्मिक या राजनीतिक भेदभाव को दर्शाता है?
- सांस्कृतिक और राजनीतिक प्रभाव:
- पुस्तक मेले जैसे सार्वजनिक मंच से वीएचपी को बाहर रखने का निर्णय राजनीतिक और वैचारिक ध्रुवीकरण को बढ़ा सकता है।
- यह कदम राज्य सरकार और हिंदू संगठनों के बीच तनावपूर्ण संबंधों को और गहरा कर सकता है।
- पुस्तकों की प्रकृति पर चर्चा:
- यदि वीएचपी की पुस्तकें वास्तव में संवेदनशील हैं, तो उनका सार्वजनिक प्रदर्शन प्रतिबंधित करना एक तार्किक कदम हो सकता है।
- लेकिन यदि यह निर्णय पूर्वाग्रह पर आधारित है, तो यह गिल्ड की साख पर सवाल खड़ा करता है।
यह मामला सिर्फ एक स्टॉल आवंटन का नहीं, बल्कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, सांस्कृतिक विविधता, और लोकतांत्रिक अधिकारों का बड़ा मुद्दा बन चुका है। कलकत्ता हाई कोर्ट का फैसला यह तय करेगा कि क्या गिल्ड का निर्णय वैध है या यह एक पक्षपातपूर्ण कदम है। इस विवाद के राजनीतिक और सामाजिक प्रभाव लंबे समय तक महसूस किए जा सकते हैं।