लोकसभा चुनाव के छह चरण बीत चुके हैं. सातवें और आखिरी चरण के लिए 1 जून को वोटिंग है. अब तक के चुनाव प्रचार में पक्ष और विपक्ष की तरफ से सबसे ज्यादा गूंज आरक्षण और संविधान के मुद्दे पर सुनाई पड़ी है. इंडिया गठबंधन बीजेपी पर संविधान बदलकर आरक्षण खत्म करने का आरोप लगाता दिख रहा है. वहीं एनडीए ओबीसी आरक्षण में मुस्लिमों को आरक्षण देने की बात कह ओबीसी की हकमारी और धर्म के आधार पर आरक्षण देने को लेकर इंडिया गठबंधन को संविधान विरोधी बता रहा है. ऐसे में बीजेपी की मोदी की गारंटी और अबकी बार 400 पार का नारा संविधान और आरक्षण के इर्द गिर्द सिमटता हुआ दिखाई पड़ रहा है.
पीएम मोदी ने चुनाव के शुरुआत में ही अबकी बार 400 पार का नारा दिया. इसके बाद बीजेपी और एनडीए के नेताओं के मुंह से 400 पार का नारा हर मंच से सुनाई पड़ने लगा, लेकिन यूपी के सांसद लल्लू सिंह हों या कर्नाटक के सांसद अनंत सिंह हेगड़े, इन लोगों ने चार सौ सीटों की जरूरत को जिस तरह से लोगों के बीच समझाया वो बीजेपी के लिए गले की फांस बन गई. राजस्थान की ज्योति मिर्धा, हेगड़े और लल्लू सिंह ने चार सौ पार की जरूरत को ये कहकर समझाया कि संविधान बदलने या संशोधन करने के लिए दो तिहाई सीटों की जरूरत होती है. इसलिए बीजेपी इस बार पीएम मोदी के नेतृत्व में 400 पार का आंकड़ा पार कर कांग्रेस की ओर से जो संविधान में विकृति डाली गई है उसको कानून लाकर खत्म करेगी.
आरक्षण और संविधान बचाने की मांग कैसे शुरू हुई?
संविधान में विकृति वाली बात अनंत हेगड़े की ओर से बड़े ही साफ तरीके से कही गई थी. इसलिए बीजेपी ने इन बयानों से किनारा करते हुए अनंत हेगड़े का टिकट भी काट दिया, लेकिन ज्योति मिर्धा का वो बयान वायरल होने लगा जिसमें उन्हें देशहित में कड़े फैसले लेने के लिए संविधान में बदलाव की बात करते हुए सुना जा सकता है. विपक्ष ने ज्योति मिर्धा, हेगड़े और लल्लू सिंह के बयान को लपक कर प्रचारित करना शुरू कर दिया कि बीजेपी 400 सीटें पाकर संविधान को बदल देगी. दलितों-पिछड़ों को मिलने वाला आरक्षण भी खत्म कर बाबा साहब द्वारा दिए गए आरक्षण को समाप्त कर देगी.
संविधान को खत्म करने की दुहाई दे रहे विपक्ष के ये नेता
ऐसे बोलने वालों में राहुल गांधी के अलावा आरजेडी सुप्रीमो लालू प्रसाद, तेजस्वी यादव और शिवसेना (उद्धव) के नेता उद्धव ठाकरे हैं. ये वो नेता हैं जो मोदी के तीसरी बार पीएम बनने पर आरक्षण और संविधान को खत्म करने की दुहाई बार-बार अपनी सभा में दे रहे हैं. जाहिर है लालू प्रसाद एक तरफ संविधान बचाने के लिए ईंट से ईंट बजाने की धमकी दे रहे हैं. वहीं राहुल गांधी हर सभा में संविधान की कॉपी की रक्षा के लिए जनता से पीएम मोदी के खिलाफ वोट देने की अपील कर रहे हैं.
यही वजह है कि पीएम मोदी और बीजेपी के चाणक्य को संविधान और आरक्षण पर लग रहे आरोपों के जवाब में डिफेंस तैयार करना चुनाव की जरूरत बन चुकी है. इसलिए पीएम मोदी हों या गृहमंत्री अमित शाह वो उल्टा कांग्रेस और उसके सहयोगी दल पर ओबीसी आरक्षण में सेंधमारी कर मुस्लिम को आरक्षण देने के सवाल पर ओबीसी की हकमारी का मुद्दा उठाकर इंडी गठबंधन को घेरने का प्रयास चुनाव प्रचार में तेज कर दिया है.
