जम्मू-कश्मीर और लद्दाख हाई कोर्ट का यह फैसला न केवल कानूनी दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि महिलाओं के अधिकारों और पितृसत्तात्मक मानसिकता के खिलाफ एक बड़ी पहल को भी दर्शाता है। 1989 से शुरू हुए कश्मीरी पंडितों के विस्थापन की त्रासदी में महिलाओं को हुए अन्याय के संदर्भ में यह निर्णय एक सकारात्मक कदम है।
फैसले के मुख्य बिंदु:
- विस्थापित दर्जा बनाए रखने का अधिकार:
- हाई कोर्ट ने स्पष्ट किया कि किसी गैर-विस्थापित (Non-Migrant) से विवाह करने पर कश्मीरी पंडित महिला का विस्थापित (Migrant) दर्जा खत्म नहीं होगा।
- कोर्ट ने इसे पितृसत्तात्मक सोच और भेदभावपूर्ण करार दिया कि पुरुषों का दर्जा शादी के बाद भी बरकरार रहता है, लेकिन महिलाओं का नहीं।
- CAT के आदेश की पुष्टि:
- केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण (CAT) ने महिलाओं को विस्थापित के रूप में नौकरियों के लिए पात्र मानते हुए राज्य सरकार से उनकी नियुक्ति का आदेश दिया था।
- हाई कोर्ट ने CAT के आदेश को सही ठहराया और राज्य सरकार की अपील को खारिज कर दिया।
- न्याय का दृष्टिकोण:
- कोर्ट ने कहा कि कश्मीरी महिलाओं को विस्थापित दर्जा खोने के डर से शादी न करने की अपेक्षा रखना अन्यायपूर्ण है।
- यह मान्यता कि महिलाओं का दर्जा विवाह से बदल जाएगा, संविधान के समानता के अधिकार का उल्लंघन है।
- नौकरियों में भेदभाव:
- कोर्ट ने कहा कि पुरुषों और महिलाओं के बीच विस्थापित दर्जा बनाए रखने में भेदभाव अनुचित है और रोजगार के अधिकार के विपरीत है।
फैसले का महत्व:
- कश्मीरी पंडित महिलाओं के लिए राहत:
- यह निर्णय महिलाओं के अधिकारों और उनके विस्थापन से संबंधित कठिनाइयों को मान्यता देता है।
- यह सुनिश्चित करता है कि महिलाओं को उनके अधिकारों से वंचित नहीं किया जाएगा, चाहे उनकी वैवाहिक स्थिति कुछ भी हो।
- पितृसत्ता के खिलाफ कदम:
- यह फैसला कानूनी प्रणाली में व्याप्त लैंगिक असमानता को चुनौती देता है।
- अदालत ने इस भेदभाव को “पितृसत्ता का परिणाम” कहकर सीधे संबोधित किया।
- संवैधानिक समानता:
- महिलाओं को उनके विस्थापन के कारण प्रभावित अधिकारों की रक्षा करते हुए कोर्ट ने संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार) और 21 (जीवन और स्वतंत्रता का अधिकार) को सुनिश्चित किया।
फैसले का व्यापक प्रभाव:
यह निर्णय जम्मू-कश्मीर में महिलाओं के सामाजिक और कानूनी अधिकारों के लिए एक मिसाल पेश करता है। यह न केवल कश्मीरी पंडितों के पुनर्वास कार्यक्रमों को सही दिशा में ले जाने में मदद करेगा, बल्कि महिलाओं के साथ होने वाले भेदभाव को समाप्त करने की दिशा में भी प्रेरणा देगा।
यह अदालत का साहसिक कदम न केवल कानूनी न्याय प्रदान करता है, बल्कि एक बड़े सामाजिक परिवर्तन की ओर भी संकेत करता है।