प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी गुरुवार को अंतिम चरण का चुनाव प्रचार थमने के बाद कन्याकुमारी के प्रसिद्ध विवेकानंद रॉक मेमोरियल में दो दिन ध्यान लगाएंगे।यहां करीब 45 घंटे के उनके प्रवास के लिए सुरक्षा के भारी इंतजाम किए गए हैं। 2,000 पुलिसकर्मियों के अलावा विभिन्न सुरक्षा एजेंसियां कड़ी निगरानी रखेंगी।
इससे पहले 2019 में चुनाव प्रचार खत्म होने के बाद पीएम मोदी ने केदारनाथ की गुफा में ध्यान लगाया था।
विवेकानंद रॉक मेमोरियल में पीएम मोदी लगाएंगे ध्यान
बता दें कि प्रधानमंत्री मोदी कन्याकुमारी में उसी स्थान पर ध्यान लगाएंगे जहां देशभर का दौरा करने के बाद स्वामी विवेकानंद ने तीन दिनों तक ध्यान लगाया था और विकसित भारत का सपना देखा था। इस स्थान का नाम स्वामी विवेकानंद की याद में ही विवेकानंद रॉक मेमोरियल रखा गया है। यह भारत का सुदुर दक्षिण का हिस्सा है, जहां पर कि पूर्वी व पश्चिमी घाट आपस में मिलते हैं।
यह स्थल हिंद महासागर, अरब सागर और बंगाल की खाड़ी का भी मिलन स्थल है। देखने वाली बात ये है कि प्रधानमंत्री मोदी ने भी चुनाव प्रचार के दौरान 2047 तक विकसित भारत का निर्माण प्रमुख मुद्दा बनाया है। भाजपा नेताओं ने बताया कि मोदी आध्यात्मिक प्रवास के लिए 30 मई को दोपहर बाद कन्याकुमारी पहुंचेंगे। इसके बाद वे विवेकानंद रॉक मेमोरियल जाएंगे।
माता पार्वती ने भोलेनाथ के इंतजार में यहीं किया था तप
इस शिला का एक पौराणिक महत्व भी बताया जाता है. कहा जाता है कि माता पार्वती ने यहीं एक पैर पर भगवान भोलेनाथ का इंतजार किया था. समुद्र में स्थित इसी चट्टान पर देवी कन्या कुमारी ने भगवान शंकर की आराधना करते हुए तप किया था. इस दौरान उनके पैरों के निशान यहां बन गए थे, जो निशान यहां पाए गए थे. इसलिए इस जगह का अपना धार्मिक महत्व भी है.
इसी स्थान पर आमने-सामने दिखाई देते हैं सूर्य और चांद
आज भारत के साथ ही पूरी दुनिया के लोग समुद्र की लहरों से घिरे विवेकानंद मेमोरियल को देखने के लिए आते हैं. अप्रैल में (चैत्र पूर्णिमा) पर यहां चांद और सूर्य एक साथ एक ही क्षितिज पर आमने-सामने दिखाई पड़ते हैं. इसलिए यह नजारा देखने के लिए इस दिन मेमोरियल पर काफी भीड़ होती है.
इसलिए किया गया मेमोरियल का निर्माण
स्वामी विवेकानंद के संदेशों को जन-जन तक पहुंचाने के लिए उसी विशाल शिला पर एक भव्य मेमोरियल का निर्माण किसी मंदिर की तर्ज पर किया गया है. इस मेमोरियल का प्रवेश द्वार एलोरा और अजन्ता के गुफा मन्दिरों की तर्ज पर बनाया गया है. इसका मण्डपम बेलूर (कर्नाटक) में स्थित श्री रामकृष्ण मन्दिर के समान बनाया गया है. मेमोरियल को नीले और लाल ग्रेनाइट के पत्थरों से बनाया गया है, जिस पर 70 फीट ऊंचा एक गुंबद भी है. समुद्र के तल से लगभग 17 मीटर की ऊंचाई पर स्थित यह स्थान 6 एकड़ में फैला है.