कर्नाटक-बंगाल के जरिए विपक्ष पर हमला बोल रही बीजेपी
कर्नाटक में मुस्लिम को ओबीसी कोटे का आरक्षण देना बीजेपी के हाथ बड़ा मुद्दा लग गया. पीएम मोदी ओबीसी की हकमारी की बात कह आरक्षण को धर्म के आधार पर देने का पुरजोर विरोध करते सुने जा सकते हैं. पीएम मोदी कहते हैं कि बाबा साहब अंबेडकर के संविधान के साथ कांग्रेस और उसके सहयोगी दल खिलवाड़ कर रहे हैं क्योंकि धर्म के आधार पर आरक्षण कांग्रेस और उसके सहयोगी दल देने की कोशिश में जुटे हुए हैं. पीएम मोदी कहते हैं कि उनके रहते ऐसा नहीं होगा क्योंकि पीएम मोदी बाबा साहब के संविधान में छेड़खानी कदापि बर्दाश्त नहीं करने वाले हैं.
जाहिर है यही मुद्दा बीजेपी को बंगाले में भी मिल गया है. जहां, ममता बनर्जी द्वारा मुस्लिम की कई जातियों को आरक्षण देने पर कोर्ट ने कड़ी आपत्ति दर्ज करते हुए उसे खारिज कर दिया है. ममता बिफर उठी, लेकिन बीजेपी इसे बंगाल ही नहीं बल्कि देश में बड़ा मुद्दा बनाकर इंडिया गठबंधन को घेरने में जुट गई है. यही वजह है कि जो आरोप बीजेपी पर लगाकर कांग्रेस और उसके घटक दल बीजेपी को घेरने का प्रयास कर रहे थे उसे बीजेपी ने कर्नाटक और बंगाल का हवाला देकर विपक्षी दलों को घेरने का जोरदार प्रयास तेज कर दिया है.
2015 के बिहार चुनाव को नहीं भूली बीजेपी
बीजेपी 2015 के बिहार विधानसभा चुनाव को भी नहीं भूली है. इस चुनाव में उस पर संघ प्रमुख का एक बयान भारी पड़ गया था. संघ प्रमुख ने आरक्षण की समीक्षा की बात कह ओबीसी के वोटरों को बीजेपी से नाराज कर दिया था. इसलिए पीएम मोदी महाराष्ट्र समेत कई राज्यों में घूम-घूम कर चुनाव प्रचार के दरमियान ये कहते हुए नजर आए हैं कि खुद बाबा साहब अंबेडकर भी चाहें तो अब देश में आरक्षण खत्म नहीं कर सकते हैं.
आरक्षण के मुद्दे पर विपक्ष तूल देकर हिंदुत्व की तेज धार को कुंद करने का प्रयास कर रहा. विपक्ष को उम्मीद है कि इस मुद्दे के सहारे ओबीसी और दलित मतदाताओं को बीजेपी के पाले से खींचा जा सकता है. अब इस कवायद में विपक्ष कामयाब होगा इसका पुख्ता प्रमाण चार जून को ही लग सकेगा. परंतु यह मुद्दा साल 2024 लोकसभा चुनाव का सबसे बड़ा मुद्दा बनकर उभरा है इससे इनकार नहीं किया जा सकता है.
आरक्षण और संविधान क्यों बन गया बड़ा मुद्दा?
केंद्र सरकार के कानून में अनुसूचित जाति (SC) को 15 फीसदी, अनुसूचित जनजाति (ST) को 7.5 और पिछड़ों को 27 फीसदी आरक्षण का प्रावधान है. इसके अलावा संसद और विधानसभा में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिए सीटें आरक्षित करना संविधान द्वारा प्रदत्त अधिकार है. संसद की कुल 545 सीटों में 84 सीटें अनुसूचित जाति और 47 सीटें अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित की गई हैं. ये प्रावधान विधानसभा में भी सुनिश्चित की गई हैं.
संविधान में बदलाव के लिए क्या कहते हैं कानून?
संविधान में संशोधन कर नियम और कानून बदलने का प्रावधान है, जिसके तहत सिंपल मेजॉरिटी के अलावा विशेष मेजॉरिटी (दो तिहाई) से कई कानून बनाने या संशोधन करने का प्रावधान चुने हुए प्रतिनिधियों को प्राप्त है. संविधान के अनुच्छेद 368 में संविधान और उसकी प्रक्रियाओं में संशोधन करने की बातों का हवाला दिया गया है. वैसे संविधान में कुछ संशोधन विशेष बहुमत के आधार पर होगा ऐसा नहीं है बल्कि आधे राज्यों की विधानसभा की मंजूरी इसमें निहायत ही जरूरी है, लेकिन मूल ढांचे में परिवर्तन नहीं किया जा सकता है. इसे लेकर बोमई केस में सुप्रीम कोर्ट व्याख्या भी कर चुका है, लेकिन इस चुनाव में सत्ताधारी दल और विपक्ष दोनों एक दूसरे को संविधान में फेरबदल कर मूल ढांचे के साथ छेड़छाड़ का आरोप लगाते हुए देखे और सुने जा रहे हैं.
