वक्फ (संशोधन) विधेयक 2024 पर विचार कर रही संयुक्त संसदीय समिति (JPC) ने सरकार को जनजातीय भूमि को ‘वक्फ’ संपत्ति घोषित करने से रोकने के लिए एक कानून लाने की सिफारिश की है। JPC का कहना है कि ‘इन सांस्कृतिक अल्पसंख्यकों के अस्तित्व’ के लिए ‘गंभीर खतरा पैदा करने वाले’ कई मामले सामने आए हैं। JPC ने मसौदा रिपोर्ट स्वीकार करते हुए 30 जनवरी को इसे लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला को रिपोर्ट पेश करेगी।
सोमवार (27 जनवरी 2025) को पैनल ने सत्तारूढ़ एनडीए सांसदों द्वारा सुझाए गए संशोधनों को स्वीकार कर लिया था, जबकि विपक्षी सांसदों के सुझाए गए संशोधनों को खारिज कर दिया था। इन संशोधनों में विवादों को निपटाने के लिए कलेक्टर के पद से ऊपर के अधिकारी को नियुक्त करना और ट्रिब्यूनल में तीसरे सदस्य के रूप में मुस्लिम लॉ जानने वाले व्यक्ति को बहाल करना भी शामिल है।
मसौदा रिपोर्ट पर सूत्रों के हवाले से डेक्कन हेराल्ड की रिपोर्ट में कहा गया कि संविधान की अनुसूची V और अनुसूची VI के तहत आने वाले आदिवासी क्षेत्रों में वक्फ भूमि की घोषणा के कई मामले थे। जो इन सांस्कृतिक अल्पसंख्यकों के अस्तित्व के लिए गंभीर खतरा पैदा कर रहे हैं, जिनकी धार्मिक प्रथाएँ अलग हैं और वे इस्लाम के तहत निर्धारित धार्मिक प्रथाओं का पालन नहीं करते हैं।
JPC ने विधेयक में वक्फ बोर्डों में गैर-मुस्लिमों को शामिल करने वाले प्रावधान में भी कोई समस्या नहीं पाई है, क्योंकि वे लाभार्थी, विवादों में पक्षकार या वक्फ मामलों में अन्यथा रुचि रखने वाले हो सकते हैं। इसमें कहा गया है कि प्रस्ताव इसे अधिक व्यापक आधार वाला बनाएगा और वक्फ संपत्ति प्रबंधन में समावेशिता और विविधता को बढ़ावा देगा।
वहीं, मंगलवार (28 जनवरी 2025) को पैनल के सदस्यों के बीच मसौदा रिपोर्ट वितरित की गई। विपक्षी सांसदों ने रिपोर्ट को अपनाने के लिए बैठक बुलाई गई बैठक की आलोचना करते हुए कहा कि उनके लिए कुछ ही घंटों में 655 पृष्ठों की रिपोर्ट को पढ़ना, चर्चाओं में भाग लेना और असहमति नोट तैयार करना संभव नहीं है।
रिपोर्ट में सूत्रों के हवाले से कहा गया है, “वक्फ बोर्ड द्वारा अधिग्रहित भूमि की मात्रा में वृद्धि और मुकदमों की संख्या इस गंभीर चिंता को दूर करने की तत्काल आवश्यकता को रेखांकित करती है।” पैनल ने कहा कि एसटी समाज के सबसे हाशिए पर और कमजोर वर्गों में से एक हैं। इसलिए संविधान में परिकल्पित सुरक्षा को हर कीमत पर बरकरार रखा जाना चाहिए।
वक्फ संपत्तियों पर किराएदारों के मामले में पैनल ने लीज नियम बनाते समय सहानुभूतिपूर्ण दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता की वकालत की। किराएदार संगठनों ने इस बात पर चिंता जताई थी कि उन्हें अतिक्रमणकारी माना जा रहा है, जबकि वे कानूनी रूप से संपत्ति पर कब्जा कर रहे हैं और वक्फ बोर्ड द्वारा निर्धारित किराया दे रहे हैं।
