प्रत्याशी की खर्च की सीमा चुनाव आयोग तय करता है। निर्धारित सीमा से अधिक खर्च करने पर चुनाव आयोग प्रत्याशी पर एक्शन भी ले सकता है। हर उम्मीदवार को अपने चुनाव खर्च का ब्योरा सौंपना अनिवार्य है। प्रत्येक जिले में चुनाव पैनल सामान के दामों को निर्धारण करता है। उसी के आधार पर खर्च की गणना होती है।
व्यय का खाता रखना है अनिवार्य
निर्वाचनों का संचालन नियम, 1961 का नियम 90, प्रत्येक राज्य और केंद्र शासित राज्य में चुनाव व्यय की सीमा निर्धारित करता है। लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 की धारा 77 (3) के अधीन निर्धारित सीमा से अधिक व्यय किया जाना एक भ्रष्ट आचरण है। व्यय का विवरण अलग खाते में रखना अनिवार्य है।
व्यय पर्यवेक्षक रखता है निगरानी
प्रत्याशी को नामांकन की तारीख से रिजल्ट आने तक अपने सभी व्यय का अलग और रोजाना का सही खाता रखना अनिवार्य है। प्रत्येक निर्वाचन क्षेत्र में चुनाव आयोग व्यय पर्यवेक्षक तैनात करता है। यह प्रत्याशियों के व्यय की निगरानी करता है।
व्यय में क्या-क्या होता है शामिल?
चुनाव आयोग खर्च को दो श्रेणियों में रखता है। पहला निर्वाचन व्यय है। इसमें जनसभा, पोस्टरों, बैनरों, वाहनों, प्रिंट या इलेट्रॉनिक मीडिया में विज्ञापनों जैसे प्रचार संबंधी मदों पर व्यय शामिल होता है।
रेटकार्ड जारी करता है चुनाव आयोग
चुनाव आयोग चाय, पानी, मटन, चिकन, मिठाई, नींबू पानी, समोसे, कचौरी, बिरयानी तंदूर, दाल मखनी, मिक्स वेज बटर नान, मिस्सी रोटी, सादी रोटी, काजू कतली, गुलाब जामुन आदि का दाम भी तय करता है। इसके अलावा हेलीपैड, लक्जरी वाहन, फार्म हाउस, फूल माला, गुलदस्ते, कूलर, टॉवर एसी, टोपी, झंडे और सोफा का रेटकार्ड भी आयोग जारी करता है। अगर प्रत्याशी इनका इस्तेमाल करता है तो खर्च उसके व्यय में जोड़ा जाएगा।
ये मद हैं दूसरी श्रेणी का हिस्सा
दूसरी श्रेणी में उन खर्च को शामिल किया जाता है, जो गैर-कानूनी हैं। इसमें शराब, धन का वितरण आदि शामिल है। लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 के अधीन यह एक भ्रष्ट आचरण है। ऐसी मदों पर व्यय करना अवैध है। चुनाव आयोग प्रतिनियुक्त विज्ञापन और पेड न्यूज को भी चुनाव खर्च मानता है।
यह भी जान लें
- अगर प्रत्याशी या उसका निर्वाचन एजेंट स्टार प्रचारक के साथ मंच साझा करता है तो स्टार प्रचार के यात्रा व्यय को छोड़कर रैली का पूरा खर्च प्रत्याशी के व्यय में जोड़ा जाएगा।
- स्टार प्रचारक के यात्रा व्यय को प्रत्याशी के खर्च में नहीं जोड़ा जाता है। अगर प्रत्याशी, उसका कोई प्रतिनिधि, परिवार का सदस्य या राजनैतिक पार्टी का कोई नेता स्टार प्रचारक के साथ वाहन सुविधा साझा करता है तो 50 प्रतिशत व्यय अभ्यर्थी के खर्च में जोड़ा जाता है।
- अगर प्रत्याशी मतदाताओं को लुभाने के उद्देश्य से कोई भोज आदि आयोजित करता है और उसमें भाग लेता है तो यह व्यय उसके खर्च में जोड़ा जाएगा।
- अगर सुरक्षा कारणों से सरकारी एजेंसी मंच-बैरिकेड का प्रबंध करती है तो उसका सारा व्यय अभ्यर्थी के खाते में शामिल होगा।
कितनी है खर्च की सीमा?
चुनाव में खर्च की सीमा प्रदेश के हिसाब से अलग-अलग है। सिक्किम, गोवा और अरुणाचल प्रदेश में लोकसभा चुनाव में खर्च की सीमा 75 लाख रुपये है। केंद्र शासित प्रदेशों में खर्च की यह सीमा 75 से 95 लाख रुपये तक है। बाकी अधिकांश राज्यों में प्रत्याशी 95 लाख रुपये खर्च कर सकता है।
क्या होता है चुनाव खर्च?
लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 78 के अनुसार प्रत्येक प्रत्याशी को परिणाम की घोषणा से 30 दिन के भीतर अपने चुनाव खर्च का ब्योरा जिला निर्वाचन अधिकारी के पास सौंपना अनिवार्य है। इसमें प्रत्याशी और उसके एजेंट द्वारा किया गया खर्च शामिल होता है। इसमें नामांकन के दिन से रिजल्ट तक का खर्च का सारा ब्योरा एक प्रतिलिपि में होता है।
उल्लंघन पर क्या होगा?
- अगर किसी प्रत्याशी ने अपना चुनाव खर्च का ब्योरा नहीं दिया तो उस पर लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम के अनुभाग 10A में दिए प्रावधान के आधार पर कार्रवाई हो सकती है। इसके मुताबिक चुनाव आयोग उस प्रत्याशी पर तीन साल तक चुनाव लड़ने पर रोक लगा सकता है।
- अगर कोई प्रत्याशी अपना चुनाव खर्च कम दिखाता है तो उसके खिलाफ चुनाव याचिका दायर हो सकती है। चुनाव आयोग कम खर्च दिखने को भ्रष्ट प्रथा मानता है। मगर किसी भी नागरिक को यह साबित करना होगा कि प्रत्याशी ने अपना खर्च कम दिखाया है।
- अधिकतम सीमा से अधिक खर्च करना एक भ्रष्ट प्रथा है। अगर किसी प्रत्याशी ने सीमा से अधिक खर्च किया है तो उसे तीन साल तक चुनाव लड़ने से अयोग्य ठहराया जा सकता है। लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम के अनुभाग 10A में इसका प्रावधन है।