आरक्षण के मुद्दों को क्यों हवा दे रही कांग्रेस?
विपक्ष इस बात को तूल देकर बीजेपी के कोर वोटरों को जाति में बांटने का प्रयास कर रहा है. वहीं बीजेपी ओबीसी के तहत मुस्लिम को आरक्षण देने की बात पर विपक्ष को आड़े हाथों ले रही है. कहा जा रहा है कि महाराष्ट्र में दलित 12 फीसदी से ज्यादा हैं, वहीं पंजाब में दलितों की आबादी 33 फीसदी है जबकि बिहार जैसे राज्यों में इनकी आबादी 20 फीसदी के आस-पास है.
इसलिए संविधान और आरक्षण की दुहाई देकर कांग्रेस और उसके सहयोगी दल बीजेपी वोटरों के बड़े तबके को प्रभावित करना चाह रहे हैं. कांग्रेस आरक्षण का विरोध प्रधानमंत्री नेहरू के जमाने से ही करती रही है, लेकिन राहुल गांधी उसके उलट नजर आए हैं. राहुल कांग्रेस पार्टी की पुरानी लाइन से हटकर जनसंख्या के आधार पर आरक्षण की बात कह रहे हैं और बीजेपी और पीएम मोदी को घेरते हुए नजर दिखाई पड़ रहे हैं.
कांग्रेस खुद विरोधी, फिर बीजेपी पर निशाना क्यों?
ये सर्वविदित है कि एससी और एसटी को आरक्षण देने का प्रावधान संविधान में किया जा रहा था तो तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने इसका विरोध किया था. उन्होंने राज्यों के मुख्यमंत्री को चिट्ठी भी लिखी थी. इतना ही नहीं काका कालेलकर या मंडल कमीशन की रिपोर्ट कांग्रेस शासनकाल में धूल फांकती रही थी. इसलिए मंडल कमीशन की रिपोर्ट जब बीपी सिंह के कार्यकाल में लागू की गई तो तत्कालीन नेता राजीव गांधी ने इसका पुरजोर विरोध किया था.
कांग्रेस के पुराने इतिहास राहुल के बयान से मेल नहीं खाते
साल 2014 में केंद्र में पीएम मोदी की सरकार ने पिछड़ा वर्ग आयोग को संवैधिनक दर्जा दिया था ये बातें अब किसी से छिपी हुई नहीं हैं. ऐसे में राहुल गांधी की ओर से जातीय जनगणना कर जनसंख्या के हिसाब से भागीदारी की बात करना कांग्रेस के पुराने इतिहास से मेल नहीं खाते हैं. कांग्रेस की कोशिश है कि पुरानी लाइन से पिंड छुड़ाकर वो दलितों और ओबीसी के बीच ये पैगाम भेज सके कि CAA और NRC की पक्षधर बीजेपी 400 पार आंकड़ा छू गई तो मनमाफिक फैसले कर सकती है जो दलित और ओबीसी विरोधी भी हो सकता है. कांग्रेस के इसी प्रयास को दूर करने की कोशिश पीएम मोदी और अमित शाह के द्वारा बार बार कैंपेन में की गई है. अब इसका असर किस तरह से मतदाताओं पर पड़ता है ये चार जून को ही पता चलेगा.
राजस्थान में कांग्रेस ने OBC लिस्ट में डाला
राजस्थान में कांग्रेस ने 1998 से 2013 तक मुसलमान की 14 कम्युनिटी को OBC की लिस्ट में डाला है. बीजेपी की वर्तमान सरकार 4 जून के बाद कमेटी बनाकर राजस्थान और बीजेपी शासित राज्यों में आरक्षण के मुद्दे की समीक्षा करेगी और पता लगाएगी कि आरक्षण धर्म के आधार पर तो नहीं दिया गया है. पिछले साल जब कर्नाटक और तेलंगाना के विधानसभा चुनाव में अमित शाह ने मुस्लिमों को आरक्षण संविधान विरोधी करार दिया था. आरक्षण और ओबीसी में मुस्लिम को आरक्षण देकर ओबीसी की हकमारी की बात कह बीजेपी उल्टा विपक्ष को घेरने में जुट गई है.