स्वामी विवेकानंद की मूर्ति स्थापित
आज यह मेमोरियल समुद्र के भीतर दूर से ही दिखता है और सूर्योदय-सूर्यास्त के समय तो इसका नजारा काफी मनमोहक होता है. यहां भवन के अंदर चार फीट से भी ज्यादा ऊंचे एक प्लेटफॉर्म पर स्वामी विवेकानंद की कांसे की मूर्ति स्थापित की गई है. साढ़े आठ फीट ऊंची यह मूर्ति एकदम सजीव सी दिखती है.
इस मेमोरियल में दो मंडप बनाए गए हैं, जिनके नाम है श्रीपद मंडपम और विवेदानंद मंडपम. श्रीपद मंडपम एक वर्गाकार हॉल है, जिसमें गर्भ गृह, आंतरिक प्रकारम, वाह्य प्रकारम और बाह्य प्लेटफॉर्म है. वहीं, स्वामी विवेकानंद के सम्मान में बनाए गए विवेकानंद मंडपम में मुख्य प्रवेश द्वार, ध्यान मंडपम, सभा मंडपम और मुख मंडपम आकर्षण का केंद्र हैं. ध्यान मंडपम में पर्यटक भी ध्यान लगा सकते हैं.
अम्मन मंदिर में पूजा-अर्चना कर सकते हैं पीएम मोदी
मोदी 30 मई की शाम से एक जून की शाम तक ध्यान मंडपम में ध्यान लगाएंगे। प्रधानमंत्री यहां प्रसिद्ध श्री भगवती अम्मन मंदिर में भी पूजा-अर्चना कर सकते हैं। एक जून शाम को यहां से रवाना होने से पहले मोदी संभवत: तमिल कवि तिरुवल्लुवर की 133 फीट ऊंची प्रतिमा देखने भी जाएंगे।
इस बीच मोदी के दौरे से पहले सुरक्षा व्यवस्था कड़ी कर दी गई है। तिरुनेलवेली रेंज के डीआइजी प्रवेश कुमार ने आला अधिकारियों के साथ बुधवार को कन्याकुमारी में राक मेमोरियल, बोट जेटी, हेलीपैड और राज्य अतिथि गृह में सुरक्षा व्यवस्था का निरीक्षण किया। प्रधानमंत्री की मुख्य सुरक्षा टीम के कार्यक्रम स्थल पर पहुंचने के साथ ही हेलीपैड पर हेलीकाप्टर उतारने का ट्रायल भी किया गया।
कब लिया विवेकानंद रॉक मेमोरियल बनाने का फैसला?
यह साल 1960 की बात है. विवेकानंद जन्म शताब्दी समारोह के दौरान यह फैसला किया गया कि विवेकानंद रॉक मेमोरियल का निर्माण किया जाएगा. इसके बाद 6 नवंबर 1964 को काम शुरू हुआ और लगभग छह साल में यह तैयार हो गया. दो सितंबर 1970 को इस मेमोरियल का उद्घाटन तत्कालीन राष्ट्रपति वीवी गिरि ने किया था. यही नहीं, तब यह उद्घाटन समारोह लगभग दो महीने तक चला था, जिसमें तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने भी हिस्सा लिया था.
इतना आया था निर्माण पर खर्च, सबने दिया था दान
विवेकानंद मेमोरियल के निर्माण का निर्णय लिया गया तो धन की जरूरत पड़ी. इसके लिए निर्माण का सपना संजोए लोगों ने देश की सभी राज्य सरकारों से गुहार लगाई. मेमोरियल के सबसे पहला दान चिन्मय मिशन के स्वामी चिन्मयानंद ने दिया. इसके बाद लगभग सभी राज्य सरकारों ने एक-एक लाख रुपए का दान दिया. देश भर के करीब 30 लाख लोगों ने इसमें अपनी भागीदारी निभाई और एक रुपए से लेकर दो रुपए, पांच रुपए और यथाशक्ति दान किया. तब इन दान दाताओं में करीब एक फीसदी युवा थे. उस समय इसके निर्माण पर करीब 1.35 करोड़ रुपए का खर्च आया था.