सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग से मतदान प्रतिशत अपलोड करने में देरी क्यों हो रही है इस पर सवाल पूछा. दरअसल, संगठन एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) ने कोर्ट में मतदान प्रतिशत अपलोड होने में देरी को लेकर याचिका दायर की थी जिसके बाद कोर्ट ने चुनाव आयोग से सवाल पूछा.
आयोग का कहना है कि पोल पैनल ने शुरू में जो अनुमान के अनुसार मतदान के आंकड़े जारी किए थे , उसमें मतदान प्रतिशत के आंकड़ों में पिछली बार के मुकाबले काफी बढ़त देखी गई, जिसके बाद अब मतदान प्रतिशत अपलोड किया जाना चाहिए. मतदान प्रतिशत के जो अनुमानित आंकड़ें सामने रखे गए थे उनकी प्रामाणिकता के बारे में संदेह पैदा हो रहा है.
कोर्ट ने पूछा चुनाव आयोग से सवाल
सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को चुनाव आयोग (ईसी) से सवाल पूछा कि लोकसभा चुनाव में हर चरण के मतदान के बाद बूथ के हिसाब से दर्ज किए गए वोटों का डेटा तुरंत अपनी वेबसाइट पर चुनाव आयोग अपलोड क्यों नहीं कर पा रहा है उसकी वजह बताए.
भारत के मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ के साथ तीन जजों की बेंच ने चुनाव आयोग के वकील से पूछा कि हर मतदान अधिकारी शाम 6 या 7 बजे के बाद कितना मतदान हुआ उसका रिकॉर्ड जमा करता है. इसके बाद रिटर्निंग ऑफिसर के पास पूरे निर्वाचन क्षेत्र का डेटा होता है. आप इसे अपलोड क्यों नहीं करते? चुनाव संचालन नियम, 1961 के 49एस और नियम 56सी(2) के तहत पीठासीन अधिकारी को फॉर्म 17सी (भाग I) में दर्ज वोटों का लेखा-जोखा तैयार करना होता है.
अगली सुनवाई 24 मई को
याचिकाकर्ता एनजीओ ने कहा, मतदान प्रतिशत अपलोड करने में देरी के अलावा, चुनाव आयोग ने जो अनुमानित डेटा चुनाव के बाद सामने रखा उसमें मतदान प्रतिशत के आंकड़ों में भी असामान्य रूप से बढ़त देखी गई. इस घटनाक्रम ने सार्वजनिक डोमेन में उपलब्ध मतदान डेटा की प्रामाणिकता पर जनता के मन में सवाल खड़े कर दिए हैं. चुनाव आयोग के वकील ने आवेदन पर जवाब देने के लिए समय मांगा. मामले की अगली सुनवाई अब 24 मई को होगी.
याचिका में क्या कहा गया
याचिका में कहा गया है कि लोकसभा चुनाव के पहले दो चरणों के लिए मतदान प्रतिशत का अनुमानित डेटा चुनाव आयोग ने 30 अप्रैल को प्रकाशित किया था, 19 अप्रैल को हुए पहले चरण के मतदान के 11 दिन बाद और दूसरे चरण 26 अप्रैल के मतदान के चार दिन बाद. याचिका में आगे कहा गया कि चुनाव आयोग ने 30 अप्रैल के आंकड़ों में (लगभग 5-6%) बढ़त देखी गई.
19 अप्रैल को, पहले चरण के मतदान के बाद, चुनाव आयोग ने एक प्रेस नोट जारी किया था जिसमें कहा गया था कि शाम 7 बजे तक 21 राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों में मतदान का अनुमानित आंकड़ा 60% से ज्यादा था. इसी तरह, 26 अप्रैल को दूसरे चरण के बाद चुनाव आयोग ने कहा था कि मतदान 60.96% था. याचिका में कहा गया कि फाइनल मतदाता मतदान प्रतिशत जारी करने में हद से ज्यादा देरी, 30 अप्रैल के चुनाव आयोग के प्रेस नोट में असामान्य रूप से वोट प्रतिशत में बढ़त [5% से ज्यादा] और अलग-अलग निर्वाचन क्षेत्र और मतदान केंद्र के आंकड़ों को जारी न करना, इन सभी बातों ने चिंताएं बढ़ा दी हैं. साथ ही इन सभी बातों ने डेटा की सत्यता के बारे में जनता के बीच संदेह पैदा कर दिया है.