जम्मू कश्मीर के अनंतनाग में स्थित है अमरनाथ मंदिर, जो हिन्दुओं की श्रद्धा का एक बड़ा प्रतीक है। अमरनाथ शिवलिंग को ‘बाबा बर्फानी’ के रूप में जाना जाता है, क्योंकि भगवान शिव का रूप बर्फ से ही यहाँ प्रकट होता है। ये एक स्वयंभू शिवलिंग है, अर्थात स्वयं प्रकट होने वाला। लिद्दर घाटी में स्थित इस गुफा के बारे में मान्यता है कि यहीं पर भगवान शिव ने माँ पार्वती को अमरत्व का ज्ञान दिया था। भगवान अमरनाथ की पूजा हिन्दू धर्म में सदियों से होती आ रही है।
लेकिन, कुछ लोगों ने हिन्दुओं के ऊपर इस्लाम के अहसान गिनने के लिए ये कहना शुरू कर दिया कि अमरनाथ शिवलिंग की खोज बूटा मलिक नाम के एक चरवाहे ने की, उससे पहले इसके बारे में किसी को पता नहीं था। ये सरासर झूठ है। हमारे प्राचीन ग्रंथों में अमरनाथ धाम का जिक्र है। कहानी कुछ यूँ कही जाती है कि गड़रिया बूटा मलिक एक बार इधर अपनी भेड़ें चराते हुए फँस गया था, तभी उसकी मुलाकात एक साधु से हुई।
साधु ने उसे कोयले से भरा एक थैला दिया, लेकिन जब घर जाकर उसने थैले को खोला तो उसमें से हीरे निकले। इस चमत्कार को देख कर वो वापस इस गुफा में आया। लेकिन, जिस साधु को धन्यवाद देने को आया था वो नदारद था और वहाँ उसे एक शिवलिंग दिखाई दिया। इस कहानी के सामने आने के बाद अमरनाथ गुफा में चढ़ने वाले चढ़ावे का एक अंश बूटा मलिक के परिवार को दिए जाने की परंपरा चल पड़ी। हालाँकि, इस कहानी का कोई ऐतिहासिक साक्ष्य नहीं है।
लेकिन, कई मुस्लिम बुद्धिजीवियों ने बार-बार इसे इस तरह से दिखाना शुरू कर दिया कि ये सेकुलरिज्म का बहुत बड़ा उदाहरण है और मुस्लिमों ने हिन्दुओं पर एहसान किया। ‘हमारे बूटा मलिक ने तुम्हारे अमरनाथ मंदिर को खोजा’ – उनका मुख्य उद्देश्य हिन्दुओं को ये एहसास दिलाने का रहता है। जुलाई 1898 में स्वामी विवेकानंद ने भी अमरनाथ की यात्रा की थी। उन्होंने बताया था कि कैसे विभिन्न वेशभूषा वाले देश भर के लोग इस यात्रा में शामिल रहते थे।
आपको सबसे पहले तो ये जानना चाहिए कि कल्हण द्वारा रचित ‘राजतरंगिणी’, जिसमें जम्मू कश्मीर के राजाओं का हजारों वर्षों का इतिहास वर्णित है, उसमें भी अमरनाथ मंदिर के बारे में बताया गया है। ‘राजतरंगिणी’ 12वीं शताब्दी में लिखी गई थी। इसमें कहीं बूटा मलिक की कहानी का जिक्र नहीं मिलता। इस पुस्तक में राजाओं के बारे में क्रमवार विवरण दिया गया है। इस पुस्तक में अमरनाथ की पथयात्रा का भी जिक्र है, जिसका अर्थ है कि गुफा के लिए यात्रा की परंपरा अति प्राचीन है।