जम्मू-कश्मीर और लद्दाख हाई कोर्ट ने संपत्ति के अधिकार को मानवाधिकार घोषित करते हुए सेना को आदेश दिया है कि वह कुपवाड़ा के निवासी अब्दुल मजीद लोन को उनकी जमीन का 46 वर्षों का बकाया किराया अदा करे। यह ऐतिहासिक फैसला भारतीय संविधान के अनुच्छेद 300A के तहत संपत्ति के अधिकार के महत्व को रेखांकित करता है और इसे मानवाधिकार के व्यापक दायरे में शामिल करता है।
कोर्ट का आदेश और तर्क:
- संपत्ति का अधिकार:
- कोर्ट ने कहा कि संपत्ति का अधिकार न केवल एक संवैधानिक और वैधानिक अधिकार है, बल्कि इसे मानवाधिकार के रूप में भी मान्यता दी गई है।
- यह अधिकार आश्रय, आजीविका, स्वास्थ्य और रोजगार जैसे मूलभूत मानवाधिकारों से जुड़ा हुआ है।
- सेना का दावा:
- सेना ने दावा किया था कि उसने जमीन पर कब्जा नहीं किया।
- कोर्ट ने इसे खारिज करते हुए कहा कि जमीन पर कब्जा बिना कानूनी प्रक्रिया और मुआवजा दिए किया गया, जो याचिकाकर्ता के संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन है।
- डिप्टी कमिश्नर को निर्देश:
- कुपवाड़ा के डिप्टी कमिश्नर को राजस्व अधिकारियों की एक टीम गठित करने का निर्देश दिया गया, जो किराए का मूल्यांकन करेगी।
- मूल्यांकन के बाद, एक महीने के भीतर याचिकाकर्ता को पूरा बकाया किराया देने का आदेश दिया गया।
- संवैधानिक अनुच्छेद 300A:
- अनुच्छेद 300A कहता है कि किसी व्यक्ति को उसकी संपत्ति से केवल कानूनी प्रक्रिया के तहत ही बेदखल किया जा सकता है।
- मुआवजे का उल्लेख अनुच्छेद में सीधे नहीं है, लेकिन इसका तात्पर्य संवैधानिक दायित्व के रूप में लिया गया है।
मामले का पृष्ठभूमि:
- अब्दुल मजीद लोन ने 2014 में याचिका दायर कर सेना द्वारा 1978 से अधिग्रहीत 1.6 एकड़ जमीन का किराया दिलाने की माँग की थी।
- सेना ने 46 वर्षों तक जमीन पर कब्जा किया, लेकिन मालिक को कोई मुआवजा या किराया नहीं दिया।
फैसले का महत्व:
- नागरिक अधिकारों की रक्षा:
- यह फैसला राज्य और उसकी एजेंसियों को याद दिलाता है कि वे किसी नागरिक को उसकी संपत्ति से मनमाने तरीके से बेदखल नहीं कर सकतीं।
- मानवाधिकारों की मजबूती:
- संपत्ति के अधिकार को मानवाधिकार का दर्जा देकर कोर्ट ने इसे वैश्विक मानवाधिकार मानदंडों के अनुरूप स्थापित किया है।
- सेना और राज्य एजेंसियों के लिए मिसाल:
- यह फैसला राज्य और सेना के लिए यह सुनिश्चित करने का मार्ग प्रशस्त करता है कि संपत्ति अधिग्रहण कानूनी प्रक्रिया के तहत हो और नागरिकों के अधिकारों का सम्मान किया जाए।