इसमें कहा गया है, “वक्फ बोर्ड और किराएदारों के बीच सहजीवी और सामंजस्यपूर्ण संबंध को बढ़ावा देने से वक्फ संपत्तियों की समृद्धि सुनिश्चित होगी। इसलिए समिति सिफारिश करती है कि मंत्रालय देश भर के वक्फ किराएदारों की चिंताओं पर विचार कर सकता है और ऐसे कानून बना सकता है, जो उनके वैध अधिकारों की रक्षा के लिए दीर्घकालिक पट्टे की अनुमति देते हैं।”
जेपीसी के अध्यक्ष जगदंबिका पाल ने कहा, “पहली बार हमने एक खंड शामिल किया है, जिसमें कहा गया है कि वक्फ का लाभ हाशिए पर पड़े लोगों, गरीबों, महिलाओं और अनाथों को मिलना चाहिए। कल, हम यह रिपोर्ट स्पीकर को सौंपेंगे। हमारे सामने 44 खंड थे, जिनमें से 14 में सदस्यों ने संशोधन प्रस्तावित किए। हमने बहुमत से मतदान कराया और फिर इन संशोधनों को स्वीकार कर लिया गया।”
भाजपा नेता राधामोहन दास अग्रवाल ने कहा कि वक्फ संशोधन विधेयक पर रिपोर्ट 14 में से 11 मतों से पारित हुई है। विभिन्न दलों ने अपने असहमति नोट प्रस्तुत किए हैं। भाजपा सांसद तेजस्वी सूर्या ने कहा कि सरकार का इरादा वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन में आधुनिकता, पारदर्शिता और जवाबदेही लाना है। इसके साथ ही निहित स्वार्थों द्वारा कानून के दुरुपयोग को रोकना है।
वहीं, इस रिपोर्ट का विरोध करने वालों में से एक AIMIM के असदुद्दीन ओवैसी ने कहा कि जब बजट सत्र के दौरान संसद में इस विधेयक पर चर्चा होगी तो वे इसका विरोध करेंगे। उन्होंने कहा, “कल रात हमें 655 पन्नों की मसौदा रिपोर्ट दी गई और किसी के लिए भी इतने कम समय में इतनी लंबी रिपोर्ट पढ़ना और अपनी राय देना मानवीय रूप से असंभव है। फिर भी हमने प्रयास किया और अपनी असहमति रिपोर्ट पेश की।”
ओवैसी ने आगे कहा, “यह वक्फ के पक्ष में नहीं है। मैं शुरू से कह रहा हूँ कि भाजपा अपनी विचारधारा के अनुसार मुस्लिमों के खिलाफ यह बिल लेकर आई है। इसका उद्देश्य वक्फ बोर्ड को नुकसान पहुँचाना और उनकी मस्जिदों पर कब्जा करना है। अगर हिंदू, सिख और ईसाई अपने-अपने बोर्ड में अपने धर्म के सदस्य रख सकते हैं तो मुस्लिम वक्फ बोर्ड में गैर-मुस्लिम सदस्य कैसे हो सकते हैं?”
तृणमूल कॉन्ग्रेस (TMC) के सांसद कल्याण बनर्जी ने कहा, “मैंने अपनी असहमति जताई है… इसमें पीड़ितों के बयानों पर विचार नहीं किया गया है। हमने चर्चा के दौरान जो कहा, उस पर विचार नहीं किया गया… सवाल यह उठता है कि हमने जो हितधारकों का दृष्टिकोण व्यक्त किया है, वह अध्यक्ष को क्यों पसंद नहीं आया। मेरे हिसाब से जेपीसी की कार्यवाही मजाक बनकर रह गई है।”
शिवसेना (यूबीटी) के सांसद अरविंद सावंत ने कहा, “कल तक लोग वक्फ में चुनाव के जरिए आते थे, लेकिन अब आप चुनाव हटा रहे हैं। वहाँ लोगों को मनोनीत किया जाएगा और केंद्र सरकार यह काम करेगी। अगर सरकार चुनाव आयोग से जुड़े कानून बदल सकती है तो वह यहाँ क्या करेगी? आज वक्फ में गैर-मुस्लिमों को लाने का प्रावधान है तो कल वे हमारे मंदिरों में भी ऐसा ही कर सकते हैं (गैर-हिंदुओं को लाना), क्योंकि संविधान में समानता का मुद्दा आएगा।”